नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि चीन के साथ सीमा विवाद का समाधान सभी समझौतों और सहमतियों का सम्मान करते हुए और एकतरफा ढंग से यथास्थिति में बदलाव का प्रयास किये बिना ही प्रतिपादित किया जाना चाहिए. उन्होंने इस मुद्दे पर भारत का रूख स्पष्ट किया.


जयशंकर ने लद्दाख की स्थिति को 1962 के संघर्ष के बाद सबसे गंभीर बताया और कहा कि दोनों पक्षों की ओर से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अभी तैनात सुरक्षा बलों की संख्या भी अभूतपूर्व है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सभी सीमा स्थितियों का समाधान कूटनीति के जरिए हुआ.


अपनी पुस्तक ‘द इंडिया वे : स्ट्रैटजिज फार एन अंसर्टेन वर्ल्ड’ के लोकार्पण से पहले रेडिफ डॉट काम को दिए साक्षात्कार में विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘ जैसा कि आप जानते हैं, हम चीन के साथ राजनयिक और सैन्य दोनों माध्यमों से बातचीत कर रहे हैं. वास्तव में दोनों साथ चल रहे हैं . ’’ उन्होंने कहा, ‘‘ लेकिन जब बात समाधान निकालने की है, तब यह सभी समझौतों और सहमतियों का सम्मान करके प्रतिपादित किया जाना चाहिए. और एकतरफा ढंग से यथास्थिति में बदलाव का प्रयास नहीं होना चाहिए.’’


गौरतलब है कि भारत जोर दे रहा है कि चीन के साथ सीमा गतिरोध का समाधान दोनों देशों के बीच सीमा प्रबंधन के लिये वर्तमान समझौतों और प्रोटोकाल के अनुरूप निकाला जाना चाहिए.


यह पूछे जाने पर कि उन्होंने सीमा विवाद से पहले लिखी अपनी पुस्तक में भारत और चीन के भविष्य का चित्रण कैसे किया है, विदेश मंत्री ने कहा कि यह दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण संबंध है और इसके लिए रणनीति और दृष्टि की जरूरत है.


जयशंकर ने कहा, ‘‘ मैंने कहा है कि भारत और चीन के साथ मिलकर काम करने की क्षमता एशिया की शताब्दी का निर्धारण करेगी . लेकिन उनकी कठिनाई इसे कमतर कर सकती है. और इसलिये यह दोनों के लिये बेहद महत्वपूर्ण संबंध है. इसमें समस्याएं भी है और मैंने स्पष्ट रूप से इसे माना है. ’’


इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘‘ हमें इसमें ईमानदार संवाद की जरूरत है, भारतीयों के बीच और भारत और चीन के बीच. इसलिये इस संबंध में रणनीति और सोच की जरूरत है. ’’ सीमा विवाद के संबंधों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा कि भारत ने चीनी पक्ष को स्पष्ट रूप से बता दिया है कि सीमा पर शांति हमारे संबंधों का आधार है. उन्होंने कहा, ‘‘ अगर हम पिछले तीन दशक पर ध्यान दें तब यह स्वत: ही स्पष्ट हो जाता है. ’’


भारत और चीन पिछले तीन महीने से पूर्वी लद्दाख में तनावपूर्ण गतिरोध की स्थिति में है जबकि कई दौर की राजनयिक और सैन्य स्तर की बातचीत हो चुकी है. यह तनाव तब बढ़ गया जब गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष में भारत के 20 जवान शहीद हो गए और चीनी सैन्य पक्ष में भी कुछ मौतें हुई .


जयशंकर ने कहा, ‘‘यह निश्चित तौर पर 1962 के बाद सबसे गंभीर स्थिति है. वास्तव में 45 सालों के बाद इस सीमा पर सैनिकों की मौत हुई. दोनों पक्षों की ओर से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अभी तैनात सुरक्षा बलों की संख्या भी अभूतपूर्व है.’’


विदेश मंत्री ने डोकलाम सहित चीन के साथ सीमा पर तनाव की घटनाओं का भी जिक्र किया और कहा कि भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिये जो कुछ करना होगा, वह करेगा. उन्होंने कहा कि पिछले दशक में देपसांग, चुमार, डोकलाम आदि पर सीमा विवाद पैदा हुए. इसमें प्रत्येक एक दूसरे से अलग था. लेकिन इसमें एक बात समान थी कि इनका समाधान राजनयिक प्रयासों से हुआ.


एस जयशंकर ने कहा, ‘‘ मैं वर्तमान स्थिति की गंभीरता या जटिल प्रकृति को कम नहीं बता रहा. स्वभाविक रूप से हमें अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिये जो कुछ करना चाहिए, वह करना होगा.’’ उन्होंने अपने साक्षात्कार में भारत रूस संबंध, जवाहर लाल नेहरू के गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता, अतीत के बोझ और ऐतिहासिक वैश्विक घटनाओं के 1977 के बाद से भारतीय कूटनीति पर प्रभाव सहित विविधि मुद्दों पर विचार व्यक्त किए.


21वीं शताब्दी में सामरिक लक्ष्यों को हासिल करने के बारे में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि एक अरब से अधिक जनसंख्या वाले सभ्य समाज के साथ यह देश दुनिया में प्रमुख स्थान हासिल करने को उन्मुख है. उन्होंने कहा, ‘‘ यह हमें अद्भुत स्थिति में रखता है. केवल चीन ही ऐसी स्थिति का दावा कर सकता है. ’’


अमेरिका के साथ संबंधों के बारे में उन्होंने कहा कि अमेरिका में व्यापक आयामों में हमें समर्थन हासिल है. यह संबंध विभिन्न प्रशासन के तहत आगे बढ़े हें और गहरे हुए हैं. रूस के साथ संबंधों के बारे में उन्होंने कहा कि ये पिछले तीन दशकों में कई क्षेत्रों में काफी मजबूत हुए हैं.


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