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Sachin Pilot vs Ashok Gehlot: अनशन से पूरी होगी सचिन की ख्वाहिश! गहलोत से पंगा पड़ेगा भारी... 'बागी' पायलट के पास क्या हैं विकल्प

Rajasthan Election 2023: इस साल के अंत में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच रार खुलकर सामने आ गई है.

Congress CM Face In Rajasthan: मरुभूमि राजस्थान लंबे समय से सियासी तपिश से झुलस रहा है. सत्ताधारी कांग्रेस के सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ सचिन पायलट बगावती तेवर दिखाते रहे हैं. एक बार फिर रविवार (9 अप्रैल) को कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने बगावती तेवर अपनाते हुए अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन करने का एलान कर दिया. पायलट ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कार्रवाई को लेकर गहलोत सरकार को निशाने पर लिया.

वहीं, इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद सचिन पायलट अचानक ही अशोक गहलोत खेमे के नेताओं के निशाने पर आ गए. इतना ही नहीं, राजस्थान के कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने भी पायलट को उनके सामने मुद्दा रखने की बात कही. वहीं, कांग्रेस आलाकमान के करीबी और पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की योजनाओं और पहल ने बड़ी आबादी को प्रभावित किया है.

आसान शब्दों में कहें तो गहलोत सरकार के खिलाफ अनशन की बात करने पर पायलट को कांग्रेस हाईकमान से लेकर प्रदेश प्रभारी तक का साथ नहीं मिल रहा है. वहीं, जिस तरह की तल्ख प्रतिक्रिया पायलट को लेकर कांग्रेस की ओर से आई है, इसे देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि पायलट की सीएम फेस बनने की ख्वाहिश इतनी आसानी से पूरी नहीं होगी. आइए जानते हैं कि अगर सचिन पायलट बागी होते हैं, तो उनके पास क्या विकल्प हैं?

पहले जानिए किसने क्या कहा...

सचिन पायलट ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अगर भ्रष्टाचार के मामले में  कार्रवाई नहीं की गई तो वह गहलोत सरकार के खिलाफ अनशन करेंगे. उन्होंने कहा कि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के खिलाफ खान घोटाले के साथ ही ललित मोदी कांड पर कोई एक्शन नहीं हुआ. भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारी सरकार ने मजबूती से कार्रवाई नहीं की है.

गहलोत सरकार पर हुए इस सियासी हमले के बाद राजस्थान के कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा (Sukhjinder Singh Randhawa) ने सचिन पायलट को लेकर तल्ख रुख दिखाया. उन्होंने कहा कि ऐसे संवाददाता सम्मेलन करना ठीक नहीं है. उन्हें पहले पार्टी के भीतर ही इस मुद्दे को उठाना चाहिए था. रंधावा ने ये भी कहा कि प्रभारी बनने के बाद पायलट के साथ 20 से ज्यादा बैठकें हुईं, लेकिन उन्होंने भ्रष्टाचार का मुद्दा नहीं उठाया.

'बागी' सचिन पायलट के पास क्या हैं विकल्प?

राहुल गांधी के नेतृत्व में निकली भारत जोड़ो यात्रा के बाद राजस्थान में सीएम चेहरा बदलने को लेकर कई अटकलें लगाई गई थीं. हालांकि, अभी तक ऐसा हो नहीं सका है. हालिया सियासी हालातों के बाद अब इसकी उम्मीद और कमजोर पड़ गई है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश की ओर से गहलोत सरकार पर दिखाया गया भरोसा बताने के लिए काफी है कि अशोक गहलोत पार्टी आलाकमान के सामने खुद को सचिन पायलट से ज्यादा वफादार साबित कर चुके हैं. भले ही सचिन पायलट को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का करीबी माना जाता हो, लेकिन उनके बगावती तेवर सीएम फेस बनने की सियासी राह में सबसे बड़ा रोड़ा बनकर उभरे हैं. 

पायलट के पास सियासी विकल्पों की बात करें तो उनके पास कांग्रेस में ही रहकर खुद को मजबूत करने और राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 के नतीजों के बाद अपनी दावेदारी पेश करने का एक विकल्प है. हालांकि, इसके लिए उन्हें अपना समर्थन करने वाले विधायकों का आंकड़ा बढ़ाना होगा. इसके इतर पायलट के सामने कांग्रेस में ही रहते हुए अपनी बारी आने का इंतजार करने का भी एक विकल्प है.

अगर गहलोत सरकार और कांग्रेस से बगावत कर सचिन पायलट भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर चलते हैं तो उनके सामने आम आदमी पार्टी एक विकल्प हो सकती है. आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में उतरने का एलान कर दिया है. केजरीवाल की पार्टी को राजस्थान में एक चर्चित चेहरे की तलाश होगी, जो सीएम फेस बन सके. अगर पायलट खुद को सीएम फेस के तौर पर देखना चाहेंगे तो AAP उन्हें हाथोंहाथ ले सकती है.

केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से इतर सचिन पायलट के सामने उस बगावत को दोहराने का भी विकल्प है, जिसे अशोक गहलोत ने फेल कर दिया था. बीजेपी में शामिल होकर पायलट पहल भी गहलोत सरकार को पलटने की कोशिश कर चुके हैं. अगर वह बीजेपी में जाते हैं तो संभव है कि पार्टी उन्हें असम के सीएम असम बिस्वा सरमा की तरह ही मेहनत के फल के तौर पर सीएम की कुर्सी से नवाज दे.

हालांकि, इन तमाम विकल्पों के अलावा पायलट के पास अपनी खुद की पार्टी बनाने का भी विकल्प मौजूद है. ये अलग बात है कि अगर वो ऐसा कदम उठाते हैं तो इससे उन्हें बहुत ज्यादा फायदा होता नजर नहीं आ रहा है और वह कांग्रेस के लिए ही मुसीबत खड़ी करेंगे. ठीक उसी तरह जैसे अरविंद केजरीवाल ने गुजरात चुनाव में कांग्रेस के लिए की थी. वैसे, ये वक्त ही बताएगा कि राजस्थान में सियासत कौन सी करवट लेगी, लेकिन इतना तय है कि अशोक गहलोत से पंगा लेकर कांग्रेस में सचिन पायलट का सफर आसान नहीं रहने वाला है.

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