Manto Faced Trial For Obscenity: ''जब मेरे हाथ में पिस्तोल होगा और दिल में ये घड़का नहीं रहेगा कि यह खुद-ब-खुद चल पड़ेगा तो मैं इसे लहराता हुआ बाहर निकल जाऊंगा और अपने असली दुश्मन को पहचानकर या तो सारी गोलियां उसके सीने में खाली कर दूंगा या खुद छलनी हो जाऊंगा...इस मौत पर जब मेरा कोई नक्काद यह कहेगा कि पागल था तो मेरी रुह इन लफ्ज़ों को ही सबसे बड़ा तमगा समझकर उठा लेगी और अपने सीने पर आवेज़ां कर लेगी.''
ऊपर लिखा गया कथन उर्दू के सबसे बड़े अफ़सानानिगार सआदत हसन मंटो का है. वही मंटो जिनके लिए कई लोग उनके जीते जी कहते थे-
'मंटो! वह अश्लील लेखक, सारा दिन शराब पीता है, शराब के लिए पैसे उधार लेता है, भीख मांगता है और उसके बाद अपने दोजख में घुसकर गंदी-गंदी कहानियां लिखता है''
इन तल्ख लफ्जों को सुनने वाला कोई शख्स कैसे समाज में मौजूद तल्खी को अपने लेखनी में बयां न करता. मंटो ने भी यही किया. अब सवाल उठता है कि आखिर ये मंटो कौन हैं. दरअसल मंटो को जानने के लिए मंटो को सिर्फ पढ़ने की नहीं समझने की भी जरूरत है. जब मंटो को पढ़ा और समझा जाएगा तो इसका जवाब खुद ही मिल जाएगा कि मंटो कौन हैं.
आसान लफ्ज़ों में कहें तो किसी बात को कहने में लिहाज नहीं करने वाले लेखक का नाम है मंटो. जो झूठी शराफत के दायरे से बाहर होकर लिखे उस लेखक का नाम है मंटो. जो सभ्य-समाज की बुनियाद में छिपी घिनौनी सच्चाई को बयां करे उस लेखक का नाम है मंटो. जो वेश्याओं की संवेदनाओं को उकेरने का काम करे उस लेखक का नाम है मंटो.
सआदत हसन मंटो अपने वक़्त से आगे के अफसानानिगार थे. बेहद कम उम्र में उन्होंने ऐसे अफसाने लिखे जो आज तक जीवित हैं. समाज में जो भी पाखंड का चेहरा है उसे छिन्न-भिन्न कर बदरंग चेहरा दिखाने वाले रचनाकार हैं मंटो.
मंटो के अफसानों के किरदार, चाहे वह 'ठंडा गोश्त' के ईश्वरसिंह और कुलवन्त कौर हो या 'काली सलवार' की 'सुल्ताना' या फिर 'खोल दो' की सिराजुद्दीन और सकीना या 'हतक' अफसाने में 'सौगंधी' नाम की वेश्या, मंटो का हर किरदार आपको अपने समाज का मिल जाएगा. इसमें कोई शक नहीं कि जो स्थान हिन्दी कहानियों के सम्राट मुंशी प्रेमचंद का है, वही जगह उर्दू में सबसे महान अफ़सानानिगार मंटो का है. मगर प्रेमचंद और मंटो में एक समानता भी है. दोनों किसी एक भाषा के पाठकों तक सीमित नहीं रहे.
दुर्भाग्यवश मंटो को पढ़ने वाले दो-चार लोग मौजूद तो हैं लेकिन उनको समझता कौन है ये बड़ा सवाल है. मंटो के अफसानों के किरदारों पर हमेशा अश्लीलता का आरोप लगता रहा. आज भी उनकी कहानियां कस्बाई रेलवे स्टेशनों के सस्ते स्टालों में ‘मंटों की बदनाम कहानियां’ शीर्षक से बेहद घटिया आवरण वाली किताबों में बेची जाती हैं.
मंटो की पांच कहानियों पर अश्लीलता के आरोप लगे थे और उनपर मुकदमा चला था. आज हम आपको बताते हैं वो पांच कहानी कौन सी थी.
पहला मुकदमा
मंटो पर पहला मुकदमा उनकी कहानी 'काली सलवार' को लेकर चलाया गया था. यह कहानी लाहौर की पत्रिका 'अदब--ए-लतीफ' में 1942 में प्रकाशित हुई थी. अश्लीलता के आरोप में मंटो को मातहत अदालत ने दंड दिया लेकिन सैशन कोर्ट ने इस कहानी को अश्लीलता के अभियोग से मुक्त किया.
मंटो ने इस कहानी के बारे में कहा था,''मैंने इसमें कहीं भी मर्द और औरत के संबंध को लजीज अंदाज में बयान नहीं किया. मेरी सुल्ताना, जो अपने ग्राहकों को अपनी जबान में गालियां दिया करती है और उनको उल्लू का पट्ठा समझती है. वो महज एक दुकानदार थी..ठेठ किस्म की दुकानदार..''
