रूस ने पूरे 47 साल बाद मून मिशन लॉन्च किया था, इस मिशन को 21 अगस्त को चांद की सतह पर उतरना था. लैंडिग से 2 दिन पहले खबर आई की लूना-25 स्पेसक्राफ्ट क्रैश हो गया है. रूस के स्पेसक्रॉफ्ट भेजने के कुछ दिन पहले भारत ने भी मिशन चंद्रयान के तहत चांद पर अपना स्पेसक्राफ्ट भेजा था. ये दोनों यान चांद के उस हिस्से में लैंड करने वाले थे जहां आज तक कोई भी देश सफलतापूर्वक अपनी स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग नहीं करवा पाया है. 


ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वो कौन सी गलती थी जिसके कारण रूस का  'मिशन चांद' फेल हो गया और क्या इस गलती को दोहराने से बच पाएंगे भारत के वैज्ञानिक?


पहले जानते हैं कैसे मिली लूना-25 के फेल होने की जानकारी 


दरअसल स्पेस एजेंसी रोस्कॉसमॉस ने बीते रविवार यानी 29 अगस्त को इस बात की जानकारी दी. बताया गया कि शनिवार शाम 05:27 बजे उनका स्पेसक्राफ्ट से संपर्क टूट गया था जिसके बाद सीधा क्राफ्ट के क्रैश लांडिग की ही जानकारी मिली. 


रोस्कोस्मोस के हेड यूरी बोरिसोव ने जून महीने में ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा था कि रूस का चांद मिशन काफी जोखिमों से भरा हुआ है. उन्होंने पहले ही बता दिया था कि इस मिशन की सफलता की संभावना लगभग 70 फीसदी ही होती है. 


जिस गलती के कारण फेल हुआ मिशन चांद 


स्पेस एजेंसी ने लूना-25 के फ्लाइट प्रोग्राम का हवाला देते हुए जो जानकारी दी है उसके अनुसार स्पेस क्राफ्ट को कमांड दिया गया था कि वह लूना-25 को प्री-लैंडिंग कक्षा (18 Km x 100 Km) में प्रवेश कराएं. लेकिन ये स्पेसक्राफ्ट एक्चुअल पैरामीटर यानी बताए गए कक्षा में थ्रस्टर फायर नहीं कर पाया. लूना-25 के फ्लाइट प्रोग्राम के अनुसार ये कमांड भारतीय समय के अनुसार शनिवार दोपहर 04:30 बजे दिया गया था


स्पेस एजेंसी के शुरुआती जांच से पता चलता है कि क्रैश लैंडिंग का एक कारण ये है कि कैलकुलेशन से जो पैरामीटर सेट किए गए थे स्पेसक्राफ्ट उस पैरामीटरों के हिसाब से काम नहीं कर पाया.


क्रैश लैंडिंग पर रूस ने क्या कहा


रूस ने 47 साल बाद मून मिशन लॉन्च किया था. इस मिशन के तहत 11 अगस्त को लूना-25 को सोयुज 2.1बी रॉकेट के जरिए वोस्तोनी कॉस्मोड्रोम से लॉन्च किया गया था. रूस को इस मिशन से काफी उम्मीदें भी थी लेकिन इसके फेल हो जाने के बाद सरकारी स्पेस एजेंसी रॉसकॉस्मॉस ने बताया कि उनका लूना-25 से संपर्क शनिवार के दोपहर लगभग 14.57 बजे (जीएमटी 11.57) के आसपास ही टूट गया था.


टेलीग्राफ में छपी एक रिपोर्ट में इस एजेंसी ने कहा कि, "ये स्पेसक्राफ्ट एक गैर पहचान वाली कक्षा में चला गया और चांद की सतह से टकराकर क्रैश हो गया है."


जांच के लिए बनाई गई ख़ास अंतर-विभागीय समिति


एजेंसी के अनुसार इस मिशन के फेल होने के कारणों के बारे में जांच के लिए एक ख़ास अंतर विभागीय समिति बनाई गई है. क्रैश लैंडिंग से एक दिन पहले ही रूस ने लूना-25 की भेजी एक तस्वीर साझा की थी और कहा था कि ये ज़ीमन क्रेटर की तस्वीर है. 


इस क्रैश के बाद भारत पर टिकी सबकी नजर


रूस का मिशन चांद फेल होने के बाद अब सबकी नजरें भारत पर टिक गई है. भारत का पहले से ही चांद के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने में रूस से मुकाबला किया जा रहा था. लेकिन अब जब लूना-25 क्रैश हो चुका है तो सबको भारत से उम्मीदें हैं 


वहीं जिस वक्त रूस के लूना-25 के क्रैश की खबर आई उसी वक्त भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन इसरो ने सोशल मीडिया पर बताया, "भारत का चंद्रयान-3 23 अगस्त की शाम को 6.04 बजे चांद पर लैंड करेगा.


