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मंटो पुण्यतिथि विशेष: झूठी शराफत के दायरे से बाहर होकर लिखने वाले अफसानानिगार थे सआदत हसन

किसी बात को कहने में लिहाज नहीं करने वाले लेखक का नाम है मंटो. जो झूठी शराफत के दायरे से बाहर होकर लिखे उस लेखक का नाम है मंटो. जो सभ्य-समाज की बुनियाद में छिपी घिनौनी सच्चाई को बयां करे उस लेखक का नाम है मंटो. जो वेश्याओं की संवेदनाओं को उकेरने का काम करे उस लेखक का नाम है मंटो.

नई दिल्ली: ''मंटो! वह अश्लील लेखक, सारा दिन शराब पीता है, शराब के लिए पैसे उधार लेता है, भीख मांगता है और उसके बाद अपने दोजख में घुसकर गन्दी-गन्दी कहानियां लिखता है'' मंटो के बारे में यह बात तो कई लोगों से सुनी होगी लेकिन मंटो कौन थे या मंटो किस तरह के अफसाने लिखते थे, यह जानने के लिए मंटो को सिर्फ पढ़ने की नहीं समझने की भी जरूरत है. जब मंटो को पढ़ा और समझा जाएगा तो इसका जवाब खुद ही मिल जाएगा कि मंटो कौन हैं.

दरअसल किसी बात को कहने में लिहाज नहीं करने वाले लेखक का नाम है मंटो. जो झूठी शराफत के दायरे से बाहर होकर लिखे उस लेखक का नाम है मंटो. जो सभ्य-समाज की बुनियाद में छिपी घिनौनी सच्चाई को बयां करे उस लेखक का नाम है मंटो. जो वेश्याओं की संवेदनाओं को उकेरने का काम करे उस लेखक का नाम है मंटो. सआदत हसन मंटो अपने वक़्त से आगे के अफसानानिगार थे. बेहद कम उम्र में उन्होंने ऐसे अफसाने लिखे जो आज तक जीवित है. समाज में जो भी पाखंड का चेहरा है उसे छिन्न-भिन्न कर बदरंग चेहरा दिखाने वाले रचनाकार मंटो आज के दिन (18 जनवरी) ही दुनिया से रुख़सत हो गए. लेकिन उनके अफसाने और उन अफसानों के किरदार आज भी जीवित हैं.

मंटो के अफसानों के किरदार, चाहे वह 'ठंडा गोश्त' के ईश्वरसिंह और कुलवन्त कौर हो या 'काली सलवार' की 'सुल्ताना' या फिर 'खोल दो' की सिराजुद्दीन और सकीना या 'हतक' अफसाने में 'सौगंधी' नाम की वेश्या, मंटो का हर किरदार आपको अपने समाज का मिल जाएगा. इसमें कोई शक नहीं कि जो स्थान हिन्दी कहानियों के सम्राट मुंशी प्रेमचंद का है, वही जगह उर्दू में सबसे महान अफसानानिगार मंटो का है. मगर प्रेमचंद और मंटो में एक समानता भी है. दोनों किसी एक भाषा के पाठकों तक सीमित नहीं रहे.

दुर्भाग्यवश मंटो को पढ़ने वाले दो-चार लोग मौजूद तो हैं लेकिन उनको समझता कौन है ये बड़ा सवाल है. मंटो के अफसानों के किरदारों पर हमेशा अश्लीलता का आरोप लगता रहा. आज भी उनकी कहानियां कस्बाई रेलवे स्टेशनों के सस्ते स्टालों में ‘मंटों की बदनाम कहानियां’ शीर्षक से बेहद घटिया आवरण वाली किताबों में बेची जाती हैं.

समाज के जिन ठेकेदारों को उनकी कहानी नागवार गुजरी उन्होंने मंटो को 'पोर्नोग्राफर' तक कह डाला. उन्हें यह समझ नहीं आया कि मंटो का पात्र अश्लील नहीं हैं बल्कि अश्लीलता और निर्ममता तो समाज में है जिसे मंटो अपने किरदारों के जरिए दिखाते रहे. मंटो की कहानी तकिये के नीचे छुपा कर रखने वाली कहानी नहीं बल्कि वह सिराहने रखने वाली सच्चाई है. आइए जानते हैं इस मशहूर अफसानानिगार के जिंदगी से जुड़े कुछ दिलचस्प पहलुओं को..