दूसरा मुकदमा
काली सलवार के बाद मंटो पर दूसरा मुकदमा उनकी कहानी 'बू' के लिए चलाया गया, जो 'अदब--ए-लतीफ' के ही वार्षिक अंक 1944 में छपी थी. उसमें मंटो का एक लेख भी था जिसका शिर्षक 'अदबे-जदीद' था. इसे उन्होंने योगेश्वर कॉलेज मुंबई में पढ़ा था. इस लेख पर डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स की धारा 38 के अंतर्गत मुकदमा चलाया गया. हालांकि मंटो इस बार भी बरी हो गए.
जब मंटो पर मुकदमा चल रहा था तो अली सरदार जाफरी ने इसे अदब और तहज़ीब पर हमला बताया था. हालांकि बाद में अपनी पुस्तक 'तरक्कीपसंद अदब' में उन्होंने मंटो की कहानी की आलोचना की. इस बात का जिक्र नंद किशोर विक्रम की किताब सआदत हसन मंटो में है. अली सरदार जाफरी ने लिखा-''मंटो की कहानी 'बू' और राशिद की नज़्म 'इन्तिकाम' बीमार और घिनौनी चीजें हैं. इनका घिनौनापन ही इन्हें प्रतिक्रियावादी बना देता है.'
तीसरा मुकदमा
मंटो की जिस कहानी पर तीसरा मुकदमा चला उस कहानी का नाम है 'धुआं'. इसे साकी बुक डिपो दिल्ली ने 1941 में प्रकाशित किया था. इन्हीं दिनों इस्मत चुगताई की कहानी लिहाफ पर भी मुकदमा चलाया गया. धुआं कहानी पर ताज़ीराते-हिन्द की धारा 292 के तहत मुकदमा चला. मंटो पर 200 रुपये का जुर्माना हुआ जो उन्होंने अदालत में दिया. बाद में सैशन कोर्ट में अपील की गई और मंटो फिर बरी हो गए. जुर्माने की राशि भी वापस मिल गई.
चौथा मुकदमा
चौथा मुकदमा उनकी कहानी 'ठंडा गोश्त' पर चला. यह पाकिस्तान जाने के बाद लिखी गई उनकी पहली कहानी थी. 'जावेद' के विशेषांक मार्च 1949 में इसे छापा गया. इसे जब्त कर ली गई. मंटो पत्रिका के मुद्रक एवं प्रकाशक नसीर अहमद और संपादक आरिफ अहमद मतीन के साथ गिरफ्तार कर लिए गए. बाद में जमानत पर रिहा हुए. मंटो को तीन मास कारावास हुआ और तीन सौ रुपये जपर्माना हुआ. सजा के खिलाफ अपील की गई और सैशन कोर्ट से फिर मंटो को जमानत मिल गई.
पांचवा मुकदमा
मंटो की जिस पांचवी कहानी पर मुकदमा चला उस कहानी का नाम है 'ऊपर, नीचे और दरमियान'. यह लाहौर के अखबार 'एहसान' में प्रकाशित हुआ था. इस कहानी पर मजिस्ट्रेट मेंहदी अली सिद्दीकी ने 25 रुपये का जुर्माना लगाया. दरअसल मेंहदी अली सिद्दीकी मंटो की कहानियों के फैन थे.उन्होंने अदालत में मंटो से पूछा कितनी तारीख है..मंटो बोले-25, तो मेंहदी अली सिद्दीकी ने उनपर 25 रुपये जुर्माना लगा दिया.
मंटो ने जैसा देखा उसे अपनी कहानी में वैसा ही बयान किया. यही कारण है कि वो आज भी पाठकों के बीच उतने ही जीवंत हैं. मंटो में हक़ीकतनिगारी के पहलू में मायने का एक संसार आबाद है. फ़न के इस जौहर में मंटों ने कितनी ही मुसीबतों का सामना किया, लेकिन लिखना नहीं छोड़ा..
मंटो 42 साल की उम्र में दुनिया छोड़ कर चले गए, शायद ही इसका कोई गम करे क्योंकि हम सबको मरना है. दुख सिर्फ इस बात का है कि मंटो की मौत के बाद कई ऐसी रचनाएं रह गईं जो बिना लिखी हुई हैं. आज भी मंटो के कई किरदार यतीमी में जी रहे हैं. वो किरदार सरहद के दोनों तरफ हैं. मगर उन किरदारों को अफसानों में लिखने वाला कोई मंटो अब नहीं रहा. वह तो अदबी इन्क़लाब के हंगामी दौर में अपना हंगामाख़ेज़ रोल अदा कर अलविदा कह चुके हैं.