नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 7 जून को राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) के मंच पर नजर आएंगे. लंबे समय तक कांग्रेस में रहे मुखर्जी के इस फैसले से सियासी जानकार अचरज में हैं. इसकी बड़ी वजह वैचारिक भिन्नता है. कांग्रेस आरएसएस की धुर-विरोधी रही है. प्रणब मुखर्जी के संघ के कार्यक्रम में जाने पर कांग्रेस ने आधिकारिक टिप्पणी तो नहीं की है लेकिन कई नेताओं का मानना है कि उन्हें आरएसएस के मंच पर नहीं जाना चाहिए. इस बीच आरएसएस ने इसे बेजा विरोध करार दिया है.
आरएसएस के कार्यक्रम में जाने पर आरएसएस के सर सह कार्यवाह मनमोहन वैद्य लेख लिख कर कहा है कि डॉ. मुखर्जी एक अनुभवी और परिपक्व राजनेता हैं. संघ ने उनके व्यापक अनुभव और उनकी परिपक्वता को ध्यान में रखकर ही उन्हें स्वयंसेवकों के सम्मुख अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया है. वहां वह भी संघ के विचार सुनेंगे. इससे उन्हें भी संघ को सीधे समझने का एक मौका मिलेगा. विचारों का ऐसा आदान-प्रदान भारत की पुरानी परंपरा है. मनमोहन वैद्य़ ने लिखा कि विरोध करने वाले लोग साम्यवाद के उन विचारों से प्रभावित है जो 'हिंसा' और 'असहिष्णुता' का रास्ता अख्तियार करते है.
मनमोहन वैद्य ने वामपंथी विचारधारा और कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि विचार और डर की वजह से वो प्रणब मुखर्जी का विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि साम्यवादी न केवल दूसरे के विचारों को सुनने से इंकार करते है बल्कि उसका विरोध भी करते है.
'कांग्रेस को विचारों के आदान-प्रदान में विश्वास नहीं'
मनमोहन वैद्य ने पुरानी एक घटना का जिक्र करते हुए लिखा है कि कुछ साल पहले संघ के ऐसे ही कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध समाजसेवी डॉ. अभय बंग नागपुर आए थे. तब महाराष्ट्र के साम्यवादी और समाजवादी विचारकों ने उनका विरोध किया था. विरोध के बावजूद वह कार्यक्रम में आए. उन्होंने अपने भाषण लेख के रूप में ‘साध’ साप्ताहिक को भेजा, क्योंकि उसी में उनके विरुद्ध अनेक लेख प्रकाशित हुए थे. लेकिन ‘साध’ के संपादक ने उनका लेख प्रकाशित नहीं किया. साम्यवादी लोग विचारों के आदान-प्रदान में विश्वास ही नहीं रखते, क्योंकि आप उनसे असहमत नहीं हो सकते.
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मनमोहन वैद्य ने एक और घटना का जिक्र करते हुए लिखा है कि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में दत्तात्रेय होसबले को संघ की बात रखने के लिए निमंत्रण मिला. हमने जाने का निर्णय लिया तो साम्यवादी मूल के कथित विचारकों ने विरोध किया. सीताराम येचुरी ने इसका बहिष्कार केवल इसलिए किया कि वहां संघ को अपनी बात कहने के लिए मंच दिया जाएगा.
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मनमोहन वैद्य ने कहा कि भारत के वैचारिक जगत में कम्युनिस्ट विचारों का वर्चस्व होने के कारण और कांग्रेस सहित अन्य प्रादेशिक और जाति आधारित दलों के पास स्वतंत्र चिंतकों का अभाव है या उनके कथित चिंतकों में कम्युनिस्ट मूल के लोग होने के कारण वे उदारता, मानवता, लोकतंत्र, सेक्युलरिज्म आदि जुमलों का उपयोग करते हुए कम्युनिस्ट वैचारिक असहिष्णुता का परिचय कराते रहते हैं.
क्या कांग्रेस को मुखर्जी पर भरोसा नहीं है?
वैद्य ने कहा कि क्या कांग्रेसियों को प्रणब मुखर्जी जैसे कद्दावर नेता पर भरोसा नहीं है? प्रणब मुखर्जी की तुलना में कहीं कम अनुभवी कांग्रेसी नेता उन्हें नसीहत क्यों दे रहे हैं? किसी स्वयंसेवक ने यह क्यों नहीं पूछा कि इतने पुराने कांग्रेसी नेता को हमने क्यों बुलाया है? संघ की वैचारिक उदारता और संघ आलोचकों की सोच में वैचारिक संकुचितता, असहिष्णुता और अलोकतांत्रिकता का यही फर्क है. भिन्न विचार के लोगों में विचार-विमर्श भारत की परंपरा है. प्रणब मुखर्जी के संघ के आमंत्रण को स्वीकारने से देश के राजनीतिक-वैचारिक जगत में जो बहस छिड़ी उससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हिमायती लोगों का असली चेहरा सामने आ गया है.
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