Same Sex Marriage: 'शादी मतलब महिला-पुरुष के बीच संबंध', सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह पर क्या बोले राज्य, जानें
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने को लेकर एससी में सुनवाई जारी है. राज्यों का इस कानून को मान्यता दिए जाने या नहीं दिए जाने के विषय में क्या मत है, इसको लेकर पक्ष रखने को कहा गया है.
Same Sex Marriage Hearing In SC: भारत की सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने को लेकर बीते 10 दिनों से सुनवाई जारी है. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही है, और इस विषय में याचिकाकर्ताओं, सरकार और मुस्लिम वक्फ बोर्ड के पक्ष को सुन रही है. सरकार ने सुनवाई के दौरान कोर्ट में समलैंगिक विवाह के खिलाफ अपनी मजबूरियां गिनाते हुए विरोध किया और फिर इस गेंद को राज्यों के पाले में डाल दिया.
बीते महीने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था, चुंकि यह मामला सिर्फ संघ से ही नहीं जुड़ा हुआ है बल्कि इसका प्रभाव राज्यों और उनसे जुड़ी सरकारों पर भी पड़ेगा और उनकी व्यवस्था को भी सीधे प्रभावित करेगा, इसलिए हमारा अनुरोध है कि इस मामले पर हर राज्य की राय ली जानी चाहिए. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी इजाजत दे दी थी.
इसके बाद सभी केंद्र शासित प्रदेशों और राज्यों के संबंधित अधिकारियों को पत्र लिखकर इस कार्यवाही में भाग लेकर अपना पक्ष रखने को कहा गया था. सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (10 मई) को हुई कार्यवाही में कई राज्यों ने इस पर अपना मत रखा है, लेकिन कुछ राज्यों ने इसको लेकर अभी और समय मांगा है.
किन राज्यों ने रखा है पक्ष?
बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान सॉलिसटर जनरल तुषार मेहता ने असम, आंध्र प्रदेश और राजस्थान की तरफ से उनका पक्ष रखा. इन राज्यों ने सेम सेक्स मैरिज का विरोध किया है. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मणिपुर और सिक्किम ने अभी अपनी बात रखने के लिए और समय मांगा है.
समलैंगिक विवाह पर क्या बोला असम?
असम सरकार ने कहा, यह मामला एक सामाजिक परिघटना के रूप में विवाह जैसी संस्था के विभिन्न पहलुओं पर लंबी चर्चा की मांग करता है. यह कहा जा सकता है कि समाज के विभिन्न वर्गों में भी, विवाह की कानूनी समझ विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों के बीच एक समझौते यानी कॉन्ट्रैक्ट की रही है. विवाह, तलाक और सहायक विषय संविधान की समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 के अंतर्गत आते हैं और इसलिए यह राज्य विधानमंडल के अधिकार क्षेत्र में भी है कि यह संघ संसद के अधिकार क्षेत्र में है कि वह इस पर कोई फैसला ले.
असम सरकार ने आगे कहा, उसको इस मामले में एक पक्ष नहीं बनाया गया जबकि इसके प्रभाव राज्य को स्पष्ट रूप से प्रभावित करते हैं. असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दिए गए दस्तावेजों और दलीलों की प्रतियों का अनुरोध किया ताकि वह अदालत के समक्ष अपने आवश्यक विचारों को यथोचित रूप से आगे रख सके.
समलैंगिक विवाह पर क्या बोली आंध्र प्रदेश सरकार?
समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए, आंध्र प्रदेश सरकार ने कहा, हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार, प्रजनन को पुरुष और महिला के बीच संबंध के रूप में ही परिभाषित किया गया है, जहां एक लिंग के संपर्क से प्रजनन के लिए कोई जगह नहीं है. ऐसे में पारंपरिक वैवाहिक प्रथा केवल पुरुष और महिला के बीच ही होनी मानी गई है.
वहीं, समान लिंग के बीच विवाह को प्रोत्साहित करना पारंपरिक व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था के विपरीत है. विवाह का अर्थ है भविष्य की पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त करने हेतु संतानोत्पत्ति की व्यवस्था करना लेकिन समलैंगिक विवाह प्राकृतिक रूप से ऐसा करता नहीं प्रतीत होता है. उन्होंने कहा, समलैंगिक विवाह धर्म के अनुरूप नहीं है, और इसे मान्यता नहीं दी जा सकती है.
समलैंगिक विवाह पर क्या बोली राजस्थान सरकार?
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करते हुए राजस्थान सरकार ने कहा है कि राज्य में जनता की भावनाएं समलैंगिक विवाह के खिलाफ हैं. हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) की धारा 5 में विवाह की आवश्यक शर्तें बताई गई हैं. ये प्रावधान स्पष्ट करते हैं कि महिला-पुरुष के बीच कोई भी वैवाहिक समारोह तभी मान्य होगा जब पुरुष की आयु 21 वर्ष से कम न हो और महिला की आयु 18 वर्ष से कम नहीं हो.
इस एक्ट के मुताबिक, इस अधिनियम में विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह को वैध माना गया है और उनके लिए अलग होने की न्यूनतम आयु निर्धारित की गई है. हिंदु धर्म में विवाह एक संस्कार है जो सिर्फ महिला और पुरुष संबंधो को ही मान्यता देने की बात करता है. उन्होंने कहा, मुस्लिम धर्म में भी जो कॉन्ट्रैक्ट होता है, वह भी एक महिला और पुरुष के बीच ही मान्य है, इसलिए हम समलैंगिक विवाह का विरोध करते हैं.
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