Rupee Vs Dollar: रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचा रुपया, जानिए रुपये की ढलान का 75 सालों का इतिहास और इसका गणित
Dollar vs Rupee: रुपये की कीमत कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है. जैसे महंगाई, रोज़गार, व्यापारिक घाटा, विदेशी मुद्रा भंडार, इक्विटी मार्केट का उतार चढ़ाव, इंटरेस्ट रेट, GDP आदि.
Indian Rupees vs Dollar: कोई वक्त था जब देश के आज़ाद होने से पहले डॉलर (Dollar) के मुकाबले रुपए की वैल्यू 1 रुपए के बराबर थी लेकिन जब देश आज़ाद हुआ भारत की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) पर से ब्रिटिश राज का साया हटते ही रिजर्व बैंक (RBI) के डेटा के मुताबिक 1 डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरकर 4.76 रुपए पर पहुंच गई. जिसके बाद से ही डॉलर के मुकाबले रुपये (Indian Rupees) की कीमत लगातार गिरती जा रही है और आज देखते देखते 1 डॉलर की कीमत 80 रुपये को पार कर गई.
लोकसभा में केंद्र सरकार (Central Government) ने लिखित जवाब दिया है कि 2014 के बाद से यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के सत्ता संभालने के बाद से रुपए की वैल्यू 16.80 रुपये तक कम हो चुकी है यानी 8 साल में रुपये की वैल्यू में 25.39% की गिरावट आ चुकी है. लेकिन वो क्या कारण रहे कि आज़ादी के बाद से ही रुपये की कीमत लगातार गिरती जा रही है और इतिहास में कब कब रुपये की कीमत में भारी गिरावट आई. साथ ही बताएंगे आपोक कि रुपए की डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू कि बातों पर निर्भर करती है और आखिर क्यों रुपये की वैल्यू को डॉलर के साथ ही जोड़कर देखा जाता है. तो चलिए आज सुनाते हैं आपको किस्सा पिछले 75 साल में डॉलर की उड़ान और रुपये की ढलान का.
आजादी के बाद से रुपये की कीमत में गिरावट जारी
1947 में भारत के आज़ाद होने के बाद भारत की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए कर्ज़ की ज़रूरत थी और विदेशी व्यापार (Foreign Trade) को बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू को कम कर 4.76 पैसे कर दिया. यानी अब 1 डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 4.76 पैसे थी. 1962 तक रुपए की यही वैल्यू बनी रही लेकिन 1962 का युद्ध फिर 1965 की जंग के बाद भारत की अर्थव्यावस्था को झटका लगा और 1967 आते आते सरकार ने रुपये को फिर से डीवैल्यू कर दिया और 1 डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत हो गई 7.50 रुपए. असल में उस वक्त सरकार डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू को खुद ही मोनीटर करती थी यानी डॉलर के मुकाबले रुपए की कितनी वैल्यू होगी ये सरकार ही तय करती थी. इस सिस्टम को कहा जाता था Fixed Exchange Rate System.
फिर 1971 में रुपये को GBP यानी Great Britan Pound से अलग कर दिया गया और उसे सीधे डॉलर के साथ जोड़ दिया गया जिससे रुपए की वैल्यू में और गिरावट देखी गई. जिसके बाद 1977 में ये 8.76 रुपए और 1987 आते आते इसकी कीमत 12.95 पैसे पर पहुंच गई. यहां तक भी चीज़ें ठीक चल रही थीं लेकिन साल 1991 में इकॉनोमिक स्लोडाउन के बाद नरसिम्हा सरकार और तात्कालीन फाइनेंस मिनिस्टर मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोल दिया. हालांकि, तब तक भारत का फॉरन रिसर्व लगभग सूख चुका था.
1997 तक रुपए की कीमत 36.31 रुपये तक लुढ़की
1991 में सरकार ने रुपये को फिर से डीवेल्यू किया और 1 डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 17 रुपए को पार कर गई. 1993 आते आते सरकार को समझ आ चुका था कि रुपये की लुड़कती वैल्यू अब उनके हाथ से बाहर होती जा रही है. ऐसे में नरसिम्महा सरकार ने Fixed Exchange Rate System की जगह Flexible Exchange Rate System की पॉलिसी अपना ली यानी डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत को बाज़ार के हवाले कर दिया गया. जिसके बाद रुपये की वैल्यू तेज़ी से गिरनी शुरू हुई और 1997 आते-आते डॉलर के मुकाबल रुपए की कीमत 36.31 रुपए तक लुढ़क गई.
आने वाले वक्त में न तो इस ढलान को अटल बिहारी वाजपाई की सरकार संभाल सकी और न ही मनमोहन सिंह और इस तरह दिसंबर 2014 तक रुपए की कीमत 63.33 रुपए पर पहुंच गई. 2014 में कभी रुपये की लुढ़कती कीमत को चुनावी मुद्दा बनाने वाली भाजपा भी आज 8 साल बाद लुढ़कते रुपए की कीमत को नहीं संभाल पाई और आज रुपए ने गिरावट के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. अब यहां दो सवालों का जवाब खोजना लाज़मी है पहला रुपया गिर क्यों रहा है और क्यों डॉलर के साथ ही रुपये की वैल्यू को मापा जाता है?
डॉलर के मुकाबले रुपये के लुढ़कने की वजह
असल में रुपये की कीमत कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है. जैसे महंगाई, रोज़गार, व्यापारिक घाटा, विदेशी मुद्रा भंडार, इक्विटी मार्केट का उतार चढ़ाव, इंटरेस्ट रेट, GDP वगैराह. नटशेल में बात करें तो डॉलर के मुकाबले रुपये के लुढ़कने की सबसे बड़ी वजह फॉरन रिज़र्व में गिरावट होती है. अगर फॉरन रिज़र्व कम होगा तो रुपया कमज़ोर होगा और अगर ये ज्यादा होगा तो रुपया मज़बूत होगा.
इसे हाल ही की घटनाओं से ही मिलाकर देखें तो जहां सितंबर 2021 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 642.45 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था. वहीं, 24 जुन 2022 आते-आते ये कम होकर $593.32 बिलियन डॉलर पर आ गया है. जिसके पीछे की सबसे अहम वजह महंगाई और क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों को बताया जा रहा है. यही वजह है कि रुपये की वैल्यू गिरती जा रही है.
इसलिए डॉलर के साथ ही रुपये की वैल्यू को किया जाता कम्पेयर
अब आते हैं अपने आखिरी सवाल पर कि आखिर क्यों डॉलर के साथ ही रुपये की वैल्यू को कम्पेयर किया जाता है. भारत ही नहीं फॉरन एक्सचेंज में ज्यादातर करंसीज़ की तुलना डॉलर से ही की जाती है जिसके पीछे की वजह है जुलाई 1944 में 44 देशों के बीच किया गया Bretton Woods Agreement. जिसे Bretton Woods में United Nations Monetary and Financial Conference के दौरान साइन किया गया था.
इस एग्रीमेंट का मेन मोटिव था फॉरन एक्सचेंज में करंसीज़ की फ्लकचुएन को खत्म करना. जिसके लिए करंसीज़ को US डॉलर के साथ जोड़ दिया गया था. तब अमेरिका अकेला ऐसा देश था जो आर्थिक तौर पर मजबूत होकर उभरा था. ऐसे में अमेरिकी डॉलर को दुनिया की रिजर्व करेंसी के तौर पर चुन लिया गया. Bretton Woods Agreement को ही IMF और World Bank का जनक भी माना जाता है.
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