हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनईपी ने एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में ये बताया गया है कि पानी के बाद लोगों के इस्तेमाल में आने वाला दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक संसाधन 'बालू' और 'कंकड़' हैं. नई रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया कि बालू या रेत पर हमारी निर्भरता को देखते हुए रेत को एक रणनीतिक संसाधन के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए .


यूएनईपी की ग्रिड-जिनेवा टीम ने सैंड एंड सस्टेनेबिलिटी संकट को रोकने के लिए 10 रणनीतिक सिफारिशों की पेशकश की. इस बात पर चिंता जताई गई कि रेत की निकासी किस तरह सही तरीके से होनी चाहिए. इस रिपोर्ट में बताया गया कि दुनिया भर में हर साल 50 बिलियन टन (5 अरब टन) बालू और कंकड़ का इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन के काम में होता है. 


कुछ दशक पहले तक बालू का खनन घाटों के आसपास रहने वाले गरीब परिवारों का काम था. लेकिन धीरे-धीरे बालू की मांग बढ़ती गई और मांग बढ़ने के साथ ही बालू की भी कीमत तय होने लगी. 


बिहार में बालू का खनन धड़ल्ले से होता आया है. जानकारों का दावा है कि बिहार में बालू में सरकार को भी 'बड़ा मुनाफा' दिखने लगा और उसने खनन के पट्टे, लाइसेंस और नीलामी के माध्यम से इसे कमाई का जरिया बना लिया गया. 


हालांकि साल 2017 से बिहार में 1 जुलाई से 30 सितंबर के बीच बालू खनन पर रोक लगी हुई है. लेकिन बीते साल 2022 में इसे 1 जून से बैन कर दिया गया था. इसकी वजह बालू जैसी निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री की गंभीर कमी का होना था. बैन के बाद रेत की कीमतें बढ़ गईं, जिससे अवैध खनन में उछाल आया.


बिहार में बालू का अवैध खनन रोक पाना कितना मुश्किल


अवैध निष्कर्षण अभियान के एक युवा पर्यवेक्षक ने इंग्लिश वेबसाइट स्क्रॉल को बताया कि रेत खनन को कागज पर प्रतिबंधित किया जा सकता है लेकिन वास्तविकता पूरी तरह से अलग है. सोन का किनारा बालू के अवैध खनन का केन्द्र माना जाता है लेकिन बिहार में ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां पर बड़ी मात्रा में बालू निकाला जाता है. उन्होंने कहा, 'बाहरी लोगों को दिन और रात के समय में सोन के इलाके में प्रवेश करने की इजाजत नहीं है.  सोन नदी से सैकड़ों नौकाओं को रेत से भर दिया जाता है और पटना, सारण और वैशाली जिलों में भेज दिया जाता है.


बिहार के सोन का बालू यानी 'सोना'


संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के मुताबिक चीन और भारत रेत के खनन का सबसे बड़ा हब हैं. इन दोनों ही देशों में रेत बहुत बड़े पैमाने पर निकाला जाता है. सोन की पीली रेत, जिसे स्थानीय रूप से "गोल्डन" कहा जाता है, को सबसे अच्छी गुणवत्ता माना जाता है, इसकी मांग सबसे ज्यादा है. इसका खनन बड़े पैमाने पर किया जाता है.


बिहार में बालू खनन के पैमाने के बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा स्क्रॉल को बताया कि राज्य में कितनी रेत निकाली जा रही है इसका हमारे पास कोई सटीक डाटा मौजूद नहीं है. पुलिस और भूविज्ञान विभाग के अधिकारी बार-बार ये दावा करते हैं कि इस तरह के अभियानों पर कार्रवाई की है लेकिन ये सच्चाई है कि बालू के कारोबार का एक बड़ा हिस्सा अवैध है. 


रेत माफिया और बिहार में बालू का खनन यानी सबसे फायदे का बिजनेस


बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एस चंद्रशेखर ने स्क्रॉल को बताया कि राज्य में शक्तिशाली लोगों का "गठजोड़" बड़े पैमाने पर अवैध रेत खनन को बढ़ावा देता है. बालू का खनन कम निवेश में बहुत सारा धन कमाने का एक जरिया है. वहीं दूसरी तरफ इससे राज्य के खजाने  का बड़े पैमाने पर नुकसान हो रहा है और संसाधन का दोहन हो रहा है. चंद्रशेखर ने इस बात पर चिंता जताई कि अवैध रेत खनन को रोकना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि पैसा सब कुछ चलाता है. रेत माफिया के पास पैसा और बाहुबल दोनों है.


बीते दिनों बिहार से ऐसी कई खबरें आईं जो इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि बिहार में बालू की तस्करी में बाहुबलियों का बोलबाला है. 



बीते सोमवार को बिहार की राजधानी पटना के बिहटा इलाके में कुछ लोगों ने पुलिस और खनन विभाग की महिला अधिकारी पर हमला कर दिया. मीडिया रिपोर्ट की मानें तो महिला अधिकारी पर हमला करने वाले लोग बालू के अवैध खनन से जुड़े हुए थे.




