MS Golwalkar On Uniform Civil Code: यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है. हाल ही में पीएम मोदी (PM Modi) की ओर से यूसीसी की वकालत करने के बाद इस मुद्दे पर चर्चा और तेज हो गई है. यूसीसी (UCC) पर राजनीतिक दलों की भी मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. यूसीसी का विरोध करने वाले अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिवगंत नेता माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर को याद कर रहे हैं. 


कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने हाल ही में गोलवलकर को लेकर ट्वीट किया था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता गोलवलकर भी समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के खिलाफ थे. जिसके बाद एमएस गोलवलकर का नाम चर्चा में है. उन्होंने अंग्रेजी अखबार 'मदरलैंड' के संपादक केआर मलकानी को 1972 में इंटरव्यू दिया था. जिसमें उन्होंने यूसीसी पर अपनी बात रखी थी. इस बारे में 'श्री गुरुजी समग्र' में भी लिखा गया है. जो गोलवलकर के पत्रों, साक्षात्कारों और बातचीत का संकलन है.


क्या कहा था गोलवलकर ने?


गोलवलकर से सवाल किया गया था कि क्या आपको नहीं लगता कि राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा देने के लिए समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है? इसपर उन्होंने कहा था कि मुझे ऐसा नहीं लगता. इस मुद्दे पर मैं जो कहूंगा वह आपको और कई अन्य लोगों को आश्चर्यचकित कर सकता है, लेकिन ये मेरा विचार है. मुझे वही सत्य बोलना चाहिए जो मैं देखता हूं.


उनसे सवाल किया गया था कि क्या आप इस बात से सहमत नहीं हैं कि राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए एकरूपता की आवश्यकता है? इसपर गोलवलकर ने कहा था कि सामंजस्य और एकरूपता दो अलग चीजें हैं. समरसता के लिए एकरूपता आवश्यक नहीं है. भारत में हमेशा से असीमित विविधताएं रही हैं. इसके बावजूद भी हमारा देश प्राचीन काल से ही मजबूत एवं सुसंगठित रहा है. एकता के लिए हमें एकरूपता नहीं, बल्कि सामंजस्य की आवश्यकता है. 


मुसलमानों को लेकर कही थी ये बात


गोलवलकर ने कहा था कि मेरे विचार में, कई लोगों को समान नागरिक संहिता की आवश्यकता का एहसास होने का कारण ये है कि वे सोचते हैं कि मुस्लिम आबादी असंगत तरीके से बढ़ रही है. क्योंकि उनके पुरुषों को चार पत्नियां रखने की अनुमति है. मुझे डर है कि ये समस्या को देखने का नकारात्मक तरीका है. मेरा नजरिया बिल्कुल अलग है. जब तक मुसलमान इस देश और इसकी संस्कृति से प्यार करते हैं, उन्हें अपनी जीवनशैली के अनुसार जीने का अधिकार है.


उनसे सवाल किया गया कि क्या आप नहीं मानते कि मुसलमान समान नागरिक संहिता का विरोध सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वे अपना अलग अस्तित्व बनाए रखना चाहते हैं? इसपर गोलवलकर ने कहा था कि मुझे अपनी व्यक्तिगत पहचान या अस्तित्व बनाए रखने की चाहत रखने वाली किसी भी जाति, समुदाय या वर्ग से तब तक कोई झगड़ा नहीं है, जब तक कि अलग अस्तित्व की ये चाहत उन्हें राष्ट्रवाद की भावना से दूर न कर दे. 


संविधान को लेकर क्या कुछ कहा था?


गोलवलकर से सवाल किया गया था कि संविधान के निर्देशक सिद्धांतों में कहा गया है कि राज्य यूसीसी के लिए प्रयत्न करेगा. जिसपर उन्होंने कहा था कि ये ठीक है. ऐसा नहीं कि समान नागरिक संहिता से मेरा कोई विरोध है, लेकिन संविधान में कोई बात होने मात्र से ही वांछनीय नहीं बन जाती. फिर ये भी तो है कि अपना संविधान कुछ विदेशी संविधानों के जोड़-तोड़ से निर्मित हुआ है. वह न तो भारतीय जीवन दृष्टिकोण से रचा गया है और न उसपर आधारित है.


समान नागरिक संहिता जरूरी नहीं है तो फिर समान दंड विधान की क्या आवश्यकता है? इस सवाल पर गोलवलकर ने कहा था कि दोनों में अंतर है. नागरिक संहिता का संबंध व्यक्ति एवं उसके परिवार से है. जबकि दंड विधान का संबंध न्याय व्यवस्था और अन्य बातों से है. 


गोलवलकर से सवाल किया गया था कि क्या मुस्लिम बहनों को पर्दे में बनाए रखना और बहुविवाह का शिकार होने देना योग्य है? इसपर उन्होंने कहा था कि मुस्लिम प्रथाओं के प्रति आपकी आपत्ति यदि मानवीय कल्याण पर आधारित है तो यह उचित है. 


"मुसलमान खुद ही अपने पुराने नियम-कानूनों में सुधार करें"


उन्होंने कहा था कि ऐसे मामलों में सुधारवादी दृष्टिकोण ठीक ही है, लेकिन यांत्रिक ढंग से कानून के जरिए सबको समान लाने का दृष्टिकोण रखना ठीक नहीं होगा. मुसलमान खुद ही अपने पुराने नियम-कानूनों में सुधार करें. यदि वे इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि बहुविवाह प्रथा उनके लिए ठीक नहीं है, तो मुझे खुशी होगी, लेकिन मैं अपना मत उन पर लादना नहीं चाहता.


माधव सदाशिव गोलवलकर आरएसएस के दूसरे और सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले सरसंघचालक थे. वे गुरुजी गोलवलकर के नाम से लोकप्रिय थे और 1940 से लेकर 1973 तक 33 वर्षों तक आरएसएस के प्रमुख रहे थे. 


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