S Jaishankar UN Speech Key Points: भारत ने 14 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र (United Nations) में व्यापक सुधारों का आह्वान किया और कहा कि लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और छोटे द्वीपीय विकासशील देशों के भविष्य के बारे में निर्णय उनकी भागीदारी के बिना नहीं लिया जा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे एस जयशंकर ने कहा कि यूएन की विश्वसनीयता हमारे समय की प्रमुख चुनौतियों, चाहे वह महामारी हो, जलवायु परिवर्तन, संघर्ष या आतंकवाद हो, प्रभावी प्रतिक्रिया पर निर्भर करती है. चलिए अब आपको उनके भाषण की 5 बड़ी बातें बताते हैं.
- एस जयशंकर ने कहा, "सुधारों पर बहस लक्ष्यहीन हो गई है और इस बीच वास्तविक दुनिया नाटकीय रूप से बदल गई है. हम इसे आर्थिक समृद्धि, प्रौद्योगिकी क्षमताओं, राजनीतिक प्रभाव और विकासात्मक प्रगति के संदर्भ में देखते हैं."
- उन्होने कहा, "कोविड महामारी के दौरान, ग्लोबल साउथ के कई कमजोर देशों ने अपने पारंपरिक स्रोतों से परे अपने पहले टीके प्राप्त किए. वास्तव में, वैश्विक उत्पादन का विविधीकरण अपने आप में एक मान्यता थी जिससे पता चला कि पुरानी व्यवस्था कितनी बदल गई थी."
- उन्होंने भाषण में कहा, "संघर्ष की स्थितियों के नॉक-ऑन (knock-on) प्रभावों ने भी अधिक व्यापक-आधारित वैश्विक शासन की आवश्यकता को रेखांकित किया है. खाद्य, फर्टिलाइजर और ईंधन सुरक्षा पर हाल की चिंताओं को निर्णय लेने की उच्चतम परिषदों में पर्याप्त रूप से व्यक्त नहीं किया गया था. इसलिए दुनिया का अधिकांश हिस्सा इस पर विचार कर रहा था. यह विश्वास दिलाया कि उनके हित कोई मायने नहीं रखते. हम ऐसा दोबारा नहीं होने दे सकते."
- विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा, "जब जलवायु न्याय की बात आती है तो स्थिति बेहतर नहीं हुई है. संबंधित मुद्दों को उचित मंच पर संबोधित करने के बजाय, हमने ध्यान भटकाने के प्रयास देखे हैं. आतंकवाद का समर्थन करने के लिए भी बहुपक्षीय मंचों का दुरुपयोग किया जा रहा है. दुनिया जिसे अस्वीकार्य मानती है, उसे सही ठहराने का सवाल ही नहीं उठना चाहिए. यह निश्चित रूप से सीमा पार आतंकवाद के राज्य प्रायोजन पर लागू होता है."
- उन्होंने कहा, "हमें न केवल हितधारकों को बढ़ाने की जरूरत है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर में और वैश्विक जनमत की नजर में बहुपक्षवाद की प्रभावशीलता और विश्वसनीयता को भी बढ़ाना है. अगर ऐसा होता है, तो लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और सदस्य देशों के सदस्य देश छोटे द्वीप विकासशील देशों का सुरक्षा परिषद में विश्वसनीय और निरंतर प्रतिनिधित्व होना चाहिए. उनके भविष्य के बारे में निर्णय अब उनकी भागीदारी के बिना नहीं लिए जा सकते."