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'मैं पल दो पल का शायर हूं' लिखने वाले साहिर लुधियानवी की आज जन्मशती, आज भी दिलों पर है उनकी हुक्मरानी

Sahir Ludhianvi Birth Anniversary: 'मैं पल दो पल का शायर हूं' लिखकर हमेशा लोगों के जेहन में जिंदा रहने वाले अज़ीम शायर साहिर लुधियानवी की आज 100वीं जयंती है और उनको याद करते हुए लोग आज भी उनकी इन नज्मों, शायरी, गजलों की मिसाल देते हैं.

मशहूर शायर साहिर लुधियानवी की आज 100वीं जयंती है और शायरी के जिस मुकाम को उन्होंने छुआ उसको लेकर आज भी फनकार बेहद अदब से उनका नाम लेते हैं. उर्दू शायरी के साथ-साथ हिंदी सिनेमा के अजीम फनकार साहिर लुधियानवी ने ऐसी-ऐसी रचनाएं कीं जो आज भी लोगों के जेहन में ताजा हवा के झोंके की तरह खुशनुमा हैं. साहिर लुधियानवी साहब ने हिंदी सिनेमा में गीतों को लिखने की जो नई परंपरा शुरू की थी उसको आज भी बेहतरीन माना जाता है और उन्होंने कई फिल्मों के लिए एक से बढ़कर एक गीत लिखे.

जब साहिर साहब ने लिखना शुरू किया था तब फ़ैज़, फ़िराक आदि शायर अपनी बुलंदी पर थे, पर उन्होंने अपना जो विशेष लहज़ा और रुख़ अपनाया, उससे न सिर्फ उन्होंने अपनी अलग जगह बना ली, बल्कि वो अदब के बड़े नाम बन गए. उनके इस गीत को तो आज भी हर मस्तमौला इंसान अपने जज्बातों को बयां करने के लिए एकदम माकूल मानता है.

मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गाया

पचास के दशक से पहले इंडस्ट्री में ऐसा रिवाज था कि पहले गीतकार गाना लिखता था और बाद में संगीतकार उस पर धुन की रचना करते थे लेकिन साहिर लुधियानवी देश के पहले ऐसे फिल्मी गीतकार हैं, जिन्होने संगीतकार की धुनों पर गीतों की रचना की. 1951 में एसडी बर्मन ने उनसे संपर्क किया और कहा कि ''जनाब एक धुन है जिस पर एक गीत लिखना है''. साहिर साहब ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया और फिल्म 'नौजवान' के लिए गीत लिखा-''ठंडी हवाएँ लहरा के आए''.

गीतकारों को उनका हक दिलाने में कामयाब हुए साहिर ही पहले ऐसे गीतकार थे, जिन्होने फिल्मों में गीत लिखने वाले गीतकारों को उनका हक दिलाने का काम किया. उनके साथ हो रहे शोषण के खिलाफ उन्होंने जमकर आवाज उठाई और गीतकारों को उनका हक दिलाने में कामयाब हुए.

हर बार अधूरी रही साहिर की मुहब्बत साहिर एक ऐसे शख़्स थे जिन्हें कई बार मुहब्बत हुई लेकिन हर बार मुहब्बत अधूरी रही. अमृता से एक खामोश इश्क़ के बाद जब साहिर का दिल दुखा तो अपने जज्बात उनकी कलम ने कागज़ पर उतार दिए और कहा-

कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया

साहिर की जिंदगी अब्‍दुल हई उर्फ साहिर का जन्म लुधियाना (पंजाब) में हुआ था. उनके पिता की कई पत्नियां थीं, लेकिन पुत्र सिर्फ एक था. जब साहिर मात्र आठ साल के थे तब उनके पिता ने उनकी मां को छोड़ दिया. इस घटना का साहिर पर काफी असर पड़ा. उनमें बचपन से ही भावुक और विद्रोही तेवर आ गए. हालात से जाहिर था कि साहिर को किसी न किसी कलागत विधा से जुड़ना था. उन्होंने लिखना शुरू कर दिया और लुधियाना के गवर्नमेंट कॉलेज में अपनी कविताओं से छा गए. लेकिन बड़े ही अफसोस की बात है कि जिस शायर ने अपनी कलम से हिन्दुस्तान का तालीमी और जेहनी मेयार को न सिर्फ मंचो पर बल्कि फिल्मी पर्दे पर भी बुलंद किया उसी शायर के कुछ पत्र, डायरियां और नज्में मुंबई में एक कबाड़ की दुकान में मिले हैं. एक NGO ने इन्हें 3000 रुपये में कबाड़ की दुकान से खरीद लिया. जुहू में स्थित कबाड़ की दुकान से संग्रहित की गई इन चीजों को NGO ने प्रदर्शित किया है.

साहिर ने दुनिया के इसी दस्तूर को शायद पहले ही समझ लिया था और इसीलिए वो पहले ही लिख गए थे..

तुम दुनिया को बेहतर समझे, मैं पागल था ख़्वार हुआ तुम को अपनाने निकला था, ख़ुद से भी बेज़ार हुआ देख लिया घर फूंक तमाशा, जान लिया अपना अंजाम मेरे साथी ख़ाली जाम

यहां मिलेंगी आपको साहिर की शायरी और नज्में तल्खियां, परछाईयां, आओ कि कोई ख्वाब बुनें जैसी किताबों में जहां साहिर लुधियानवी की गजलें और नज्में संकलित हैं, तो गाता जाए बंजारा किताब में उनके सारे फिल्मी गीत मौजूद हैं. इन गीतों में भी गजब की शायरी है. उनके कई गीत आज भी लोगों की जबान पर चढ़े हुए हैं.

साहिर ने भी अपनी कलम से जब समाजिक यथार्थ का चित्रण किया तो मुल्क की मुफलिसी लिखी और मजलूमों पर हो रहे अत्याचार पर ये लिखा-

जरा मुल्क के रहबरों को बुलाओ ये कूचे ये गलियां ये मंजर दिखाओ जिन्हें नाज है हिंद पर उनको लाओ जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं ?

साफ तौर पर आज भी ये शायरी मौजूदा हालात पर सटीक बैठती है और इसी से जाहिर होता है कि वो कितने दूरदर्शी शायर थे. सबको अपने गीतों से हंसाने और रुलाने वाले साहिर लुधियानवी साहब का 25 अक्टूबर 1980 को निधन हो गया लेकिन अपने गीतों, गजलों और नज्मों के जरिए वो आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं. उनको याद करने के लिए उनकी ये पंक्तियां हमेशा जेहन में रहेंगी.

हज़ार बर्क़ गिरे लाख आंधियां उट्ठें वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं

साहिर लुधियानवी ने फिल्म कभी-कभी के गीत 'मैं पल दो पल का शायर हूं' में जैसे अपनी सारी भावनाएं उडेल दीं और आज भी लोग उन्हें इस गीत के जरिए सबसे ज्यादा याद करते हैं.

मैं पल दो पल का शायर हूँ पल दो पल मेरी कहानी है पल दो पल मेरी हस्ती है पल दो पल मेरी जवानी है मैं पल दो पल का शायर हूँ....

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