(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
'पीएम मोदी और अजित डोभाल की तरह सुषमा स्वराज...', US के पूर्व विदेश मंत्री के इस बयान पर एस जयशंकर बोले- अपमानजनक है
यूएस के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने अपनी किताब 'Never Give an Inch: Fighting for the America I Love' में सुषमा स्वराज के बारे में लिखा है. इस पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उन्हें जवाब दिया है.
S jaishankar On Mike Pompeo: अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ को अपनी समकक्ष सुषमा स्वराज को कभी 'महत्वपूर्ण राजनीतिक शख्सियत ' के रूप में नहीं देखे वाले बयान पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जवाब दिया है.
एस जयशंकर ने पीटीआई से बात करते हुए कहा, ''मैंने पोम्पिओ की किताब में सुषमा स्वराज का जिक्र करने वाला एक पार्ट देखा है. मैंने हमेशा उनका बहुत सम्मान किया और उनके साथ मेरे बेहद करीबी और मधुर संबंध थे. मैं उनके लिए इस्तेमाल की जाने वाली अपमानजनक शब्दावली की निंदा करता हूं.'' पोम्पिओ ने अपनी किताब 'Never Give an Inch: Fighting for the America I Love' में सुषमा स्वराज को उपहास जनक शब्दों में वर्णित किया है.
किसके साथ काम किया?
सुषमा स्वराज नरेंद्र मोदी की सरकार के पहले कार्यकाल मई 2014 से मई 2019 तक भारत की विदेश मंत्री रही थीं. अगस्त 2019 में उनका निधन हो गया था. पोम्पिओ (59) ने अपनी किताब में लिखा है, “भारतीय पक्ष में, मेरी समकक्ष यानी सुषमा स्वराज भारतीय विदेश नीति टीम में महत्वपूर्ण शख्सियत नहीं थी. इसके बजाय, मैंने पीएम मोदी के करीबी और विश्वासपात्र एनएसए अजीत डोभाल के साथ और अधिक निकटता से काम किया. ”
जयशंकर को क्यों बताया बेहरत?
डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिकी का राष्ट्रपति रहने के दौरान पोम्पिओ 2017 से 2018 तक उनके प्रशासन में सीआईए निदेशक थे और फिर 2018 से 2021 तक विदेश मंत्री रहे. उन्होंने कहा, “मेरे दूसरे भारतीय समकक्ष सुब्रह्मण्यम जयशंकर थे. मई 2019 में, हमने 'जे' का भारत के नए विदेश मंत्री के रूप में स्वागत किया.
मैं इससे बेहतर समकक्ष के लिए नहीं कह सकता था. मैं इस व्यक्ति को पसंद करता हूं. अंग्रेजी उन सात भाषाओं में से एक है जो वह बोलते हैं और वह मेरे से बेहतर हैं.” पोम्पिओ 2024 के राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की संभावना तलाश रहे हैं.
क्यों बनाया कूटनीति का आधार ?
पोम्पिओ ने अपनी किताब में यह भी कहा है कि अमेरिका के भारत की उपेक्षा करना दोनों पक्षों की दशकों पुरानी विफलता थी. उन्होंने कहा, “ हम स्वाभाविक सहयोगी हैं, क्योंकि हम लोकतंत्र, आम भाषा, लोगों और प्रौद्योगिकी के संबंधों का इतिहास साझा करते हैं. भारत अमेरिकी बौद्धिक संपदा और उत्पादों की भारी मांग वाला बाजार भी है. इन कारकों के साथ ही दक्षिण एशिया में इसकी रणनीतिक स्थिति की वजह से मैंने चीनी आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए हिंदुस्तान को अपनी कूटनीति का आधार बनाया.”