जब मंटो को मशहूर कहानी 'टोबा टेक सिंह' 20 रूपये में बेचनी पड़ी

मंटो जब जिंदा थे तब उनको उनके अफसानों के लिए कभी भी वाजिब दाम नहीं मिले. एक बार मंटो अपनी कहानी 'टोबा टेक सिंह' को एक प्रकाशक को बेचने गए. उस प्रकाशक ने उन्हें सिर्फ 20 रूपये देने की बात की. मंटो ने 50 की मांग की. मंटो को उस वक्त पैसों की सख्त जरूरत थी. मंटो उससे मोल-भाव करते रहे लेकिन प्रकाशक टस से मस नहीं हुआ. आखिरकार मंटो को हार कर टोबा टेक सिंह 20 रूपये में बेचनी पड़ी. यह वही मशहूर कहानी है जिसे करोड़ों लोगों ने पढ़ी होगी और 100 से ज्यादा बार इसका नाट्य मंच पर मंचन हुआ होगा. टोबा टेक सिंह पर बॉलीवुड में फिल्म भी बन चुकी है और पाकिस्तान में भी. आज मंटो अगर अफसानों के दाम सुनते तो उनके होश फाख्ता हो जाते.

जब कपिल सिब्बल के पिता हीरालाल सिब्बल ने फ्री में लड़ा मंटो का केस

बात तब की है जब लाहौर में मंटो पर अश्लील कहानी लिखने का केस चल रहा था. उन दिनों मंटो का केस लड़ने के लिए कोई भी वकील राजी नहीं हो रहा था. ऐसे में पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के पिता हीरालाल सिब्बल मंटो का केस लड़ने के लिए तैयार हुए. दरअसल जब मंटो अपने एक दोस्त के साथ उनके पास केस लड़ने का आग्रह करने आए तो हीरालाल सिब्बल ने कहा कि उनकी फीस बहुत ज्यादा है. इस पर मंटो ने कहा कि वह फीस नहीं दे पाएंगे. इस पर सिब्बल ने उनसे उनकी कहानी मांगी जिस पर केस चल रहा था. उसको पढ़ने के बाद हीरालाल सिब्बल ने कहा मैं आपका केस फ्री में लड़ूंगा बस आप मुझे अपनी और कहानी पढ़ने के लिए दे जाएं.

मंटो के लिए कोई भी मनुष्य मूल्यहीन नहीं था

मशहूर आलोचक मुहम्मद हसन अस्करी ने मंटो के बारे में लिखा है, "मंटो की दृष्टि में कोई भी मनुष्य मूल्यहीन नहीं था. वह हर मनुष्य से इस आशा के साथ मिलता था कि उसके अस्तित्व में अवश्य कोई-न-कोई अर्थ छिपा होगा जो एक-न-एक दिन प्रकट हो जाएगा. मैंने उसे ऐसे अजीब आदमियों के साथ हफ़्तों घूमते देखा है कि हैरत होती थी. मंटो उन्हें बर्दाश्त कैसे करता है! लेकिन मंटो बोर होना जानता ही न था. उसमें तो इंसानों को कुबूल करने की क्षमता इतनी अजीब थी कि जैसा आदमी उसके साथ हो, वह वैसा ही बन जाता था."

मंटो खुद भी कहते रहे हैं कि "चक्की पीसने वाली औरत जो दिन भर काम करती है और रात को चैन से सो जाती है मेरे अफ़सानों की नायिका नहीं हो सकती, मेरी नायिका चकले की वेश्या हो सकती है जो रात को जागती है और दिन को सोते में कभी-कभी ये ख़्वाब देखती है कि बुढ़ापा उसके दरवाज़े पर दस्तक देने आया है."

शराब और मंटो

एक आम इंसान की तरह मंटो भी कई तरह मानवीय दुर्बलताओं का शिकार थे. तमाम कोशिशों के बावजूद वह एक जिम्मेदार पति या पिता नहीं बन पाए. मंटो चेन स्मोकर थे. शराबखोरी की लत ऐसी थी कि रॉयल्टी के पैसे की भी पी जाया करते थे. हालाकि उन्होंने अपनी कमियों पर कभी पर्दा नहीं डाला. एक ऐसे ही वाकये का जिक्र रबिशंकर बल की किताब ''दोजखनामा'' में है.

''एक बार मंटो की बड़ी बेटी निगहत को टाइफॉइड हुआ था. मंटो की हालत दवाई खरीदने की भी नहीं थी. उन्होंने एक रिश्तेदार से दवाई के लिए पैसे उधार लिए और उन पैसों की व्हिस्की खरीदकर ले आए. उनकी पत्नी साफिया ने उन्हें बहुत देर तक खामोश होकर देखा. बगल के कमरे में से बेटी निगहत के कराहने की आवाज आ रही थी. मंटो साहब को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह सफीना का पैर पकड़कर माफी मांगने लगे''

इसके अलावा भी कई किस्से मशहूर हैं. मंटो एक बार अहमद नदीम क़ासमी के दफ़्तर पहुंचे जो उस समय 'नक़ूश' (लाहौर से प्रकाशित मशहूर पत्रिका) के संपादक थे. मंटो उनसे कहने लगे, "15 रुपए दे दीजिए शराब लेनी है." क़ासमी साहब ने साफ़ कह दिया, "मंटो मैं तुम्हें शराब के लिए पैसे नहीं दे सकता, अफसाने (कहानी) के लिए तुम्हें पेशगी दे सकता हूं."

