सपा यूपी में कांग्रेस को कितना तवज्जो देगी, 'India' गठबंधन के लिए ये अहम सवाल क्यों है?
INDIA गठबंधन का नाम आते ही सवाल उठने लगता है कि क्या यूपी में सपा और कांग्रेस साथ दिखेंगे. अभी सपा, कांग्रेस को तवज्जो नहीं दे रही है, उसे अपना आधार वोट खोने का डर है.
कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ विपक्षी गठबंधन में शामिल प्रमुख पार्टियों में से एक है. लेकिन लोकसभा में 80 सांसदों को भेजने वाले उत्तर प्रदेश में उसकी हालत ठीक नहीं है. राज्य में आम चुनाव से पहले पार्टी को कई तरह की चुनैतियों का सामना करना पड़ रहा है.पार्टी के सामने यूपी में आंतरिक तनाव का सवाल सबसे बड़ा है. पार्टी के बीच मतभेद और कलह की वजह से नए गठबंधन इंडिया के नेतृत्व पर भी सवाल उठ रहे हैं.
इंडिया टुडे में छपी खबर को मानें तो कांग्रेस के पदाधिकारियों का दावा है कि 'टीम प्रियंका' और खबरी के बीच बढ़ता मतभेद यूपी में संकट की मुख्य वजह है. कांग्रेस के कई नेता खबरी की बैठकों में शामिल नहीं होते हैं . नेताओं को डर है कि प्रियंका गांधी की टीम को नाराज न हो जाए.
राज्य में कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे दलित नेता बृजलाल खबरी जिन उम्मीदों के साथ आगे लाए गए थे उसमें वो खरे नहीं उतर पाए हैं. खबरी को अक्टूबर 2022 से यूपी में कांग्रेस का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था. खबरी एक दलित नेता हैं. सूत्रों के मुताबिक उनके ओर से बुलाई गई बैठकों में कांग्रेस के अधिकांश वरिष्ठ नेता गायब रहते हैं, वहीं राज्य में काम कर रही प्रियंका गांधी की कोर टीम के साथ उनके बढ़ते मतभेदों की खबरें बढ़ रही हैं.
पिछले एक महीने में खबरी ने यूपी के सभी जिलों के पार्टी नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था. इनमें 2022 में चुनाव लड़ने वाले कम से कम 100 ऐसे उम्मीदवार और कांग्रेस के पूर्व जिला और शहर अध्यक्षों को भी बुलाया गया था. लेकिन उनमें से कई अध्यक्ष बैठकों में शामिल नहीं हुए. जानकारों का कहना है कि यह सब यूपी कांग्रेस में संवाद की कमी और राज्य नेतृत्व के प्रति असंतोष की ओर इशारा करता है.
यूपी में बढ़ रहा कांग्रेस का आंतरिक विवाद
कांग्रेस के पदाधिकारियों का दावा है कि 'टीम प्रियंका' और खबरी के बीच बढ़ता मतभेद यूपी में संकट की मुख्य वजह है. एक धारणा यह भी है कि प्रियंका की कोर टीम खाबरी के यूपी कांग्रेस प्रमुख होने के खिलाफ है और उनके बारे में नकारात्मक प्रतिक्रिया आलाकमान तक पहुंचती है.
इंडिया टुडे में छपी खबर के मुताबिक कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, ' प्रियंका एक नए राज्य प्रमुख की नियुक्ति के लिए जोर दे रही हैं. अजय राय, पीएल पुनिया और वीरेंद्र चौधरी जैसे वरिष्ठ नेता दौड़ में हैं. दूसरी ओर, खबरी और उनके करीबी सहयोगियों का दावा है कि उन्हें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के कार्यालय का समर्थन प्राप्त है. इस रस्साकसी में राज्य के कार्यकर्ता परेशान हैं और पार्टी जमीनी स्तर पर बहुत सक्रिय नहीं है.'
बता दें कि प्रियंका गांधी ने महीनों से राज्य मुख्यालय का दौरा नहीं किया है. ऐसी भी चर्चा है कि प्रियंका उत्तर प्रदेश की प्रभारी नहीं बनी रहेंगी और कांग्रेस शासित राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों से पहले बड़ी जिम्मेदारियां संभाल रही हैं. यह अभी स्पष्ट नहीं है कि प्रियंका गांधी पद पर रहेंगी या नहीं, लेकिन उनकी टीम राज्य में काम करती रहेगी.
इसके अलावा यूपी में 'इंडिया' गठबंधन की गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए कांग्रेस, सपा और राष्ट्रीय लोक दल के बीच अभी तक कोई समन्वय नहीं है. अभी तक सपा नेता कांग्रेस को गंभीर साझेदार नहीं मानते हैं.
सपा क्यों नहीं दे रही इंडिया को तवज्जो
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जब से INDIA, बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए से लड़ने के लिए मैदान में उतरी है, तब से ये सवाल पैदा हो रहे हैं कि क्या यूपी में सपा और कांग्रेस एक साथ दिखाई देंगे. यूपी में कांग्रेस नेताओं का मानना है कि पार्टी को उत्तर प्रदेश में मजबूत आधार दिलाने के लिए कांग्रेस को अकेले ही काम करना होगा और समाजवादी पार्टी से खुद को अलग रखना होगा.
