देश के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा ने कहा कि शासकों को इस बात का आत्म निरीक्षण करना चाहिए कि क्या उनके लिए गए फैसले अच्छे हैं. उन्हें यह भी जांचना चाहिए कि उनमें कोई दुर्गुण तो नहीं है. एन वी रमना ने सोमवार को आंध्र प्रदेश में श्री सत्य साईं इंस्टीट्यूट ऑफ हायर लर्निंग के 40वें दीक्षांत समारोह में यह बात कही.


न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, 'लोकतंत्र में सभी शासकों को अपना नियमित काम शुरू करने से पहले खुद का आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि क्या उनमें कोई बुराइयां हैं. इस समय सिर्फ प्रशासन देने की जरूरत है और यह लोगों की जरूरतों के मुताबिक होना चाहिए. यहां कई बुद्धिमान लोग हैं, जो देश में और दुनियाभर में जो गतिविधियां हो रही हैं, उसे देख रहे हैं.'


चीफ जस्टिस ने कहा, कोरोना वायरस महामारी ने हमारी सोसाइटी में कमजोरियों की गहरी जड़ों को उजागर कर दिया है. इससे असमानता भी बढ़ी है. चीफ जस्टिस ने आगे कहा, आपात स्थिति के दौरान सेवा का लोकाचार और भी ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है. ध्यान दीजिए कि पिछले दो सालों में पूरी दुनिया में क्या हुआ है. दुनिया में अप्रत्याशित बदलाव आए हैं. ऐसे समय में निःस्वार्थ सेवा समय की मांग है. चीफ जस्टिस ने कोविड के समय इंस्टिट्यूट के छात्रों द्वारा की गई मदद की सराहना की.  वसुधैव कुटुंबकम की जरूरत पर जोर देते हुए सीजेआई ने कहा कि यह अवधारणा भारत के लोकाचार में समाई हुई है. 


सीजेआई ने इस दौरान श्री सत्य साईं बाबा को भी नमन किया.साल 1981 में इस इंस्टिट्यूट की स्थापना सत्य साईं बाबा ने की थी. मंगलवार को सत्य साईं बाबा की 96वीं जयंती है.  शिक्षा के जरिए नैतिक मूल्यों को विकसित करने की जरूरत पर जोर देते हुए, चीफ जस्टिस ने आधुनिक शिक्षा की आलोचना करते हुए कहा कि यह केवल "उपयोगितावादी कार्य" करता है.


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