India Russia Ukraine: रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के मसले पर भारत संतुलन बनाकर चल रहा है. हालांकि इस मुद्दे पर भारत के लिए तटस्थ नीति का पालन करना इतना आसान नहीं है. अब युद्ध को रोकने के नजरिए से विदेश मामलों के जानकार भारत की भूमिका को बेहद महत्वपूर्ण बता रहे हैं.     


दरअसल रूस और यूक्रेन को लेकर भारत की अनूठी स्थिति से ही इस बात को शह मिलती है. भारत का रिश्ता रूस-यूक्रेन के साथ ही पश्चिम के सारे देशों के साथ मित्र के रूप में रहा है. और इस पहलू को ही विदेश मामलों के एक्सपर्ट को बेहद अहम मान रहे हैं.


इस साल 24 फरवरी को रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ. तब भारत ने यूक्रेन की मानवीय जरूरतों का समर्थन करने में तेजी दिखाई. ये भी सच्चाई है कि रूस से बेहतर रिश्तों की वजह से भारत ने संयुक्त राष्ट्र में मॉस्को की कार्रवाइयों की निंदा करने से परहेज किया. इसे भारत ने अपनी विदेश और रक्षा नीति के अनुकूल उठाया गया कदम बताया. हालांकि भारत ने ये बार-बार कहा है कि मॉस्को और कीव के बीच कूटनीति के जरिए इस समस्या का हल निकलना चाहिए.  


'पश्चिम देश भारत की विदेश नीति के साथ जिएं'


पश्चिमी देश रूस की कार्रवाई के बिल्कुल खिलाफ रहे हैं और रूस पर कई तरह के प्रतिबंध भी लगा चुके हैं तो, भारत का रुख तटस्थ रहा है. इस महीने ही विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि भारत दूसरे देशों के लिए विदेश नीति नहीं चला रहा है. उन्होंने कहा था कि हमारी विदेश नीति भारत और इस देश के लोगों के लिए है. विदेश मंत्री ने स्पष्ट कहा था कि कई बार हम भी उन चीजों के साथ रहे हैं, जिसे पश्चिमी देशों ने किया है, अब पश्चिम देश भारत की विदेश नीति के साथ जिएं. 


जैसे-जैसे रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध तेज होता गया, दुनिया में ऊर्जा जरूरतों और खाने-पीने के सामानों की कमी होने लगी. जानकारों का मानना है कि ऐसे हालात में भारत शायद इस युद्ध को लेकर अपनी नीतियों का पुनर्मूल्यांकन कर सकता है. उज्बेकिस्तान के समरकंद में सितंबर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन के मौके पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा था कि मैं जानता हूं कि आज का युग युद्ध का युग नहीं है, और मैंने इस बारे में आपसे फोन पर बात की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी भावना को 15-16 नवंबर को इंडोनेशिया के बाली में हुए G20 के सम्मेलन में भी दोहराया था. उन्होंने कहा था कि हमें यूक्रेन में युद्धविराम और कूटनीति के रास्ते पर लौटने का रास्ता खोजना होगा.


'युद्ध रोकने में भारत की प्रासंगिकता बढ़ गई है'


ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के फेलो विवेक मिश्रा ने अल जजीरा से बातचीत में कहा है कि भारत का रुख फिलहाल संक्रमण (transition) की स्थिति में है. उस युद्ध को रोकने में भारत की मध्यस्थ की भूमिका के महत्व पर प्रकाश डालते हुए विदेश मामलों के जानकार विवेक मिश्रा ने कहा कि पिछले 10 महीनों में, हमने युद्ध में भारत की मध्यस्थता की संभावना पर गौर किया है. युद्ध के 10 महीने बाद यह ज्यादा महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हो गया है, जब भारत ने अप्रत्यक्ष तौर से रूस को संकेत दिया कि अब युद्ध समाप्त करने का वक्त आ गया है.