मौजूदा स्थिति को देखते हुए ये भी कहा जा रहा है कि राज्य में एक प्रमुख विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी (सपा) भी कांग्रेस को गंभीरता से नहीं ले रही है. वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क ने एबीपी न्यूज को बताया कि समाजवादी पार्टी कांग्रेस और बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ अलग-अलग मौकों पर समझौता करके साथ मिलकर चुनाव लड़ती रही है. दोनों ही पार्टियों के साथ चुनाव लड़ने में न तो समाजवादी पार्टी ने कुछ हासिल किया है और न ही साथी दलों को कोई बड़ा फायदा हुआ है. इसलिए अखिलेश यादव कोई भी कदम फूंक-फूंक कर उठाना चाहेंगे.
अश्क ने आगे कहा 'बात अभी इंडिया गठबंधन तक आई है, अभी तमाम काम बाकी हैं. तमाम कामों में सबसे जरूरी काम सीटों के बंटवारे का है, और सीटों का बंटवारा सपा के लिए अहम सवाल है, क्योंकि सपा की पकड़ यादवों, मुसलमानों और पिछड़ी जातियों में रही है. सपा इस आधार में कहीं से कमी नहीं आने देना चाहती है. यूपी की लड़ाई दूसरी जगह से मुश्किल भी है और आसान भी'.
पत्रकार अश्क का मानना है कि सपा अगर कांग्रेस के साथ आती है तो वो एक बार ये जरूर सोचेगी कि उसका वोट आधार पर कोई असर न पड़े. सपा कांग्रेस को तवज्जो इसलिए भी नहीं दे रही है क्योंकि वो दलित वोटों का आधार खोना नहीं चाहती. सपा को ये डर जरूर है कि ऐसा करने से दलित वोट बसपा के पाले में न चला जाए. इस वोटबैंक पर बीजेपी की भी नजरें हैं इसलिए ये लड़ाई और मुश्किल है'.
अश्क ने कहा कि योगी आदित्यनाथ के माध्यम से बीजेपी ने सभी को जोड़ने की कोशिश की है. निकाय चुनाव में बीजेपी ने पासमांदा मुसलमानों को सीटें दी है, जो महज एक प्रयोग था. लोकसभा चुनाव में बीजेपी इसे फिर से दोहराएगी. बीजेपी के नेशनल कमेटी में जिस तरह से पासमांदा मुसलमानों को तरजीह दी गई है उससे ये साफ हो गया कि बीजेपी मुसलमानों के एक खास वर्ग को जोड़ने पर काम कर रही है. बीजेपी खासतौर से पिछड़े मुसलमानों के वर्ग को साधना चाहती है. ये वही वोटर हैं जो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को वोट देते आए हैं. अब तक साझेदारी में सपा ने जो सीटें कांग्रेस को दी है उसका नुकसान हुआ है. इसलिए सपा बहुत फूंक-फूंक के कदम उठाना चाहेगी. इसका असर गठबंधन पर भी पड़ेगा.
अश्क ने ये भी कहा कि अकेले लड़के भी अखिलेश को बहुत कुछ हासिल नहीं होने वाला है, और साथ लड़के भी यूपी में बहुत कुछ हासिल नहीं होने वाला है. सपा को ये पता है कि अगर गठबंधन को कुछ हासिल होता है तो सीटों के बंटवारे में सपा को अपने हिस्से की सीटें खोनी पड़ जाएंगी.
इंडिया गठबंधन की वजह से कांग्रेस को अपनी सीटों से करना पड़ेगा समझौता
कांग्रेस का सिर्फ यही उद्देश्य है कि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी पार्टियों के बीच उसका एकाधिकार बना रहे. लेकिन ये तभी हो सकता है जब उसके पास सीटों की संख्या ज्यादा हो. संसद में भले ही वो विपक्षी पार्टियों में पहले नंबर की पार्टी है. लेकिन इतनी सीटों से काम नहीं चल सकता है.
अश्क ने कहा कि पिछले चुनावों में कांग्रेस 400 ये उससे ज्यादा की सीटों पर लड़ती रही है .ये पहला मौका होगा जब कांग्रेस इंडिया जैसे गठबंधन में शामिल होकर कांग्रेस को अपनी सीटों से समझौता करने की जरूरत पड़ेगी.
इन सीटों का मूलरूप से असर बंगाल, बिहार, यूपी, जैसे राज्यों में पड़ेगा. कांग्रेस के लिए सबसे सुरक्षित गठबंधन झारखंड और महाराष्ट्र में दिख रहा है, ये बिहार में भी कुछ हद तक है. यूपी में ही कांग्रेस को सबसे ज्यादा दिक्कत आएगी, क्योंकि यहां पर पूरे इंडिया गठबंधन को अपनी पैठ बनाने की जरूरत है.