मंटो चले गए और क़ासमी साहब के अनुसार एक घंटे बाद फिर आ धमके साथ में नया अफ़साना था, क़ासमी साहब ने उन्हें 15 रुपए दे दिए. पैसे जेब में रखकर मंटो बोले, "शराब महंगी ज़रूर है लेकिन अफ़साना भी इतना सस्ता नहीं." क़ासमी साहब को और 15 रुपए देने पड़े.

कई फिल्मों के लिए भी लिखा

मंटो ने मुबंई में रहते हुए कई फिल्मो के लिए लिखा. 'कीचड़', 'अपनी नगरिया', 'बेगम' ,'नौकर' 'चल-चल रे नौजवान', 'मुझे पापी कहो' और 'मिर्ज़ा ग़ालिब' जैसी फिल्में कुछ उदाहरण है.'मिर्ज़ा ग़ालिब' फिल्म तो बनती इससे पहले ही मंटो ने पाकिस्तान जाने का फैसला कर लिया. पाकिस्तान में मंटो ने अपनी जिंदगी की सबसे बेहतरीन कहानियां लिखी.

एकांत नहीं शोर शराबा पसंद करते थे मंटो

लिखने के लिए एकांत चाहिए.कई लेखकों को यह कहते हुए सुना होगा आपने लेकिन मंटो ऐसे नहीं थे. जब मंटो लिखते थे तो उस वक्त उनकी बेटियां शोर करती रहती. वह उनके साथ खेलते थे. उसी वक्त कोई मेहमान घर आ जाता तो मंटो उनकी भी खातिरदारी करते थे. इन सबके साथ वह अपनी कहानी लिखते थे.

मंटो अपनी पत्नी साफिया से बेहद प्यार करते थे. वह साफिया के कपड़े इस्तरी किया करते थे. तबीयत खराब होती, तो खुद खाना भी पका लेते. बहुत कम लोग जानते होंगे कि मंटो और उनकी पत्नी का जन्मदिन एक ही दिन आता है. दोनों 11 मई को पैदा हुए थे. मंटो की शादी 1936 में साफिया से हुई. दोनों में इतनी मोहब्बत थी कि मंटो अपना हर अफसाना सबसे पहले अपनी बीवी को सुनाया करते थे.

इस्मत और मंटो

साफिया से मंटो प्यार तो करते थे लेकिन एक कहानी इस्मत और मंटो की भी है. एक दौर था जब हैदराबाद में तमाम मर्द और औरतें सिर्फ इस बात में मसरूफ रहा करती थीं कि मंटों और इस्मत चुगताई निकाह क्यों नही कर लेते.

लोग इस्मत को रोक-रोककर पूछते कि आपने आखिर मंटो से शादी क्यों नहीं की. मंटो ने इस्मत से शादी को लेकर एक बार कहा-अगर मेरा और इस्मत का निकाह होता तो क्या पता हम दोनों निकाहनामे पर भी अफसाने लिख देते और काजी साहब की पेशानी पर दस्तखत कर आते.

रबिशंकर बल की ही किताब दोज़खनामा में मंटो के आखिरी दिनों का जिक्र है. लिखा गया है कि एक दिन मंटो साफिया से कहते हैं- चलो हिन्दुस्तान चलते हैं. बम्बई चलते हैं. वह मेरा दूसरा जन्मस्थान है.

साफिया पूछती है -वहां कौन नौकरी देगा आपको

मंटो कहते हैं - इस्मत को चिट्ठी लिखता हूं.

साफिया कहती हैं- इस्मत तो आपकी कोई खबर नहीं लेती

फिर मंटो ने इस्मत को चिट्ठी लिखी लेकिन कोई जवाब नहीं आया. मंटो सोचते हैं कि शायद इस्मत ने समझ लिया है कि मैं अपने फायदे के लिए पाकिस्तान चला गया था या वो यह सोच रही है कि शराब मुझे पूरी तरह पी गई है.

मंटो 42 साल की उम्र में दुनिया छोड़ कर चले गए शायद इसका कोई गम न  करे क्योंकि हम सबको मरना है. दुख सिर्फ इस बात का है कि मंटो की मौत के बाद कई ऐसी रचनाएं रह गई जो  बिना लिखी हुई है. आज भी मंटो के कई किरदार यतीमी में जी रहे हैं. वो किरदार सरहद के दोनों तरह हैं. मगर उन किरदारों को अफसानों में लिखने वाला कोई मंटो नहीं रहा. वह तो अदबी इन्क़लाब के हंगामी दौर में अपना हंगामाख़ेज़ रोल अदा कर अलविदा कह चुके हैं.

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