वहीं रूस के मिशन के फेल होने पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र यानी इसरो के प्रवक्ता सुधार कुमार ने बयान जारी करते हुए कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. हर अंतरिक्ष मिशन बेहद जोखिम भरा और जटिल तकनीक वाला होता है.


स्पेसक्राफ्ट की लैंडिग सबसे जरूरी


किसी भी स्पेस्क्राफ्ट को लैंड करने से पहले के कुछ सेकेंड सबसे जरूरी समय होता है. इस वक्त सपेसक्राफ्ट की लैंडिंग पर ही सबकुछ निर्भर करता है. अगर यान हार्ड लैंड करता है तो ऐसी स्थिति में टक्कर लगने के कारण स्पेसक्राफ्ट क्रैश भी कर सकता है.


कई देश कर चुके हैं चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग


रूस के मिशन चांद फेल होने और स्पेसक्राफ्ट के क्रैश होने की खबरों के बीच इसरो ने कहा है कि भारत का चंद्रयान-3 23 अगस्त की शाम को चांद पर उतरने को तैयार है. भारत से पहले चीन और अमेरिका भी चांद पर स्पेसक्राफ्ट उतार चुके हैं लेकिन यह सॉफ्ट लैंडिंग दक्षिणी ध्रुव पर नहीं हुई थी. इस ध्रुव पर अब तक कोई भी देश सफलतापूर्वक लैंड नहीं कर पाया है.


पहले भी चांद पर उतरने का मिशन हो चुका है नाकाम 


11 अप्रैल 2019:  इसराइल का बेयरशीट लैंडर चांद पर उतरने वाले था. सतह पर उतरने से ठीक पहले इसका संपर्क मिशन कंट्रोल से टूट गया जिसके कुछ दे बाद ये खबर मिली की स्पेसक्राफ्ट क्रैश हो गया है.


7 सितंबर 2019: भारत ने साल 2019 में चांद पर चंद्रयान-2 भेजा था. चांद की सतह से केवल 2.1 किलोमीटर दूरी पर संपर्क टूट जाने के कारण ये लैंडर चांद पर क्रैश कर गया.


26 अप्रैल 2023: जापान ने 2023 में चांद पर स्पेसक्राफ्ट भेजे. यह यान लैंडिंग से ठीक पहले लैंडर से कोई डेटा नहीं पहुंचा पाया हार्ड लैंडिंग के कारण स्पेसक्राफ्ट क्रैश हो गया."


पूरी दुनिया की निगाहें क्यों हैं चांद पर 


रूस, अमेरिका, चीन, जापान, यूरोपियन स्पेस एजेंसी सहित पूरी दुनिया के कई देशों ने चांद पर अपनी निगाहें गड़ा रखी हैं. हर देश चांद पर पहुंचकर अपना बेस कैंप बनाना चाहता है. भारत ने भी इसी रेस का हिस्सा बनते हुए 14 जुलाई को चंद्रयान-3 भेज दिया. यह चंद्रयान चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंड करेगा और वहां से तमाम तरह के साक्ष्य जुटाएगा. ऐसे में सवाल उठता है कि चांद पर आखिर ऐसा क्या है कि सभी देश वहां पहुंचना चाहते हैं. 


दरअसल आज से 4 अरब साल पहले जब सौरमंडल का निर्माण हुआ था. उस वक्त सभी ग्रहों और उपग्रहों पर तमाम एस्ट्रॉयड और उल्का पिंडों की बारिश हो रही थी जिसके कारण ग्रहों और उपग्रहों पर कई तरह के क्रेटर्स या गर्तों का निर्माण हुआ. इन्हीं उल्का पिंडो के कारण पृथ्वी पर पानी और माइक्रो ऑर्गनिज़मस भी मिले जिससे पृथ्वी पर जीवन का विकास हुआ.


लेकिन क्योंकि चांद पर जीवन का विकास नहीं हुआ और कोई वातावरण नहीं है इसलिए वहां की सतह पर वे सौरमंडल की शुरुआत के सारे प्रमाण ज्यों के त्यों मौजूद हैं. तो अगर हम चांद पर पहुंचकर इसकी सतह पर रिसर्च कर पाते हैं तो सौरमंडल की उत्पत्ति के बारे में पता लगा सकते हैं.


चांद की सतह पर पहुंचकर वैज्ञानिक इसलिए भी चंद्रमा का अध्ययन करना चाहते हैं क्योंकि यह डीप स्पेस के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट की तरह काम कर सकता है. दरअसल चांद के अध्ययन कर वैज्ञानिक पता लगा सकते हैं कि कॉस्मिक रेडिएशन और चंद्रमा जैसे वातारण-विहीन ग्रहों पर छोटे-छोटे कणों की बारिश का क्या प्रभाव पड़ता है और इससे वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष में आगे के मिशन को समझने में मदद मिलती है कि उन ग्रहों या पिंडों पर जाने के लिए किस तरह की टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जाना चाहिए.