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Same Sex Marriages: समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई: जानिए क्या है अलग-अलग धर्मों की दलील

Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह का कानूनी मान्यता देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. आइए जानते हैं इस मुद्दे पर धर्मों की क्या दलील है.

Same Sex Marriages: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ सेम सेक्स मैरिज को मंजूरी की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. केंद्र सरकार ने इन याचिकाओं का विरोध करते हुए एक अलग याचिका दायर की है. केंद्र ने समलैंगिंग विवाह को 'शहरी एलीट' विचार बताते हुए कहा है कि इस पर कानून बनाने का अधिकार संसद को है. केंद्र ने यह भी कहा है कि इस पर कोई कानून बनाने से पहले सक्षम विधायिका को धार्मिक संप्रदायों के विचारों को भी ध्यान में रखना होगा. आखिर इस विवादास्पद मुद्दे पर धार्मिक संगठनों की क्या राय है, आइए एक नजर डालते हैं.

विभिन्न धार्मिक संगठनों और एनजीओ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का विरोध करते हुए उनका पक्ष भी सुने जाने की मांग की है.

सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा 

श्री सनातम धर्म प्रतिनिधि सभा ने कहा कि समलैंगिक विवाह की अवधारणा "विनाशकारी" है और इसका भारतीय संस्कृति और समाज पर "हानिकारक प्रभाव" होगा. हिंदू संगठन ने इसके विरोध में वेदों का हवाला दिया है. सभा के मुताबिक, वेदों में कहा गया है कि जिनके पास पत्नियां हैं. उनके पास वास्तव में एक पारिवारिक जीवन हैं. जिनकी पत्नियां हैं, वे सुखी हो सकते हैं. जिनके पास पत्नियां हैं, वे पूर्ण जीवन जी सकते हैं. मनुस्मृति का भी उदाहरण दिया, जिसमें कहा गया कि महिलाओं को मां बनने के लिए और पुरुष को पिता बनने के लिए बनाया गया है.

जमीयत-उलेमा-ए-हिंद

मुसलमानों की संस्था जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने भी समलैंगिक विवाह का विरोध किया है. जमीयत ने कहा है कि दो विपरीत लिंग वालों में शादी होना, विवाह की मूल विशेषता है. इस्लाम में शुरुआत से ही समलैंगिकता को लेकर पाबंदी रही है. जमीयत ने एलजीबीटीक्यूआईए को पश्चिमी यौन मुक्ति आंदोलन से उपजा बताया है.

तेलंगाना मरकजी शिया उलेमा काउंसिल

इस्लाम के शिया मत में भी समलैंगिक विवाह को लेकर ऐसा ही विचार है. तेलंगाना मरकजी शिया उलेमा काउंसिल ने दावा किया कि समलैंगिक जोड़ों द्वारा पाले गए बच्चों में आगे चलते डिप्रेशन, कम पढ़ाई लिखाई और नशा फूंकने की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है. इसने आगे कहा है कि पश्चिम में धर्म काफी हद तक कानून का स्रोत नहीं रह गया है और यह निजी जीवन इसकी बहुत भूमिका नहीं रह गई है. दूसरी ओर, भारत में धर्म पारिवारिक और सामाजिक संबंधों के साथ ही व्यक्तिगत कानून को आधार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

अखिल भारतीय संत समिति

हिंदू संगठन अखिल भारतीय संत समिति ने कहा है कि पति और पत्नी को साथ रखना ये प्रकृति का कानून है. हिंदू विवाह के दौरान कन्यादान और सप्तपदी मुख्य संस्कार हैं. संगठन ने समलैंगिक विवाह को पूरी तरह अप्राकृतिक बताया है.

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