Saamana: शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में बीजेपी नेता तेजिंदर बग्गा के मामले पर लिखते हुए केंद्र सरकार पर कड़ा वार किया है. सामने में कहा गया कि, सत्ता का नशा खतरनाक होता है. यह नशा अच्छे-अच्छों को बर्बाद कर देता है, ऐसा महाभारत, पुराण काल के समय से देखा जा रहा है. इसलिए कम से कम लोकतांत्रिक परंपरा में तो सत्ता का असीमित दुरुपयोग कोई न करे. दिल्ली में बीजेपी के नेता तेजिंदर बग्गा को पंजाब पुलिस ने गिरफ्तार किया. इससे भारतीय जनता पार्टी को व्यक्तिगत स्वतंत्रता, लोकतंत्र, पुलिस का दुरुपयोग आदि को लेकर अलग ही प्यार उमड़ आया. 


सामना में कहा गया कि, बग्गा को पंजाब पुलिस द्वारा गिरफ्तार करना मतलब तानाशाही होने का मत बीजेपी के लोग व्यक्त कर रहे हैं. पंजाब पुलिस के कृत्य से झटका लगा और आपातकाल जैसा माहौल बन गया. ऐसी चिंता भारतीय जनता पार्टी के लोगों ने व्यक्त की है. बीजेपी की यह भूमिका आश्चर्य को भी हैरान करने वाली ही है. बग्गा उत्पाती गृहस्थ हैं और उन्होंने बीजेपी की सत्ता के समर्थन से कई उत्पात मचाए हैं. विरोधियों की सोशल मीडिया में यथासंभव बदनामी करने में उनका हाथ कोई नहीं पकड़ सकता है. कई लोगों पर उन्होंने हमला किया है.


तानाशाही का माहौल बनाया हुआ- सामना


सामना में आगे कहा गया, बग्गा ने केजरीवाल के जीवन को खतरा निर्माण हो, ऐसी भाषा का इस्तेमाल करके बीजेपीई कार्यकर्ताओं को भड़काया. केजरीवाल को जिंदा नहीं छोड़ेंगे, इस तरह का बयान इन महाशय ने दिया. इस पर पंजाब पुलिस ने आपराधिक मामला दर्ज करके उन्हें गिरफ्तार किया. बग्गा को गिरफ्तार करके पंजाब न ले जाया जाए इसलिए बीजेपी शासित राज्यों ने पंजाब पुलिस को रोका व उनकी गैरकानूनी ढंग से रिहाई कराकर भगा दिया. दिल्ली व हरियाणा पुलिस का यह कृत्य गैरकानूनी होने की बात न्यायालय ने ही कही है. इसका अर्थ यह है कि भारतीय जनता पार्टी के लोग कितनी भी झुंडशाही, मनमानी कर लें फिर भी केंद्र सरकार की पुलिस उनकी गैरकानूनी ढंग से रिहाई कराकर आरोपियों को भगा देती है. इसे ही अराजकता अथवा तानाशाही कहते हैं. 


आगे बोला गया, केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और लोकतांत्रिक मार्ग से तीन बार निर्वाचित हुए हैं. बीजेपी के लोग उनकी चौखट पर जाकर उकसाने वाले भाषण देते हैं, दंगे जैसा माहौल तैयार करते हैं. केजरीवाल को लेकर धमकी देने वाली बातें करते हैं. इस पर असल में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को तत्काल हस्तक्षेप करते हुए कार्रवाई करनी चाहिए थी. दिल्ली एक केंद्रशासित राज्य है इसलिए वहां के मुख्यमंत्री के साथ-साथ संपूर्ण कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी उन्हीं की है. परंतु उन्हीं का एक कार्यकर्ता दिल्ली के मुख्यमंत्री का जीवन भला-बुरा करने की धमकी देता है व केंद्र सरकार हाथ मलती रहती है. फिर पंजाब पुलिस ने कार्रवाई की तो कहां क्या बिगड़ा? 


