Same Sex Marriage: 'हम सिर्फ शादी का अधिकार चाहते हैं', जानें और क्या बोले समलैंगिक विवाह के याचिकाकर्ता
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को स्वीकृति दिए जाने को लेकर याचिका कर्ताओं ने कहा, हम सिर्फ देश में समलैंगिक शादी करने का अधिकार चाहते हैं.
Same Sex Marriage: देश की सर्वोच्च अदालत इन दिनों समलैंगिक विवाह के मामले पर सुनवाई कर रही है. केंद्र सरकार ने जहां इस सुनवाई का सामाजिक आधार और प्रशासनिक पहलुओं के आधार पर इसका विरोध किया तो वहीं याचिकाकर्ताओं ने इस विवाह को कानून बनाए जाने के लिए स्वीकृति देने की मांग की.
एक टीवी इंटरव्यू में बातचीत के दौरान कई याचिकाकर्ताओं में से एक ने कहा, मुझे लगता है कि हम जो मांग रहे हैं वह सिर्फ शादी करने का अधिकार है. यदि कुछ लोगों के लिए विवाह महत्वपूर्ण नहीं है, तो हमारे लिए भी यह पूरी तरह से ठीक है. लेकिन, हमारे लिए शादी भावनात्मक स्तर पर और व्यावहारिक स्तर पर मायने रखती है, इसलिए हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि हमें शादी करने का अधिकार दिया जाए.
'अपनी शक्तियों का करें इस्तेमाल'
समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं ने बुधवार (19 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह अपनी पूर्ण शक्ति, ‘प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार’ का इस्तेमाल कर समाज को ऐसे बंधन को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करे, ताकि एलजीबीटीक्यूआईए समुदाय के लोग भी विषम लैंगिकों की तरह ‘सम्मानजनक’ जीवन जी पाएं.
एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा, राज्य को आगे आना चाहिए और समलैंगिक शादियों को मान्यता देनी चाहिए. आपको बता दें कि इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संवैधानिक पीठ कर रही है. रोहतगी ने विधवा पुनर्विवाह से जुड़े कानून का जिक्र करते हुए कहा, समाज ने तब इसे स्वीकार नहीं किया था, लेकिन कानून ने अपना काम किया और अंत में इसे सामाजिक स्वीकृति मिली.
'हमें हमारा हक मिले'
याचिकाकर्ताओं की तरफ से मौजूद वकील मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा, यहां, इस अदालत को समाज को समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है. इस अदालत के पास, संविधान के अनुच्छेद-142 (जो उच्चतम न्यायालय को पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक किसी भी आदेश को पारित करने की पूर्ण शक्ति प्रदान करता है) के तहत प्रदत्त अधिकारों के अलावा, नैतिक अधिकार भी है और इसे जनता का भरोसा भी हासिल है. हम यह सुनिश्चित करने के लिए इस अदालत की प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार पर निर्भर हैं कि हमें हमारा हक मिले.
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