समलैंगिक शादी पर SC में सुनवाई का विरोध करते हुए जमीयत ने कहा, '...यह बहुत ही खतरनाक सुझाव है'
Same Sex Marriage Case: कपिल सिब्बल ने पीठ से कहा कि जिन कानूनों से सामाजिक मूल्यों में 'बड़ा बदलाव' होने की संभावना हो, उन पर सार्वजनिक संवाद की जरूरत होती है.
Same Sex Marriage Supreme Court: इस्लामिक विद्वानों के संगठन 'जमीयत उलमा-ए-हिंद' ने मंगलवार (9 मई) को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि याचिकाकर्ताओं की यह दलील कि समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने के मामले में संसद कुछ नहीं करेगी, इसलिए शीर्ष कोर्ट को इसे मान्यता देनी चाहिए, यह बहुत ही खतरनाक सुझाव है.
जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से पेश सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ को बताया कि संसद की ओर से कोई कानून न बनाए जाने के विमर्श के आधार पर समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की घोषणा गलत कदम होगा.
तब मैं बहुत चिंतित था- सिब्बल
उन्होंने पीठ से कहा कि जिन कानूनों से सामाजिक मूल्यों में 'बड़ा बदलाव' होने की संभावना हो, उन पर सार्वजनिक संवाद की आवश्यकता होती है, जिसमें संसद के भीतर और बाहर चर्चा भी शामिल है. सिब्बल ने कहा कि सुनवाई की शुरुआत में जब याचिकाकर्ताओं की ओर से यह कहा गया कि संसद इस बारे में कुछ नहीं करने जा रही है, इसलिए शीर्ष कोर्ट को घोषणा करनी चाहिए, तब वह बहुत चिंतित थे.
यह एक बहुत ही खतरनाक रास्ता
सिब्बल ने कहा, "शुरू में कहा गया था कि हम (याचिकाकर्ता) इस मामले में संसद के आगे कदम बढ़ने और उससे कानून पारित करने की उम्मीद नहीं करते हैं, इसलिए आपको (सुप्रीम कोर्ट को) यह करना चाहिए. मैं कहता हूं कि यह एक बहुत ही खतरनाक रास्ता है."
तो बहस की कोई गुंजाइश नहीं बचेगी
उन्होंने कहा, "यह एक खतरनाक रास्ता है, क्योंकि आपकी एक घोषणा संसद में बहस पर विराम लगा देगी. एक बार जब आप घोषणा कर देंगे कि समलैंगिक विवाह एक मौलिक अधिकार है और इसे मान्यता दी जानी है, तो बहस की कोई गुंजाइश नहीं बचेगी."
संविधान पीठ कर रही सुनवाई
संविधान पीठ समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस. आर. भट, जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल हैं.
पीठ ने कहा कि संसद (कोर्ट की) घोषणा को पलट सकती है. हालांकि, सिब्बल ने पीठ की इस टिप्पणी से असहमति जताई. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि कोर्ट ने पहले भी कुछ घोषणाएं की हैं. उन्होंने इसके समर्थन में स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार को लेकर की गई घोषणा का हवाला दिया और कहा कि इस पर अमल करना संसद का काम है. इस मामले में दलीलें अधूरी रहीं और बुधवार को भी जारी रहेंगी.
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