Sabarimala Priests Move Kerala HC: सबरीमाला मंदिर के मुख्य पुजारी की नियुक्ति में ब्राह्मणों के एकाधिकार का मामला अब हाईकोर्ट में पहुंच गया है. केरल हाई कोर्ट (Kerala High Court) की पीठ ने उस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) की 3 दिसंबर को अधिसूचना को चुनौती दी गई थी.
अधिसूचना में कहा गया था कि सबरीमाला (Sabarimala) और मलिकप्पुरम मंदिरों में 'मेल शांति' (मुख्य पुजारी) केरल में जन्मे ब्राह्मण (Brahmins) ही होने चाहिए. याचिकाकर्ताओं ने बोर्ड द्वारा हर साल जारी की जाने वाली अधिसूचनाओं को यह कहते हुए चुनौती दी है कि यह मानदंड भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 (1) और 16 (2) के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
याचिकाकर्ताओं में से एक विष्णु नारायणन, जो पिछले तीन दशकों से पुजारी हैं उनको विश्वास है कि वह सबरीमाला में पुजारी बनने की योग्यता रखते हैं. उन्होंने कहा, "समय बदल गया है. एक व्यक्ति को अपने कर्म से ब्राह्मण होना चाहिए, जन्म से नहीं. कई मंदिरों में पिछड़े हिंदू और दलित अनुष्ठान कर रहे हैं, लेकिन सबरीमाला में, हमें केवल इस कारण से अवसर से वंचित किया जा रहा है कि हम ब्राह्मण नहीं हैं. जाति के आधार पर यह भेदभाव समाप्त होना चाहिए."
याचिकाकर्ताओं ने दी ये दलील
अंग्रेजी और ज्योतिष में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री के साथ नारायण, जो पिछड़े एझावा समुदाय से आते हैं. वह कोट्टायम में पुजारियों को प्रशिक्षित करने के लिए एक स्कूल तंत्र विद्यालय भी चला रहे हैं. बोर्ड द्वारा उनकी याचिका खारिज किए जाने के बाद उन्होंने केरल हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उन्होंने कहा कि उनकी लड़ाई अगली पीढ़ी के लिए है. सबरीमाला में पुजारियों के पदों के लिए योग्यता ही एकमात्र कारक होना चाहिए. आजकल, ब्राह्मण समुदायों के कुछ युवा इस पेशे में शामिल हो रहे हैं. कई युवा पुजारियों ने पद छोड़ दिया है, क्योंकि पुजारियों के लिए कोई सामाजिक जीवन नहीं है. इसलिए स्थिति समय के अनुरूप बदलाव की मांग करती है.
एक अन्य आवेदक राजेश कुमार सबरीमाला में मुख्य पुजारी के पद को एक सपने की नौकरी के रूप में देखते हैं. 23 साल के अनुभव वाले पुजारी ने कहा, “जाति के बावजूद, सबरीमाला में थन्थरी का पद सबसे बड़ा सपना है. यह हमारा अधिकार है." उन्होंने कहा कि कई पुजारी सामान्य धारा के अलावा तंत्र विद्या में शिक्षित हैं और उन्हें एक मंदिर में 10 सालों का आवश्यक अनुभव है, लेकिन मलयाला ब्राह्मण की स्थिति ही एकमात्र बाधा है.
पहले भी चुका है विरोध
दरअसल 2017 में त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड ने अपने नियंत्रण वाले मंदिरों में दलित पुजारियों को नियुक्त करके सामाजिक समावेश की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया. सरकारी नौकरियों के लिए अपनाई जाने वाली भर्ती प्रक्रिया और आरक्षण के नियमों का पालन करते हुए पुजारियों का चयन करने के बोर्ड के फैसले से दलितों के गर्भगृह में प्रवेश की सुविधा हुई.
बोर्ड ने 1970 में इसी तरह के सुधार की शुरुआत की, जब एक ओबीसी समुदाय के लगभग 10 सदस्यों को पुजारी नियुक्त किया गया, लेकिन इस फैसले का ब्राह्मण समुदाय ने विरोध किया. इसके बाद, बोर्ड ने 10 ओबीसी पुजारियों को क्लर्क के रूप में फिर से नामित किया और उन्हें मंदिरों से बाहर कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में एक ओबीसी पुजारी को केरल के एक मंदिर में नियुक्त करने के लिए हस्तक्षेप किया, लेकिन सबरीमाला में मुख्य पुजारी का पद ओबीसी समुदायों के लिए इस शर्त के कारण बाधा बना हुआ है कि केवल केरल के ब्राह्मण ही आवेदन करने के पात्र हैं.
इसे भी पढ़ेंः-