उन्होंने कहा कि एक और पहलू है जो भारत की मध्यस्थता के नजरिए से बेहद अहम है. अगले एक साल तक भारत G20 का नेतृत्व करेगा. इससे युद्ध की समाप्ति में मध्यस्थता की भूमिका निभाने में नई दिल्ली की भूमिका और ज्यादा प्रासंगिक हो जाती है. भारत एक दिसंबर से इंडोनेशिया से G20 की अध्यक्षता लेने के लिए तैयार है और 2023 में अगली G20 बैठक की मेजबानी करेगा.  


जर्मन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के एसोसिएट फेलो जॉन-जोसेफ विल्किंस (John-Joseph Wilkins) का मानना है कि नई जिम्मेदारियों के साथ भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता (strategic autonomy) की रक्षा पर फोकस कर सकता है. उन्होंने अल जजीरा से बातचीत में कहा कि भारत में हमेशा विश्व शक्तियों को संतुलित करने की परंपरा रही है, लेकिन इस साल हमने देखा है कि भारत की विदेश नीति गुटनिरपेक्षता के नए आयाम को लेकर चल रही है. इसमें भारत के वैश्विक प्रभाव को आगे बढ़ाने की क्षमता है.


रूस के साथ संबंधों पर नहीं पड़ेगा असर


भारत और रूस के बीच शीत युद्ध के बाद से ही एक ख़ास संबंध रहा है. अब भी रूस एशियाई देशों के लिए सबसे बड़ा हथियार और कच्चे तेल का आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. स्टॉकहोम पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के मुताबिक, 2011 से 2021 के बीच भारत में हथियारों के आयात में रूस की हिस्सेदारी 60 फीसदी थी. 


रूस ने अक्टूबर 2022 में भारत के कच्चे तेल की 22 प्रतिशत जरूरतों को पूरा किया था. विदेश मामलों के जानकार विवेक मिश्रा का मानना है कि भारत के बदलते रुख से रूस से व्यापार संबंधों पर असर पड़ने की संभावना बिल्कुल नहीं है. 


भारत का हमेशा ही बातचीत पर रहा है ज़ोर 


अब सवाल उठता है कि अगर भारत अपनी नीतियों में बदलाव लाता है तो क्या इससे भारत के रूस के साथ कारोबार पर असर पड़ सकता है. भारत के साथ दुनिया के लिए सबसे अच्छी बात ये है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने युद्ध के बारे में भारत की हालिया चिंताओं को स्वीकार किया है.


सितंबर में उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (SCO)के सम्मेलन में पुतिन ने नरेंद्र मोदी के साथ बैठक में भरोसा दिया था कि मास्को  जितनी जल्दी हो सके युद्ध को रोकने के लिए सब कुछ करेगा. रूस के राष्ट्रपति पुतिन युद्ध के लंबा चलने के लिए हमेशा यूक्रेन को जिम्मेदार ठहराते आए हैं.


पश्चिमी देशों की ओर से अलग-थलग किए जाने की वजह से पुतिन व्यापार संबंधों को बढ़ावा देकर भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने की मंशा जता चुके हैं. पुतिन ने मोदी से कहा था कि हमारा व्यापार बढ़ रहा है. भारतीय बाजारों में ज्यादा से ज्यादा रूसी उर्वरकों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पुतिन ने नरेंद्र मोदी के प्रति आभार भी जताया था. रूस से अब आठ गुना ज्यादा उर्वरक भारत पहुंच रहा है. 


भारत-रूस में तेजी से बढ़ रहा है व्यापार


शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन से पहले भारत में रूस के राजदूत डेनिस अलीपोव ने मास्को की TASS समाचार एजेंसी से बातचीत में भारत के साथ बढ़ते आर्थिक सहयोग की सराहना की थी. उन्होंने कहा था कि 2022 की पहली छमाही में, हमने व्यापार में बेतहाशा वृद्धि देखी.


