Same- Sex Marriage: एक तरफ जहां समलैंगिक विवाह के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं तो वहीं याचिकाकर्ताओं ने इस विवाह को कानून बनाए जाने के लिए स्वीकृति देने की मांग की है. इसी क्रम में अब इंटरनेशनल सूफी कारवां के प्रमुख और मुंबई के इस्लामिक विद्वान मुफ्ती मंजूर जियाई ने भी एक याचिका डाली है और अनुरोध किया है कि समलैंगिक विवाह को लेकर निर्णय पारित न किया जाए.


भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को संबोधित अपनी याचिका में जियाई ने तर्क दिया है कि इस्लाम में समलैंगिक विवाह वर्जित है और ये हमारे देश की संस्कृति के भी खिलाफ है. जियाई ने याचिका दायर करते हुए कई तरह के तर्क भी दिए हैं. इसमें उन्होंने इस्लाम और हिंदू दोनों ग्रंथों का भी जिक्र किया है.


क्या तर्क दिए जियाई ने?


अपने तर्कों का समर्थन करने के लिए जियाई की याचिका इस्लाम और हिंदू दोनों धर्म के ग्रंथों को उद्धृत करती है और तर्क देती है कि कैसे विभिन्न धर्मों में समान लिंग और समलैंगिक विवाह को मंजूरी नहीं दी जाती है. याचिका में कहा गया, “हिंदुओं के बीच ये संस्कार है कि एक पुरुष और महिला के बीच पारस्परिक कर्तव्यों के प्रदर्शन के लिए एक पवित्र मिलन है. मुसलमान में ये एक कॉन्ट्रैक्ट है, लेकिन फिर भी हमने इसमें केवल एक महिला और पुरुष के बीच परिकल्पना की है.”


जियाई ने कुरान के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा, “पवित्र कुरान में पैगम्बर लूत के उदाहरण का उल्लेख किया गया है. आयत (कुरान की आयतें) समलैंगिक यौन संबंध बनाने वाली सभ्यताओं पर प्रतिबंध लगाती हैं, लेकिन अगर इसके बाद भी ये चलन में रहता है तो ये सृष्टिकर्ता के क्रोध को बुलावा देता है.’


इस याचिका गे सेक्स और समलैंगिक सेक्स को गंभीर बीमारी और गंभीर आपदा करार दिया गया है. जियाई की याचिका में कहा गया, “मेडिकल की अलग-अलग पत्रिकाओं और शोध से पता चला है कि समलैंगिकों का यौन संबंध बायसेक्सुअल और एक पुरुष का दूसरे पुरुष के साथ यौन संबंध यौन संचारित रोगों (एसटीडी) के प्रति अधिक संवेदनशील हैं. जिसमें एचआईवी, गोनोरिया, क्लैमाइडिया, सिफलिस, हर्पीज जैसे रोग शामिल हैं.”


विवाह के बारे में विस्तार से बताया


विवाह के परिणामों के बारे में विस्तार से बताते हुए, याचिकाकर्ता का कहना है, “विवाह को किसी व्यक्ति की निजता के क्षेत्र में केवल एक अवधारणा के रूप में नहीं देखा जा सकता है, जब ऐसे मानवीय संबंधों की औपचारिक मान्यता से कपल के साथ साथ उनके बच्चों पर भी कई वैधानिक और अन्य परिणाम होते हैं.” याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से अनुरोध किया है कि फैसला सुनाते वक्त गे सेक्स या समलैंगिक विवाह के खिलाफ उनकी भावनाओं पर भी विचार किया जाए. 


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