मोहन भागवत बोले- सिर्फ कानून से नहीं बदलेगी दलितों की जिंदगी, माइंडसेट चेंज करना होगा
RSS Chief Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत ने वाल्मीकि जयंती के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा है कि सिर्फ कानून से दलितों की जिंदगी नहीं बदल सकती, मन को भी बदलना होगा.
Mohan Bhagwat On Dalit: दशहरा पर आरएसएस (RSS) के कार्यक्रम में मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने जाति व्यवस्था, जनसंख्या और महिला सशक्तिकरण को लेकर बातें कहीं थीं. उसके कुछ दिन बाद उन्होंने एक बार फिर जाति व्यवस्था को लेकर कहा कि 21वीं सदी में जाति व्यवस्था को कोई प्रासंगिकता नहीं है. इब रविवार, 9 अक्टूबर 2022 को कहा कि आरएसएस महर्षि वाल्मीकि की पूजा करने वालों का पूरा समर्थन करेगा.
कानपुर के नानाराव पार्क में बाल्मीकि समाज के आयोजित एक कार्यक्रम में लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि महर्षि बाल्मीकि के बिना भगवान राम की कल्पना नहीं की जा सकती. पूरे हिंदू समुदाय में उनकी महिमा होनी चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने समाज के लोगों से अपील की कि वो शाखा से जुड़ें और आरएसएस कार्यकर्ताओं के साथ दोस्ती करें. उसके बाद मुझे ऐसा लगता है कि अगले 10 से 30 सालों में एक ऐसी बाल्मीकि जयंती होगी जिसे पूरी दुनिया मनाएगी.
दिल और दिमाग बदलने की जरूरत
उन्होंने कहा कि लोगों को अधिकार देने का कानून अकेले बदलाव नहीं ला सकता. इसके लिए दिल और दिमाग को भी बदलने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि बाल्मीकि समाज अभी भी बहुत कमजोर और पिछड़ रहा है. इसे आगे आना होगा. संविधान में प्रावधान किए गए हैं. सरकार अपना काम कर रही है, इसके बाद भी अगल अपनापन नहीं है तो इससे क्या फायदा.
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि देश को संविधान देते समय डॉ. भीमराव अंबेडकर ने टिप्पणी की थी कि पिछड़े माने जाने वाले अब ऐसे नहीं रहेंगे क्योंकि वे कानून द्वारा समान हैं और दूसरों के साथ बैठेंगे. उन्होंने कहा कि तथ्य ये है कि कानून स्थापित करने से सब कुछ नहीं होगा, दिल और दिमाग को बदलने की जरूरत है. कानून ने राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान की है.
सामाजिक स्वतंत्रता के बिना जाति व्यवस्था खत्म नहीं
उन्होंने कहा कि जाति व्यवस्था तब तक खत्म नहीं होगी जब तक सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं हो जाती. भागवत ने कहा कि पहला वाल्मीकि मंदिर नागपुर में खोला गया था और वह वहां गए थे. उन्होंने यह भी कहा कि वर्ण जाति व्यवस्था की अवधारणा को भुला दिया जाना चाहिए क्योंकि यह अतीत की बात थी. उन्होंने समुदाय के सदस्यों से संघ की शाखाओं में शामिल होने का आह्वान किया.
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