Rajnath Singh on Russia Ukraine Conflict: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने आगाह किया है कि रुस-यूक्रेन जंग से भारत को भी सीख लेनी की जरुरत है. सीख इस बात की कि इस तरह के युद्ध हमारे देश को मिलने वाली चुनौतियों के तौर पर भी सामने आ सकते हैं. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह गुरुवार को राजधानी दिल्ली में वायुसेना द्वारा आयोजित पीसी लाल मेमोरियल लेक्चर में बोल रहे थे. इसी दौरान उन्होंने कहा कि हम हालिया के कॉन्फिलिक्ट यानि लड़ाईयों पर अपनी नजर डालें तो तो हमें कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हो सकती है. उन्होंने कहा कि हम सीरिया, इराक, अफगानिस्तान और वर्तमान में जारी यूक्रेन जंग को बारीकी से देखें, तो हमें ऐसे कई विचारणीय बिंदु मिलेंगे, जिससे हम भविष्य के युद्ध के स्वरूप का आकलन कर सकते हैं. 


बिना चीन का नाम लिए रक्षा मंत्री ने कहा कि हमारे विरोधी (देश) के जरिए स्पेस यानि अंतरिक्ष के सैन्य-उपयोग की ओर कदम बढ़ाए जा रहे हैं, निश्चित ही इसका हमारे हितों पर विपरीत असर पड़ने की संभावना है. इसलिए वायुसेना को पूरी तरह से कमर कसकर रखने की जरुरत है और एयरोस्पेस फोर्स की ओर बढ़ना चाहिए. स्पेस गाईडेड अटैक से बचाव, अपने स्पेस-एसैट्स की सुरक्षा के लिए तकनीकी विकास में महारत हासिल करने और मानव-संसाधनों के प्रबंधन के बारे में वायुसेना को सोचने की बेहद जरुरत है. रक्षा मंत्री ने साफ तौर से कहा कि परिवर्तन सृष्टि का नियम है, यह शाश्वत है. ऐसे में निश्चित ही यह नियम युद्ध के ऊपर भी पूरी तरह से लागू होता है. अगर हम यह बात मानते हैं तो हमें सोचना होगा कि बदलते वॉरफेयर के लिए हम क्या पूरी तरह तैयार हैं. ऐसे युद्ध, जो कब और किस रूप में हमारे सामने आ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता.


1971 युद्ध का किया जिक्र


रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 1948 और 1971 के युद्ध का जिक्र करते हुए कहा कि किसी भी जंग या फिर ऑपरेशन में जीत हासिल करने के लिए अत्याधुनिक हथियार, साजो-सामान या फिर प्लेटफार्म (यानि लड़ाकू विमान और युद्धपोत) जरूरी हैं ही, पर उनसे भी कहीं जरूरी है हमारे अंदर का जज़्बा, क़ाबिलियत और दृढ़ इच्छाशक्ति. 1971 के युद्ध में वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल पीसी लाल की तारीफ करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि टेक्नोलॉजी कितनी भी उपलब्ध हो, प्लेटफार्म कितने ही उपलब्ध हों, लेकिन यह किसी लीडर की प्रतिभा होती है, जो किसी की जीत और हार सुनिश्चित करती है. यही खूबियां युद्ध में किसी पक्ष की ओर निर्णायक भूमिका निभाती हैं और इस मामले में भारतीय सेनाएं, मैं समझता हूं अत्यंत भाग्यशाली हैं.


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ऐसे नहीं जीती जाती जंग


राजनाथ सिंह ने रक्षा-क्षेत्र मे आत्मनिर्भर बनने पर जोर देते हुए कहा कि महंगे प्लेटफार्म (हेलीकॉप्टर, विमान इत्यादि) और हथियार युद्ध में जीत हासिल नहीं करा सकते हैं. दरअसल युद्ध के मैदान में हथियारों को किस तरह इस्तेमाल किया जाता है वो युद्धों में हमें बढ़त दिलाता है. प्रेसिसयन गाईडेड म्युनिशेन हों या यूएवी हों या मैन-पैक एंटी टैंक वैपन, भविष्य के युद्ध में उनका इस्तेमाल उतना ही महत्वपूर्ण होगा, जितना की पहले हुआ है. रक्षा मंत्री ने कहा कि टेक्नोलॉजी निसंदेह एक फोर्स-मल्टीप्लायर है, लेकिन बिना उसके बेहतर उपयोग के अत्याधुनिक तकनीक वाले उपकरण भी केवल दिखावटी सामान भर होंगे.


इम्पोर्ट पर निर्भर नहीं रह सकते


रक्षा मंत्री बोले नई-नई तकनीक वाले वैपन को केवल इकट्ठा कर लेना, औरों के लिए ईर्ष्या का कारण भले हो सकता है, लेकिन जरूरी नहीं कि वह किसी को जीत दिलाने की गारंटी बन जाए. राजनाथ सिंह ने कहा कि एक लंबे समय तक हम अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए हथियारों के आयात पर निर्भर रहे हैं. मिग से लेकर सुखोई और हाल के राफेल एयरक्राफ्ट तक, हमने अपनी सुरक्षा के लिए दुनिया भर से बहुत एडवांस लड़ाकू विमान है. हालांकि पिछले कुछ समय के अनुभव ने हमें बताया कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए लंबे समय तक आयात पर निर्भर नहीं रह सकता है. 


ऐसे मिलेगा आत्मनिर्भर बनने का फायदा


रक्षा मंत्री ने कहा कि हालिया युद्धों ने हमें यह भी बताया, कि केवल डिफेंस-सप्लाई ही नहीं राष्ट्रीय हित की बात आने पर कॉमर्शियल-कॉन्ट्रेक्ट में भी तनाव आने की पूरी संभावना बनी रहती है. ऐसे में आत्मनिर्भरता न केवल खुद की क्षमताएं विकसित करने की हो, बल्कि हमारी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है. आत्मनिर्भरता की जो राह हमने चुनी है, उस पर चलना आसान नहीं है. हो सकता है शुरुआत में हमें यह किफ़ायती भी न लगे. पर इस बात को लेकर हम पूरी तरह स्पष्ट हैं कि दीर्घ-काल में यह न केवल डिफेंस सेक्टर बल्कि हर उद्योग में एक मजबूत इंडस्ट्रियल बेस बनाने में मदद करेगा. उन्होंने दोहराया कि भविष्य में हमारी योजना ना केवल अपनी जरूरतें पूरी करने की, बल्कि हथियारों के नेट-एक्सपोर्टर के रूप में उभरने की भी है.


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