Petitioner On Same-Sex Marriage: समलैंगिक विवाह यानी सेम सेक्स मैरिज को लेकर केंद्र सरकार ने अदालत में अपना जवाब दाखिल कर कहा कि ये "याचिकाएं जो केवल ‘‘शहरी संभ्रांतवादी’’ (Urban Elitist) विचारों को दिखाती हैं, उनकी तुलना विधायिका से नहीं की जा सकती है.
केंद्र ने कहा कानूनी तौर पर विवाह केवल एक आदमी और एक औरत के बीच ही हो सकता है. केंद्र ने कहा कि इस तरह के विवाह को मौजूदा विवाह के विचार के बराबर मान्यता देने से हर एक नागरिक पर गंभीर असर पड़ेगा. अदालत को इस तरह के सर्वव्यापी आदेश (Omnibus Orders) देने से बचना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ 18 अप्रैल को सेम सेक्स मैरिज पर सुनवाई करेगी.
इस बीच इस ऐतिहासिक मामले में याचिकाकर्ता अनन्या कोटिया और उत्कर्ष सक्सेना ने एबीपी लाइव के साथ बात की. इसमें हकों, सामाजिक विचार और भारत और एलजीबीटीक्यू + समुदाय पर इस केस का असर शामिल हैं. इस जोड़े ने अपने 15 साल से अधिक लंबे रिश्ते पर अपना नजरिया भी साझा किया. आज की कड़ी में इसी समलैंगिक जोड़े की प्रेम कहानी पर नजर डालेंगे.
'इसे समाज के समर्थन की जरूरत नहीं'
इस केस में लगातार दिए जाने वाले तर्कों में सामाजिक मूल्यों की दुहाई अहम रही है. सरकार और अन्य विरोधी आवाजों ने समलैंगिक विवाह को वैध या कानूनी न बनाने के लिए भारतीय समाज के रूढ़िवादी मानदंडों का हवाला दिया है. उत्कर्ष सक्सेना इस मामले के वकीलों में से एक हैं.
उनका कहना है, “ यह संविधान में मौलिक अधिकारों का सवाल है, आपको कुछ पारित करने के लिए सामाजिक बहुमत के समर्थन की जरूरत नहीं है. डिक्रिमिनलाइजेशन (वैधता) के समय भी, यदि आपने देश को बड़े पैमाने पर मतदान किया है, तो यह जरूरी नहीं है कि हर कोई बोर्ड पर था. लेकिन यह पैमाना नहीं है, यह लोगों के मौलिक अधिकारों को कायम रखने का पैमाना नहीं है.” दरअसल डिक्रिमिनलाइजेशन (Decriminalization) से मतलब किसी चीज़ को अवैध या आपराधिक अपराध मानने से रोकने की प्रक्रिया से है.
उत्कर्ष ने कहा, "महिलाओं के अधिकारों जैसे बहुत सारे बदलावों को शायद वह लोकप्रिय समर्थन न मिले, और यही वजह है कि कानून और समाज हमेशा एक तरह का कैच-अप गेम खेल रहे हैं. कभी कानून समाज से आगे होता है तो कभी समाज कानून से आगे होता है और कानून पीछे चलता है."
अनोखी और खास है ये प्रेम कहानी
उत्कर्ष सक्सेना और अनन्या कोटिया के इश्क की दास्तां बॉलीवुड फिल्म सरीखी है बस फर्क इतना है कि प्रेम में पड़े ये दोनों ही लड़के हैं. सुप्रीम कोर्ट के वकील उत्कर्ष सक्सेना ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रहे हैं. उनके साथी अनन्या कोटिया भी LSE के लिए पीएचडी स्कॉलर हैं. दोनों की प्रेम कहानी कॉलेज के दिनों में परवान चढ़ी थी. ये वो दौर था जब भारत में जब भारत में समलैंगिकता (Homosexuality) अभी भी एक अपराध था.
अनन्या अपने को वेरी टिपिकल लव स्टोरी कहते हैं. वह बताते हैं, “ हम हंसराज कॉलेज, डीयू में मिले. यह मेरा पहला साल था, उत्कर्ष अपने तीसरे साल में था और हम डिबेटिंग सोसायटी मिले. और मुझे लगता है कि किसी भी दूसरे कॉलेज रोमांस की तरह हमें भी प्यार हो गया और हम तब से साथ हैं."
लेकिन साथ ही, यह सामान्य नहीं था क्योंकि वे इसे बहुत लंबे समय तक किसी के साथ अपना रिश्ता शेयर करने के काबिल नहीं थे. अनन्या ने कहा, "मुझे लगता है कि पहली बार हमने हम दोनों के बारे में बाहर किसी को बताया था, वह 2014 या 2013 में था."
उत्कर्ष बताते हैं, "हम हमेशा वास्तव में अच्छे दोस्त थे, सबसे अच्छे दोस्त जो सिर्फ एक दूसरे के साथ थे या नहीं, और इस तरह हमेशा लोगों ने हमें देखा और माना. हमें यकीन नहीं था कि डिक्रिमिनलाइज़ेशन कब होगा, या कभी शादी के हक का दावा करने का मौका होगा या नहीं. यह काफी मुश्किल था, काफी अकेला था. ” वो आगे कहते हैं कि उस दौर में वे एक-दूसरे के साथ थे, जिससे यह बहुत आसान हो गया.
उन्होंने आगे कहा, “मुझे नहीं पता कि जो लोग सिंगल हैं वे ऐसे कैसे रह लेते हैं. क्या यह इतना अधिक मुश्किल होना चाहिए. क्वीर होना किसी भी तरह से मुश्किल है.”
उत्कर्ष मुकदमेबाजी का हिस्सा रहे
युवा उत्कर्ष वकील तौर पर इस मुकदमेबाजी का हिस्सा रहे. इस केस में पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ निर्णय: LGBTQ+ अधिकारों के लिए एक आधार बना. इस प्रेमी जोड़े का कहना है कि 2018 के ऐतिहासिक फैसले के बाद चीजें बदलने लगीं. मामले के लिए एक बड़ी मदद 2017 में जस्टिस केएस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ के फैसले में आई. इस मामले में नौ जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में निजता के अधिकार की फिर से पुष्टि की.
ये भी पढ़ें: Same Sex Marriage: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में सेम सेक्स मैरिज के खिलाफ इस्लाम का हवाला देकर क्या कहा, जानें