सामना में आगे कहा गया, बीजेपी के कई मुख्यमंत्रियों ने पंजाब पुलिस का निषेध किया है. पुलिस का राजनीतिक कार्यों के लिए इस्तेमाल हो रहा है, ऐसा विचार गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत व अन्य मुख्यमंत्रियों ने व्यक्त किया है. सत्ता का इस तरह से दुरुपयोग करना ठीक नहीं है, ऐसा ‘ज्ञानदीप’ उन्होंने जलाया है. पुलिस का और केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कौन कर रहा है, यह देश की जनता खुली आंखों से देख रही है. गुजरात के जिग्नेश मेवानी को असम की पुलिस ने गैरकानूनी ढंग से गिरफ्तार किया. असम की जेल से रिहा होते ही मेवानी को गुजरात पुलिस ने पकड़ा और जेल में डाल दिया. इसे भी आपातकाल जैसा ही कहा जा सकता है, लेकिन बग्गा को ‘राहत’, न्यायालय ने अब गिरफ्तारी से संरक्षण दे दिया है. 


राज्यों के मुख्यमंत्रियों का भी सम्मान रहना चाहिए- सामना


वैसा संरक्षण मेवानी अथवा अन्य को मिलना संभव नहीं होता है. मेवानी ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ एक ‘ट्वीट’ किया, इस पर उनके खिलाफ कार्रवाई की गई. फिर दिल्ली के बग्गा ने मुख्यमंत्री केजरीवाल के मामले में भी वही अपराध किया, लेकिन बग्गा के खिलाफ कार्रवाई करते ही पूरी बीजेपी ‘अन्याय-अन्याय’ ऐसे छाती पीटते हुए क्रंदन करने लगी है. पंजाब पुलिस के खिलाफ हरियाणा पुलिस खड़ी हो और वह भी एक अपराधी को बचाने के लिए, यह दृश्य राष्ट्रीय एकात्मता की दृष्टि से खतरनाक है. प्रधानमंत्री मोदी का सम्मान रहना चाहिए, उसी तरह राज्यों के मुख्यमंत्रियों का भी रहना चाहिए. परंतु भारतीय जनता पार्टी को यह संयमित भूमिका स्वीकार नहीं है. विरोधियों की यथासंभव बदनामी, कीचड़ उछालना ही उनका आत्मबल सिद्ध होता है. 


पंजाब के मुख्यमंत्री पद पर भगवंत मान के विराजमान होते ही उनकी भी इसी तरह से बदनामी करने में बीजेपी की ‘डिजिटल’ टीम आगे थी. महाराष्ट्र में भी अलग क्या चल रहा है? बीजेपी के ‘बग्गा व बग्गी’ होंगे अन्यथा अन्य पोपट व मैना, मुख्यमंत्री ठाकरे से लेकर महाविकास आघाड़ी के कई नेताओं के मामले में जैसी भाषा इस्तेमाल की जाती है, उसका कोई जवाब दे तो इन लोगों को लगता है कि ‘तानाशाही आ गई!’ असल में केंद्रीय सत्ता के खिलाफ बोलने वालों के पीछे जो केंद्रीय जांच एजेंसियों का झमेला लगाया जाता है, वहीं सीधे-सीधे तानाशाही है, ऐसा ‘बग्गा महामंडल’ को क्यों नहीं लगना चाहिए? 


विक्रांत बचाओ घोटाले के आरोपी हों या राजद्रोह मामले के आरोपी, न्यायालयीन निर्णयों का पालन न करते हुए जिस तरह का बयान देते हैं, उसे क्या संविधान का पालन कहा जाए? इसलिए उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना मतलब तानाशाही अथवा आपातकाल आने का शोर मचाना, ऐसा ड्रामा सचमुच हो गया है. देश का माहौल जाति-धर्म के आधार पर बिगाड़ना यही इन लोगों का काम है. राष्ट्रभक्ति व हिंदुत्व के नाम पर देश के टुकड़े करने वाले कृत्य कराना, यह उनका शौक बन गया है. केजरीवाल, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, हेमंत सोरेन आदि पर यथासंभव हमला करना, यह उनकी आजादी है. उस आजादी की रक्षा के लिए कवच प्रदान करना, परंतु वही आजादी किसी और ने ली तो पुलिस की गिरफ्त से ऐसे अपराधियों को पुलिस की मदद से ही भगा ले जाना. देश में ऐसा हो रहा है. इसे ही अराजकता और तानाशाही कहते हैं. इस प्रवृत्ति को बल देने वाले एक दिन इसी मिट्टी में मिल जाएंगे. तब तक देश अखंड रहेगा क्या?


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