Same-Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादी पर समीक्षा याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई से किया इनकार
Same-Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादियों पर फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई से इनकार कर दिया है.
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Supreme Court On Same Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादियों पर फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई से इनकार कर दिया है. सेम सेक्स मैरिज को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता ने सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच के सामने मंगलवार को याचिका का उल्लेख किया और ओपन कोर्ट में इसकी सुनवाई का भी अनुरोध किया. हालांकि, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसा नहीं किया जा सकता.
ओपन कोर्ट में सुनवाई को लेकर सीजेआई ने वरिष्ठ अधिवक्ता एनके कॉल से पूछा की खुली अदालत में समीक्षा कैसे की जा सकती है. आप जानते हैं कि यह चेंबर में होता है. पीठ का कहना है की पुनर्विचार याचिका पर चेंबर में फैसला किया जाता है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका के गुण-दोष पर संविधान पीठ विचार करेगी. सीजेआई ने कहा कि पुनर्विचार याचिकाओं पर ओपन कोर्ट में सुनवाई की जाए या नहीं यह भी जजों द्वारा चेंबर में डिसाइड किया जाता है. समीक्षा याचिका पर सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच सुनवाई करेगी, जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना, हीमा कोहली, बीवी नगरत्ना और पीएस नरसिम्हा शामिल है.
दो जज साल 2023 में हुए रिटायर
गौर करने वाली बात यह है कि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की पांच जजों की बेंच के दो जज जस्टिस रविंद्र भट्ट और एसके कॉल जिन्होंने सेम सेक्स मैरिज पर फैसला सुनाया था, वह 2023 में रिटायर हो गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल अक्टूबर में सेम सेक्स मैरिज को लेकर फैसला सुनाया था. इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक वकील उदित सूद ने अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए समीक्षा दायर की थी.
सेम सेक्स मैरेज को मान्यता देने से किया था इनकार
अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से माना था कि शादी करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है और कोर्ट LGBTQAI+ व्यक्तियों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करने के अधिकार को मान्यता नहीं दे सकती. सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की इस बेंच ने अधिनियम 1954 की वैधता को बरकरार रखा और शीर्ष अदालत ने सेम सेक्स मैरेज करने या नागरिक संघ बनाने के अधिकार को मान्यता देने से भी मना कर दिया था.
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