देश में सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. इस सुनवाई के दौरान बार काउंसिल भी समलैंगिक विवाह के विचार के विरोध में हैं. इस याचिकाओं की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ कर रही है. 


इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं.


18 अप्रैल से चल रहे इस मामले की सुनवाई हर रोज लाइव स्ट्रीमिंग से की जा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के पहले दिन ही ये साफ कह दिया था कि वह इस मामले को पर्सनल लॉ के क्षेत्र में जाए बिना देखेंगे कि क्या साल 1954 के विशेष विवाह कानून के जरिए समलैंगिकों को शादी के अधिकार दिए जा सकते हैं.


ऐसे में जानते हैं कि पिछले 6 दिनों से चल जारी सुनवाई में अब तक क्या कुछ हुआ और सुप्रीम कोर्ट में हुई बहस में अब तक किसने क्या कहा. 


क्या है मामला, किसने दायर की याचिका 


समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से साल 2018 में हटा दिया गया था. आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज करने के बाद अब समलैंगिक संबंध अपराध नहीं हैं. लेकिन हमारे देश में आज भी समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं है. ऐसे में इन याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट सहित शादी से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिकों को विवाह की अनुमति देने की मांग की गई है.


दरअसल समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाए जाने के बाद विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग उठने लगी और देश के अलग-अलग कोर्ट में लगभग 20 याचिकाएं दायर की गई. इन याचिकाओं में प्रमुख थे हैदराबाद में रहने वाले गे कपल सुप्रिया चक्रवर्ती और अभय डांग. सुप्रिया और अभय पिछले 10 सालों से अपनी शादी को कानूनी मान्यता दिलाना के लिए संघर्ष कर रहे हैं. 


इस लिव-इन जोड़े ने साल 2022 में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया. उन्होंने कहा LGBTQIA+ नागरिकों को भी अपने पसंद के व्यक्ति के साथ शादी करने का अधिकार मिलना चाहिए. जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा.


इसके बाद कोर्ट कई राज्यों के अदालतों में समलैंगिक विवाह से जुड़ी याचिकाओं को इकट्ठा किया और अपने पास ट्रांसफर करवा लिया. कोर्ट ने केंद्र से सभी याचिकाओं पर अपना संयुक्त जवाब दाखिल करने को कहा और 13 मार्च तक सभी याचिकाओं को लिस्टेड करने का निर्देश दिया. 


सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने समलैंगिक विवाह को 'मौलिक मुद्दा' बताते हुए इसे पांच जजों की संविधान पीठ को भेजने की सिफारिश की. इसके बाद मुख्य न्यायाधीश डॉ डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में पांच जजों की संविधान पीठ बनाई गई जो इस मामले की सुनवाई कर रही है.


सुनवाई के दौरान जहां याचिकाकर्ताओं का पक्ष वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी, अभिषेक मनु सिंघवी, मेनका गुरुस्वामी, वकील अरुंधति काटजू पेश कर रहे हैं. तो वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे हैं.आइये जानते हैं सुनवाई के दौरान अब तक क्या-क्या हुआ, और किसने क्या क्या कहा. 


18 अप्रैल 2023, सुनवाई का पहला दिन 


पहले दिन की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि वो पर्सनल लॉ के क्षेत्र में जाए बिना देखेंगे कि क्या साल 1954 के विशेष विवाह क़ानून के ज़रिए समलैंगिकों को अधिकार दिए जा सकते हैं.


वहीं केंद्र सरकार की तरफ के कहा गया कि ये याचिकाएं एक एलीट क्लास के लोगों के विचारों को दर्शाती है. केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि कानूनी तौर पर देखा जाए तो शादी एक बायोलॉजिकल पुरुष और बायोलॉजिकल महिला के बीच का रिश्ता होता है.


इसके जवाब में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि महिला और पुरुष में भेद करने की कोई पुख्ता अवधारणा नहीं है.


याचिकाकर्ताओं का पक्ष रख रहे वकील मुकुल रोहतगी ने सुनवाई के दौरान कहा कि समलैंगिकों के लिए समान अधिकार मिलने के रास्ते में सबसे बड़ा अड़चन आईपीसी की धारा 377 थी. जिसे पांच साल पहले निरस्त कर दिया गया है. अब जब हमारे अधिकार एक साथ हैं तो हम आर्टिकल 14, 15, 19 और 21 के तहत अपने सभी अधिकारों का इस्तेमाल करना चाहते हैं.


19 अप्रैल, सुनवाई का दूसरा दिन


केंद्र सरकार ने सुनवाई के दूसरे दिन अपील की कि सेम सेक्स मैरिज के मामले में सारे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पार्टी बनानी चाहिए. लाइव लॉ हिंदी के अनुसार याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी कहते हैं कि विवाह की जरूरत एडॉप्शन, सरोगेसी, अंतरराज्यीय उत्तराधिकार, कर छूट, कर कटौती, अनुकंपा और सरकारी नियुक्तियां जैसे कई लाभों को उठाने के लिए होती है.


सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार इसे शहरी एलीट क्लास का विचार नहीं कह सकती. वो भी तब उनके पास ऐसा दावा करने का कोई डेटा उपलब्ध नहीं है. फिलहाल सरकार के किसी तरह का कोई डेटा नहीं है, जिससे यह सिद्ध हो सके कि समलैंगिक विवाह एक शहर, एलीट कॉन्सेप्ट है. 


चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपनी एक टिप्पणी में कहा, "ये सोच शहरी जरूर लग सकती है क्योंकि शहरी इलाकों में अब समलैंगिक लोग खुलकर सामने आने लगे हैं."


चीफ जस्टिस ने कहा कि हमारे समाज में समलैंगिकों को पिछले कुछ सालों में ज्यादा स्वीकृति मिली है. हमारे समाज ने पिछले पांच सालों में समलैंगिक संबंधों को स्वीकार कर लिया है. चीजें काफी बदली है. 


20 अप्रैल, सुनवाई का तीसरा दिन 


सुनवाई के तीसरे दिन अदालत में बच्चे को गोद लेने पर बहस हुई. इस दौरान मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिक संबंध सिर्फ शारीरिक संबंध ही नहीं हैं. इसके अलावा ये एक स्थिर, भावनात्मक संबंध से कुछ ज्यादा है.


सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बाद अब लोग सोचने लगे हैं कि समलैंगिक लोगों के बीच विवाह जैसे संबंध भी हो सकते हैं.


याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वरिष्ठ ने कहा कि एलजीबीटीक्यू समुदाय के माता-पिता गोद लिए बच्चों को पालने में उतने ही योग्य हैं जितने विषमलैंगिक माता-पिता. हालांकि इस दलील से पीठ इस सहमत नहीं थे. सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि अब लोग बेटा ही होना चाहिए की धारणा से दूर हो रहे हैं. यह शिक्षा के प्रसार और प्रभाव के कारण है.


शादी की उम्र को लेकर हुई बहस 


सुनवाई के तीसरे दिन समलैंगिक शादी के लिए न्यूनतम उम्र की सीमा को लेकर बहस हुई. याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील रोहतगी ने कहा कि उम्र की सीमा को लेकर स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 4 के उपबंध सी में बदलाव किया जाए. इस धारा में पुरुष की शादी की उम्र 21 साल और महिला की शादी की उम्र 18 साल तय की गई है. 


इस दलील पर जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने कहा कि एक तरफ आपका कहना है कि शादी के लिए पुरुष और महिला शब्द को हटाकर 'व्यक्ति' कर दिया जाए. ऐसे में अगर महिला-महिला और पुरुष-पुरुष विवाह करते हैं तो इसकी अलग-अलग उम्र तय करने से मामला और पेचीदा हो जाएगा क्योंकि वो तो पुरुष महिला से परे है. 


उन्होंने आगे कहा एक ओर आप चाहते हैं जेंडर न्यूट्रल हो जाए. वहीं दूसरी तरफ महिला और पुरुष में भेद भी बनाए रखना चाहते हैं. आखिर आप चाहते क्या है? क्या आप सिर्फ उन बातों को महत्व दे रहे हैं, जो आपको सूट करते हैं.


सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करने वाले पांचों जज हैं कौन?


मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़: पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस उदय उमेश ललित के रिटायर होने के बाद चंद्रचूड़ साल 2022 में सीजेआई बने थे. वे 10 नवंबर, 2024 को रिटायर होने तक इस पद पर बने रहेंगे.


मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने संवैधानिक और प्रशासनिक कानून से जुड़े कई अहम मुकदमों पर फैसला लिया है. इसके अलावा उन्होंने एड्स पीड़ित कार्यकर्ताओं, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों और श्रम एवं औद्योगिक कानूनों के मामलों की भी वकालत की है.


डीवाई चंद्रचूड़ का 50वां मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ लेना इतिहास रचा गया था. क्योंकि ये पहला मौका था जब पिता के बाद बेटा मुख्य न्यायाधीश बना था.



जस्टिस संजय किशन कौल: जस्टिस संजय किशन कौल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से साल 1979 में अर्थशास्त्र में ऑनर्स की पढ़ाई की थी. वे साल 1987 में सुप्रीम कोर्ट में ऑन रिकॉर्ड बन गए वकील बने और दिसंबर 1999 में उन्हें सीनियर एडवोकेट का दर्जा मिल गया था. मई 2001 को उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किया गया और साल 2003 को उन्हें स्थायी जज बनाया गया. साल 2003 में ही जस्टिस कौल को दिल्ली हाई कोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की ज़िम्मेदारी भी दी गई थी. उन्होंने बतौर वकील मुख्यत: कारोबारी, सिविल मामले और कंपनी अधिकार के मामलों की पैरवी की है.


जस्टिस एस रवींद्र भट्ट: उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट के जज के तौर कुछ ऐतिहासिक फ़ैसले दिए, जो बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), ड्रग रेग्यूलेशन और सूचना के अधिकार से जुड़े हुए थे. जज के तौर पर उनकी छवि एक ऐसे न्यायाधीश की रही है जो अभिव्यक्ति और बोलने की आज़ादी के समर्थक रहे हैं.


जस्टिस पीएस नरसिम्हा: सर्वोच्च न्यायालय में जज का पद संभालने से पहले जस्टिस नरसिम्हा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील रहे थे. साल 2014 में उन्हें भारत का एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया. 


जस्टिस हिमा कोहली: इन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास में मास्टर्स की पढ़ाई की थी. इसके बाद हिमा कोहली ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही कानून की पढ़ाई की. साल 1984 में उन्होंने दिल्ली की बार काउंसिल में बतौर वकील अपना नाम दर्ज कराया था. साल 2021 में जस्टिस कोहली को तेलंगाना हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था. वो तेलंगाना हाई कोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस बनी थीं. वह 1 सितंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होंगी.