2021 में भारत-रूस के बीच 13.6 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था, जो 2022 के सात महीने यानी जुलाई तक में ही 11 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया. दोनों देश 2025 तक आपसी व्यापार को बढ़ाकर 30 बिलियन डॉलर करने को लेकर चर्चा कर रहे हैं और इस साल के कारोबारी आंकड़ों से ये मुमकिन भी लगता है.


जर्मन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के एसोसिएट फेलो जॉन-जोसेफ विल्किंस का मत है कि ऊर्जा जरूरतों पर विदेशी निर्भरता कम करने के लिए भारत हाइड्रोकार्बन जैसे क्षेत्रों में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है. विल्किंस का मानना है कि भारत पिछले कुछ वक्त से धीरे-धीरे रूस पर अपना सामान्य रुख बदल रहा है.


उन्होंने अल जजीरा से कहा कि भारत के पास एक राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन है और यह बिल्कुल साफ है कि भारत 'ग्रीन हाइड्रोजन' का निर्यातक बनना चाहता है और भारत में इसकी पूरी संभावना भी है. उनका मानना है कि भारत के हाइड्रोजन मिशन का एक बेहद महत्वपूर्ण मकसद रूस पर ऊर्जा जरूरतों के लिए निर्भरता को कम करना भी है.
 
यूरोपीय संघ भी भारत से संबंध मजबूत बनाने में जुटा है 


चूंकि रूस और चीन के बीच संबंध बेहतर हैं, इसकी प्रतिक्रिया में फिलहाल यूरोपीय संघ भी भारत के साथ मजबूत संबंध बनाने पर जोर दे रहा है. यूरोपीय संघ ने इस साल जुलाई में भारत के साथ व्यापार वार्ता का पहला दौर आयोजित किया था और पांच दिसंबर से आगे की चर्चा होने वाली है.


भारत अगले साल तक यूरोपीय संघ के साथ ही ब्रिटेन और कनाडा के साथ भी व्यापक मुक्त व्यापार समझौता (Comprehensive free trade agreements) करना चाहता है. भारत इस साल ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात के साथ इसी तरह के व्यापार समझौता कर चुका है.


युद्ध खत्म करने में भारत निभा सकता है बड़ी भूमिका


इस बीच इंडो-पैसिफिक (Indo-Pacific) क्षेत्र  में सुरक्षा बनाए रखने के लिए भारत के महत्व को पहचानते हुए अमेरिका भी भारत के साथ अपनी रक्षा साझेदारी को बढ़ावा दे रहा है. इसी नजरिए से  दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ आसियान (ASEAN) भी  भारत के साथ सुरक्षा संबंध को मजबूत बनाने में जुटा है.


विदेश मामलों के कुछ जानकारों का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध से वैश्विक मंच पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है. विदेश मामलों के जानकार विवेक मिश्रा का कहना है कि पश्चिमी देशों और रूस के साथ अच्छे संबंधों की वजह से ही इस युद्ध के वक्त भारत सुर्खियों में है. ऐसे में भारत की भूमिका और बढ़ जाती है. 


फिलहाल रूस-यूक्रेन के युद्ध का अंत नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में इसका समाधान निकालने के लिए बातचीत की संभावना और बढ़ गई है. अब भारत जी20 देशों की अगुवाई भी करने वाला है, तो ऐसे हालात में पश्चिमी देश भारत से इस युद्ध को खत्म कराने के लिए लॉबिंग कर सकते हैं.


अगर यूक्रेन बातचीत के लिए तैयार हो जाता है तो पश्चिमी देश मिलकर भारत से रूस को वार्ता टेबल पर लाने के लिए मनाने को कह सकते हैं. इस तरह से भारत, रूस और यूक्रेन के बीच सेतु का काम कर सकता है और ये युद्ध को खत्म करने की दिशा में एक बेहतर स्थिति हो सकती है.


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