नागपुर: लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर को लेकर सियासत खूब हो रही है. शिवसेना के बाद अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने कहा है कि राम मंदिर के लिए सरकार को कानून लाना चाहिए. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आज कहा, ''राष्ट्र के ‘स्व’ के गौरव के संदर्भ में अपने करोड़ों देशवासियों के साथ श्रीराम जन्मभूमि पर राष्ट्र के प्राणस्वरूप धर्म मर्यादा के विग्रहरूप श्रीरामचन्द्र का भव्य राममंदिर बनाने के प्रयास में संघ सहयोगी है.''


विजयदशमी के अवसर पर अपने संबोधन में मोहन भागवत ने नागपुर में कहा, ''श्रीराम मंदिर का बनना स्वगौरव की दृष्टि से आवश्यक है, मंदिर बनने से देश में सद्भावना व एकात्मता का वातावरण बनेगा.''  भागवत ने कहा, 'राम जन्मभूमि स्थल का आवंटन होना बाकी है, जबकि साक्ष्यों से पुष्टि हो चुकी है कि उस जगह पर एक मंदिर था. राजनीतिक दखल नहीं होता तो मंदिर बहुत पहले बन गया होता. हम चाहते हैं कि सरकार कानून के जरिए (राम मंदिर) निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे.'


आपको बता दें कि अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद का मामला सुप्रीम कोर्ट में है. विपक्षी दलों और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट की दुहाई देते हुए यह कहती रही है कि अदालत के फैसले के आधार पर निर्णय लिया जाएगा.


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मंदिर नहीं बनने बताए कारण


आरएसएस प्रमुख ने मंदिर नहीं बनने के कारण गिनाए हुए कहा, 'राष्ट्रहित के इस मामले में स्वार्थ के लिए सांप्रदायिक राजनीति करने वाली कुछ कट्टरपंथी ताकतें रोड़े अटका रही हैं. राजनीति के कारण राम मंदिर निर्माण में देरी हो रही है.'


इस बीच भागवत ने कहा है कि राम मंदिर जल्द से जल्द बने और इसमें किसी का भी हस्तक्षेप न हो, हम संतों के साथ हैं. पिछले दिनों शिवसेना ने भी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाने की मांग की थी. विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) भी राम मंदिर को लेकर आंदोलन चला रही है.


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भागवत ने कहा, ''हमारी पहचान हिन्दू पहचान है जो हमें सबका आदर, सबका स्वीकार, सबका मेलमिलाप व सबका भला करना सिखाती है. इसलिए संघ हिन्दू समाज को संगठित व अजेय सामर्थ्य संपन्न बनाना चाहता है और इस कार्य को सम्पूर्ण संपन्न करके रहेगा.''


सबरीमाला मंदिर विवाद पर भी बोले भागवत
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री को लेकर हो रहे विवाद पर मोहन भागवत ने कहा, ''सबरीमाला देवस्थान के सम्बंध में सैकड़ों वर्षों की परम्परा, जिसकी समाज में स्वीकार्यता है, के स्वरूप व कारणों के मूल का विचार नहीं किया गया. धार्मिक परम्पराओं के प्रमुखों का पक्ष, करोड़ों भक्तों की श्रद्धा, महिलाओं का बड़ा वर्ग इन नियमों को मानता है की बात नहीं सुनी गयी.''