Same-Sex Marriage Case Hearing: सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (19 अप्रैल) को लगातार दूसरे दिन समलैंगिक विवाह के मामले पर सुनवाई जारी रही. समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने की दलीलों पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि समलैंगिक संबंध महज शहरी विचार नहीं (Urban Elitist Concept) नहीं है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने कहा कि शहरों में अपनी यौन पहचान बताने वाले ज्यादा लोग सामने आते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि इसे शहरी विचार कहा जाए. 


डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकार के पास कोई ऐसा डाटा नहीं है जो ये बताए कि सेम सेक्स मैरिज की मांग सिर्फ शहरी वर्ग तक ही सीमित है. राज्य एक व्यक्ति के खिलाफ एक विशेषता के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है, जिस पर व्यक्ति का नियंत्रण नहीं है. केंद्र सरकार ने सेम सेक्स मैरिज याचिका का विरोध करते हुए कहा है कि ये सिर्फ कुछ शहरी वर्ग की सोच को दर्शाता है. 


याचिकाकर्ताओं ने किया ये आग्रह 


समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह अपनी पूर्ण शक्ति, प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार का इस्तेमाल कर समाज को ऐसे बंधन को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करे, ताकि एलजीबीटीक्यूआईए समुदाय के लोग भी विषम लैंगिकों की तरह सम्मानजनक जीवन जी पाएं. एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि राज्य को आगे आना चाहिए और समलैंगिक शादियों को मान्यता देनी चाहिए. 


केंद्र ने राज्यों को पक्ष बनाने की मांग की


इस पीठ में जस्टिस एस के कौल, जस्टिस एस आर भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा भी शामिल हैं. रोहतगी ने विधवा पुनर्विवाह से जुड़े कानून का जिक्र किया और कहा कि समाज ने तब इसे स्वीकार नहीं किया था, लेकिन कानून ने तत्परता से काम किया और अंतत: इसे सामाजिक स्वीकृति मिली. वहीं केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक नई याचिका दाखिल कर आग्रह किया कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई में सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पक्ष बनाया जाए. 


फैसले का देश पर महत्वपूर्ण प्रभाव होगा


इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट किया था कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर फैसला करते समय वह शादियों से जुड़े पर्सनल लॉ पर विचार नहीं करेगा. कोर्ट ने कहा था कि एक पुरुष और एक महिला की धारणा, जैसा कि विशेष विवाह अधिनियम में संदर्भित है लिंग के आधार पर पूर्ण नहीं है. याचिकाओं पर सुनवाई और फैसले का देश पर महत्वपूर्ण प्रभाव होगा, क्योंकि आम लोग और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं. एलजीबीटीक्यूआईए का मतलब लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, क्वेश्चनिंग, इंटरसेक्स और एसेक्सुअल से है.


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