Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह पर केंद्र ने राज्यों से मांगी राय, 10 दिन में जवाब देने को कहा
Same Sex Marriage Hearing: केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है. इसमें सरकार की ओर से कहा गया है कि मसले पर सभी राज्यों की राय जानना जरूरी है.
Same Sex Marriage Hearing: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बीच केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से इस मुद्दे पर उनकी राय मांगी है. केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखा है. सभी राज्यों को समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर 10 दिनों के भीतर जवाब देने को कहा गया है.
केंद्र सरकार ने बुधवार (19 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट में एक नया शपथपत्र दायर किया. इसमें एक पक्ष के रूप में केंद्र शासित प्रदेशों और राज्यों के विचार जानने की मांग की गई. केंद्र ने शपथपत्र में कहा कि 'यह मामला विधायी दायरे में आता है, ऐसे में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विचार जानना आवश्यक है.'
बुधवार को भी सुनवाई जारी
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सुनवाई जारी रही. केंद्र ने कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध किया है. केंद्र ने इसे शहरी एलीट विचार बताते हुए कहा है कि इस पर कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है.
राज्यों को पार्टी बनाना चाहता है केंद्र
अब केंद्र सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मामले में पार्टी बनाना चाहता है और उनसे 10 दिनों के अंदर मामले पर अपने विचार रखने को कहा है. राज्यों को भेजे पत्र में कहा गया है कि "इस मामले पर किसी भी निर्णय के लिए मौजूदा सामाजिक रीति-रिवाजों, प्रथाओं, मूल्यों, मानदंडों, राज्य के नियमों और इस तरह के प्रभाव के आकलन की आवश्यकता होती है जो समाज के विभिन्न वर्गों में प्रचलित हो सकते हैं."
इसमें आगे कहा गया है कि "यह महत्वपूर्ण है कि सभी राज्य सरकारों के विचारों को प्रभावी निर्णय के लिए शामिल करते हुए न्यायालय के समक्ष एक समग्र और सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाए."
रोहतगी ने कहा- पत्र प्रासंगिक नहीं
याचिकाकर्ताओं की तरफ से वकील मुकुल रोहतगी ने केंद्र के राज्यों को लिखे पत्र पर कहा कि वह शीर्ष अदालत में एक केंद्रीय कानून को चुनौती देने आए हैं. राज्यों को केंद्र का पत्र उनके मामले में प्रासंगिक नहीं है. उन्होंने कहा कि नोटिस 5 महीने पहले भेजा गया था, जबकि राज्यों को यह पत्र कल भेजा गया है. यह कैसे प्रासंगिक हो सकता है?
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