दोषियों को फांसी देते वक्त मौजूद रहते हैं ये लोग, जानिए- क्या हैं नियम?
फिल्मों की फांसी का सीन कुछ हद तक सही होता है लेकिन असल में फांसी पर लटकाने के नियम फिल्मी दृश्यों से थोड़े अलग होते हैं. कैदी को फांसी देने में एक सेंटीमीटर की चौड़ाई वाली रस्सी का इस्तेमाल होता है.
नई दिल्ली: निर्भया रेप केस में बहुत जल्द दोषियों को फांसी देने पर फ़ैसला होने की उम्मीद है. दोषी करार दिये गए चार में से एक दोषी ने कोर्ट में अर्ज़ी डाली है, जिसकी वजह से फांसी में एक अड़चन आ गई. हालांकि सबको उम्मीद है कि कोर्ट से यह याचिका ख़ारिज हो जाएगी और बहुत जल्द सभी दोषियों को फांसी दे दी जाएगी.
फिल्मों में फांसी होने का सीन हम सबने देखा होगा लेकिन बहुत कम लोगों ने असली फांसी घर देखा होगा. काल कोठरी और कोठरी के ऊपर का दरवाज़ा कैसा होता है, कैसे खुलता है और कौन-कौन से नियमों का पालन करते हुए जल्लाद दोषी को फांसी के फंदे पर लटकाते हैं, ये कहानी कम ही लोगों को पता होगी. आज हम आपको इसे लेकर सारे नियम बताने जा रहे हैं.
फिल्मों की फांसी का सीन कुछ हद तक सही होता है लेकिन असल में फांसी पर लटकाने के नियम फिल्मी दृश्यों से थोड़े अलग होते हैं. लोहे के फ्रेम में लटकी हुई रस्सी पर कैदी को लटकाने से पहले उसके हाथ जल्लाद बांध देते हैं. फांसी घर में जेल प्रशासन के अधिकारियों के अलावा एक डॉक्टर भी मौजूद होता है. फ़िल्मी सीन हमेशा भरी दोपहरी के होते हैं लेकिन जेल मैनुअल के मुताबिक़ किसी भी कैदी को फांसी देने के लिए भोर का वक़्त मुकर्रर होता है. यानी सूर्योदय से पहले ही फांसी दे दी जाती है. फांसी से पहले कैदी के मुंह पर काला कपड़ा बांधने या उसकी अंतिम इच्छा पूछने जैसा कोई नियम जेल मैनुअल में नहीं होता है. हालांकि मानवीय आधार पर अगर मरने वाला कोई मानी जा सकने वाली इच्छा का इज़हार करता है तो मौजूद अधिकारियों के विवेक के आधार पर उसकी वो इच्छा पूरी कर भी दी जाती है.
फांसी देने में एक सेंटीमीटर की चौड़ाई वाली रस्सी का इस्तेमाल होता है
कैदी को फांसी देने में एक सेंटीमीटर की चौड़ाई वाली रस्सी का इस्तेमाल होता है. फांसी से एक दिन पहले कैदी के वजन के बराबर बालू एक बोरे में रखकर उसे रस्सी से फंदे पर लटकाते हैं जिससे रस्सी की मज़बूती जांची जा सके. इस रस्सी का फंदा बनाकर अल सुबह जब कैदी को लटकाया जाता है, तब उसको आधे घण्टे तक फंदे पर ही छोड़ देते हैं. इसके बाद मौके पर मौजूद डॉक्टर जांच करते हैं कि कैदी की मौत हो गई या नहीं. इसके बाद जब मौत की पुष्टि हो जाती है, तब मृतक को रस्सी के सहारे नीचे स्थित काल कोठरी में लाया जाता है. शव को वहां से निकालकर अगर घर वाले शव लेने को तैयार हों तो उन्हें सौंप दिया जाता है. अगर मृतक का कोई नहीं है या घर के लोग उसके शव को लेने को तैयार नहीं हैं तो जेल प्रशासन धार्मिक रीति रिवाज से उसका अंतिम संस्कार कर देता है.
यह भी पढ़ें-
सावरकर को लेकर फंस गई शिवसेना, बीजेपी को मिल गया निशाना साधने का मौका
जामिया का माहौल बिगाड़ने में राजनैतिक पार्टियों की बड़ी भूमिका- मनोज तिवारी