नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने आरक्षण का समर्थन किया है. भागवत ने कहा है कि संविधान में आरक्षण की जो व्यवस्था है उस पर संघ का पूरा समर्थन है. एससी-एसटी एक्ट को लेकर उन्होंने कहा है कि इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए. दिल्ली में आयोजित 'भविष्य का भारत' कार्यक्रम का आज आखिरी दिन है. आज मोहन भागवत सवालों के जवाब दे रहे हैं. पिछले दो दिनों में श्रोताओं से कुल 25 सवाल लिए गए हैं.


सवाल- आरक्षण पर संघ का मत और संघर्ष का हल क्या है?

मोहन भागवत- सामाजिक विषमता को हटाकर सभी को समान अवसर के लिए संविधान है. संविधान में आरक्षण की जो व्यवस्था है उस पर संघ का पूरा समर्थन है. कब तक चलेगा ये उन्हें ही तय करना है, जिन्हें लाभ मिला हुआ है. जब उन्हें लगेगा वे तय करेंगे. क्रीमी लेयर का क्या करना है ये समाज ही तय करेगा. आरक्षण समस्या नहीं है. आरक्षण पर राजनीति समस्या है. हाथ से हाथ मिलाकर जो गड्ढे में गिरा है उसे ऊपर लाना चाहिए. एक हजार साल की बेमानी दूर करने के लिए 100-150 साल झुक कर रहना पड़े तो महंगा सौदा नहीं है. सभी हमारे हैं.

सवाल- एससी-एसटी एक्ट पर जो आक्रोश पैदा हुआ है, ये कैसे दूर होगा?

मोहन भागवत- एक परिस्थिति तो है उसे दूर करना चाहिए, इसलिए कानून बना. उस कानून को ठीक से लागू करना चाहिए. उसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए. सद्भावना पैदा करने के बहुत आवश्यकता है. संघ की इच्छा है कि समजिक सद्भाव से इसे हल करना चाहिए.

सवाल- क्या मॉब लिंचिंग उचित हैगौ रक्षा कैसे होगी?


मोहन भागवत- किसी भी प्रश्न पर हिंसा करना, अत्यंत अनुचित व्यवहार है. उसपर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए. केवल गाय क्यों?  मैं पशु चिकित्सक हूं, ये आस्था का विषय भी है. गौ रक्षा केवल कानून से नहीं होगी. गौ रक्षा करने वाले पहले गाय रखें लेकिन वह रखेंगे नहीं बल्कि उन्हें खुला छोड़ देंगे, इसलिए गौ रक्षा पर सवाल उठते हैं. अच्छी गौशाला चलाने वाले मुसलमान भी देश में हैं. लोग लिंचिंग पर तो आवाज़ करते हैं, लेकिन गौ तस्कर जो हमला करते हैं उस पर आवाज़ नहीं करते. ये प्रवत्ति गलत है. जो उपद्रवी तत्त्व हैं, उन्हें छोड़ दें. गौ रक्षा करनी चाहिए.


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सवाल- हिन्दुज़्म को हिंदुत्व कहा जा सकता है?


मोहन भागवत- हिंदुत्व को हिन्दुज़्म नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इज़्म का मतलब ‘बंद’ है. राधामोहन जी का एक कोड है उसका एक हिस्सा ही बता सकता हूं. हिदुत्व ही तालमेल का आधार बन सकता है. कुछ लोग जानते हैं और कुछ लोग गर्व से कहते हैं. कुछ लोग किसी कारणवश इसे स्वीकार नहीं करते हैं. भारत में इतनी विविधता है कि कई बार एक दूसरों के विरोधी भी लगते हैं. भारत में परायापन नहीं है, ये हमने पैदा किया है.


सवाल- क्या सामाजिक समरसता के लिए रोटी-बेटी का व्यवहार किया जा सकता है?


मोहन भागवत- रोटी बेटी का सम्बंध का हम समर्थन करते हैं. रोटी का तो ठीक है लेकिन जब बेटी का सम्बंध करते है तो ये दो व्यक्तियों का नहीं बल्कि दो परिवारों का सम्बंध होता है. इसलिए हम इसका समर्थन करते हैं. महारष्ट्र में साल 1942 में पहला अंतरजातीय विवाह हुआ था. अगर परसेंटेज निकाला जाए तो आरएसएस के स्वयंसेवकों का परसेंटेज सबसे ज़्यादा निकलेगा. जब हम ये करेंगे तो हिन्दू समाज बटेगा नहीं. ये हम सुनिश्चित कर सकते हैं, लेकिन हिन्दू समाज बटेगा नहीं क्योंकि हिंदुत्व, हिन्दू की आत्मा है और शरीर बहुत दिनों तक अलग नहीं रह सकता.


