नई दिल्लीः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े एक संगठन ने मंगलवार को कहा कि विद्यालयों में यौन शिक्षा देने या इसे केन्द्र की प्रस्तावित नई शिक्षा नीति के तहत पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि इससे बच्चों पर नकारात्मक असर पड़ेगा. शिक्षाविद् दीनानाथ बत्रा द्वारा स्थापित शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास (एसएसयूएन) ने हालांकि सुझाव दिया कि छात्रों और परिजनों को "जरूरत आधारित परामर्श" दिये जा सकते हैं.


नई शिक्षा नीति के मसौदे में कहा गया है कि यौन शिक्षा को सहमति, उत्पीड़न, महिलाओं के प्रति सम्मान, सुरक्षा, परिवार नियोजन और यौन रोगों की रोकथाम के लिए माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में भी शामिल किया जाएगा.


पिछली बीजेपी नीत एनडीए सरकार ने आर के कस्तूरीरंगन की अगुवाई में समिति का गठन किया था जिसने मसौदा नीति तैयार की थी. इसे इस वर्ष मई में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को सौंपा गया था.


एसएसयूएन के सचिव अतुल कोठारी ने 'सेक्स' शब्द पर कड़ी आपत्ति जताते हुए पत्रकारों से कहा, "विद्यालयों में यौन शिक्षा के अध्यापन या इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की कोई आवश्कता नहीं है. अगर आवश्यकता हुई तो छात्रों को विद्यालयों में परामर्श दिये जा सकते हैं."


उन्होंने कहा कि बच्चों के अलावा यह जरूरी है कि उनके परिजनों को भी इस संबंध में परामर्श दिये जाएं. उन्होंने कहा कि स्कूलों में छात्रों को "मानव शरीर, इसकी संरचना और भागों के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए, जो पहले से ही विज्ञान विषय के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है."


स्कूलों में यौन शिक्षा के विरोध पर तर्क रखते हुए कोठारी ने दावा किया कि जहां भी इसे लागू किया गया है, इसका नकारात्मक प्रभाव देखा गया और इससे बचा जाना चाहिए.


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