Mohan Bhagwat On Hindu Spiritual Gurus: राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने शुक्रवार (07 अप्रैल) को कहा कि दक्षिण के प्रांतों में हिंदू आध्यात्मिक गुरुओं के किए गए सेवा कार्य मिशनरियों से कहीं अधिक हैं. वह जयपुर के जामडोली में केशव विद्यापीठ में राष्ट्रीय सेवा भारती के सेवा संगम के उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.


उन्‍होंने कहा, ‘‘सेवा कहने के बाद सामान्यतः देश के प्रबुद्धजन मिशनरियों का नाम लेते हैं. दुनिया भर में मिशनरी अनेक स्‍कूल, अस्‍पताल चलाते हैं, यह सभी को पता है लेकिन दक्षिण के प्रांतों में केवल आध्‍यात्मिक क्षेत्र के हमारे आचार्य मुनि, संन्‍यासी सब मिलाकर जो सेवा करते हैं वह मिशनरियों की सेवा से कई गुणा ज्‍यादा है.’’


‘सेवा... स्वस्थ समाज को बनाती है’


भागवत ने कहा, ‘‘मैं स्‍पर्धा की बात नहीं कर रहा. उनसे ज्‍यादा, उनसे कम, यह मेरा पैमाना नहीं है. सेवा का यह पैमाना हो ही नहीं सकता.’’ उन्‍होंने कहा कि सेवा स्‍वस्‍थ समाज को बनाती है लेकिन स्‍वस्‍थ समाज को बनाने के लिए पहले वह हमको स्‍वस्‍थ करती है. संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘सेवा मनुष्‍य के मनुष्‍यत्‍व की स्‍वाभाविक अभिव्‍य‍क्ति है.’’


समाज में पिछड़ेपन का किया जिक्र


समाज में पिछड़ेपन का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा, ‘‘हमारे समाज का केवल एक अंग पीछे नहीं है बल्कि उसके कारण हम सब लोग पिछड़ गए हैं. हमें यह पिछड़ापन दूर करना है. हमें सभी को समान, अपने जैसा मानकर सेवा के माध्यम से उन्हें अपने जैसा बनाना है. हम इसके लिए संकल्‍प ले सकते हैं, सेवा कर सकते हैं.’’


‘एक-दूसरे का साथ जरूरी’


भागवत ने कहा, ‘‘हम सभी मिलकर समाज हैं. यदि हम एक नहीं है तो हम अधूरे हो जाएंगे. यदि सभी एक-दूसरे के साथ हैं तभी हम पूर्ण बनेंगे. लेकिन दुर्भाग्‍य से यह विषमता आई है. हमको यह विषमता नहीं चाहिए.’’


उन्‍होंने कहा, ‘‘हम अपना-अपना काम करते होंगे. काम के अनुसार रूप-रंग भले ही निराला होता होगा. लेकिन हम सब में एक ही प्राण है. समाज का एक अंग उपेक्षित हो- यह कैसे हो सकता है. यदि देश को विश्‍व गुरु बनाना है तो इसका मतलब है कि वह सर्वांग परिपूर्ण होना चाहिए. उसका प्रत्‍येक अंग सामर्थ्य संपन्‍न होना चाहिए. समाज में इसकी आवश्‍यकता है क्‍योंकि यह समाज मेरा अपना है. ’’


उन्‍होंने कहा, ‘‘हमारा संकल्‍प हो कि मेरे समाज का, मेरे राष्‍ट्र का कोई अंग दुर्बल, पिछड़ा, नीचा नहीं रहे. काम के बंटवारे के आधार पर मेरा उसका कुछ अलग हो सकता है लेकिन हम सब समान हैं. मेरा कार्य जितना उच्‍च एवं महत्‍वपूर्ण है, उसका काम भी उतना ही महत्‍वपूर्ण एवं उच्‍च है. श्रम की प्रतिष्‍ठा सर्वत्र है और कोई भेद नहीं.’’ उन्‍होंने कहा कि सेवा स्‍वस्‍थ समाज बनाती है लेकिन स्‍वस्‍थ समाज को बनाने के लिए पहले वह पहले हमको स्‍वस्‍थ करती है. भागवत ने कहा,’ सेवा मनुष्‍य के मनुष्‍यत्‍व की स्‍वाभाविक अभिव्‍य‍क्ति है.’’


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