सवाल- हिन्दू समाज जाति व्यवस्था को कैसे देखता हैहिन्दू समाज में एससी/एसटी का क्या स्थान है?


मोहन भागवत- इसे जाति व्यवस्था कहते हैं, ये गलत है.  ये व्यवस्था कहां है? ये तो अव्यवस्था है. ये खत्म होना तय है. हम विषमता में भरोसा नहीं करते. ये लंबी यात्रा है और करनी पड़ेगी. हम संघ में जाति नहीं पूछते. जब मैं संघचालक चुना गया तो मीडिया ने चलाया कि भागवत चुने गए, लेकिन ओबीसी को प्रतिनिधित्व देना है इसलिए सोनी जी को बनाया गया. जब मैंने पूछा कि सोनी जी आप ओबीसी में आते हैं क्या? वे मुस्कुरा दिए और आज तक मुझे नहीं पता है कि सोनी जी क्या हैं.


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सवाल- शिक्षा में परम्परा और आधुनिकता का समावेश, पैराणिक ग्रंथों का समावेश, संघ का क्या दृष्टिकोण है.


मोहन भागवत- परम्परा से हमारी शिक्षा व्यवस्था, सभी की शिक्षित करने वाली और मनुष्य बनाने वाली थी. हम धर्म की शिक्षा भले ही न दें लेकिन मूल्यों और उनसे निकलने वाले संस्करों की शिक्षा देनी चाहिए. शिक्षा का स्तर नहीं गिरता, शिक्षा लेने और देने वालों का स्तर गिरता है. हमारे देश मे शिक्षा नीति में आमूल चूल परिवर्तन की ज़रूरत है. निजी क्षेत्र में भी बड़े अच्छे काम हो रहे हैं और ये जारी रहा तो सरकार भी एक दिन निजी शिक्षा क्षेत्र का अनुसरण करेगी.


सवाल- हिंदी कब राष्ट्र भाषा बन पाएगीअंग्रेजी का प्रभुत्व नीति नियामक संस्थओं में ज़्यादा हैहिंदी या संस्कृत का होना चाहिए.

मोहन भागवत- अंग्रेजी से कोई शत्रुता नहीं है, लेकिन अच्छी हिंदी बोलने वाले हो, अच्छी एक भाषा हम सीखे, एक भाषा बनाने से अगर देश में कटुता बढ़े तो हमें मन कैसे बने ये सोचना चाहिए. हिंदी के अतिरिक्त दूसरी भाषाओं में से एक भाषा हिंदी भाषी सीखे तो गैर हिंदी भाषी भी हिंदी सीखने में आगे आएंगे. संस्कृत विद्यालय इसलिए कम हो रहे हैं, क्योंकि हम वरीयता नहीं देते हैं. अपनी मातृ भाषा ज़रूर आनी चाहिए.

सवाल- लड़कियों और महिला सुरक्षा को लेकर संघ की क्या दृष्टि हैसंघ ने इस पर क्या किया हैकानून का भय क्यों नहीं है?

मोहन भागवत- महिला पहले ज्यादातर वक्त घर में रहती थी तो परिवार वालों की ज़िम्मेदार थी. अब जब महिला कंधे से कंधे मिलाकर बाहर निकल रही है तो उसे अपनी सुरक्षा के लिए तैयार करना होगा. महिला तब असुरक्षित होती है जब पुरुष की दृष्टि बदलती है. अपनी पत्नी को छोड़कर सभी को माता के रूप में देखना ये संस्कार थे. अब इसे संघ के स्वयंसेवक करते हैं. एबीवीपी  इसे कर रहा है.

मोहन भागवत ने कहा कि कानून का डर कम क्यों हैं, क्योंकि कानून का पालन समाज नहीं करता. देश में कई इलाके ऐसे हैं जहां पांच  बजे के बाद महिला नहीं निकलती. जबकि कई जगह रात में आभूषण पहन कर निकलती है. ये माहौल है. इसे बनाना पड़ेगा.

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