खनन विभाग की टीम बालू के अवैध कारोबार की जांच करने के लिए पहुंची थी. इस छापेमारी में पुलिस के करीब 25 जवान सरकारी टीम की मदद के लिए मौजूद थे. खनन और परिवहन विभाग की पूरी टीम मिलाने पर करीब 50 लोगों की टीम थी.




इतनी बड़ी टीम की मौजूदगी में भी खनन कारोबार से जुड़े लोगों ने सरकारी अधिकारियों के साथ मारपीट की और खनन विभाग की एक महिला इंस्पेक्टर को जमीन पर घसीटकर पीटा भी. घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था.


ऐसी ही एक और घटना पटना में बिहटा दियारा इलाके की है. देर रात बालू खनन को लेकर दो माफियाओं में खूनी भिड़त हुई और कई राउंड फायरिंग की गई. खूनी भिड़त में पांच से ज्यादा लोग मारे गए. बालू माफिया लाश को अपने साथ ही ले गए थे. पुलिस को एक भी लाश नहीं मिल पाई. घटनास्थल से पुलिस ने 50 से ज्यादा खोखे बरामद किए थे. 


बीते साल तीन महीनों के भीतर बिहार के भोजपुर में 1,123 वाहन और 600,000 क्यूबिक फीट से ज्यादा रेत जब्त की गई थी. इस पूरे मामले में 58 लोगों को गिरफ्तार किया गया. पुलिस में 133 शिकायतें भी दर्ज की गई, लेकिन पुलिस पर भी मिलीभगत के आरोप सामने आए. 



भोजपुर जिले के जिला खनन अधिकारी आनंद प्रकाश ने मीडिया को बताया कि पहलेजा घाट पर रेत के अवैध कारोबार में कुछ ठेकेदारों का आरोप है कि सोनपुर पुलिस स्टेशन को 150 से ज्यादा लोडेड ट्रकों को गुजरने देने के लिए प्रति दिन 8-9 लाख रुपये का भुगतान किया गया था. 


पिछले साल बिहार के तत्कालीन खान और भूविज्ञान मंत्री जनक राम ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि अवैध रेत खनन की वजह से राज्य सरकार को लगभग 70 मिलियन रुपये का वार्षिक नुकसान होता है. लेकिन रेत माफिया के करीबी सूत्रों का अनुमान है कि अवैध रेत खनन सालाना 20-300 मिलियन रुपये से ज्यादा का है. 


रेत खनन से अपने राजस्व में बढ़ोत्तरी करना चाहती है बिहार सरकार?


बिहार सरकार ने 2016 में शराबबंदी लागू की थी. स्क्रॉल की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार सरकार रेत के खनन से अपने राजस्व में बढ़ोत्तरी करके नुकसान की भरपाई करना चाहती थी. बिहार सरकार की रेत नीति का उद्देश्य टिकाऊ, स्थानीय रोजगार पैदा करना भी है. लेकिन रेत खनन में काम करने वाले मजदूर सुरक्षित नहीं हैं.


बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक सोन नदी के किनारे काम करने वाले मजदूर का कहना है कि उसे अपनी जान का डर है, क्योंकि वह नदी के किनारे 30 से 40 फीट ऊपर जाते हैं ऐसे में अगर बालू का ढेर ढह जाए तो वो वहीं दफन हो सकते हैं.  


हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के खान और भूविज्ञान विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्रतिबंध से पहले 38 जिलों में से 16 में रेत खनन चल रहा था. साल 2022 में 1 अक्टूबर से विभाग ने 28 जिलों में खनन शुरू करने की योजना बनाई. 



बिहार के खान और भूतत्व विभाग के निदेशक मो. नैय्यर ख़ान ने बीबीसी को बताया कि पिछले वित्त वर्ष यानी साल 2022-23 में सरकार ने बालू के कारोबार से 2650 करोड़ रुपये की कमाई की है. इसमें ईंट के कारोबार का भी एक छोटा हिस्सा शामिल है.




पिछले वित्त वर्ष के दौरान राज्य भर में बालू का अवैध कारोबार रोकने के लिए करीब 23 हजार छापेमारी गई थी और इसमें विभाग ने 300 करोड़ रुपये का ज़ुर्माना भी वसूला था. 


बिहार में बालू कैसे बना रोजगार संकट 



बिहार में नदियों किनारे रहने वाले लोगों का पारंपरिक व्यवसाय बालू का कनन और ढुलाई का काम है. ए एन सिंहा इस्टीट्यूट में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर विद्यार्थी विकास ने बीबीसी को ये बताया कि बिहार में 20 से 30 फीसदी मजदूर ऐसे हैं जो बालू या इससे जुड़े क्षेत्र में काम करते हैं. इसमें बालू के खनन से लेकर बालू की ढुलाई और कंस्ट्रक्शन उद्योग शामिल है.




ऐसे में जब बालू के दाम बढ़ते हैं, तो कंस्ट्रक्शन उद्योग में काम मंदा हो जाता है और इन मजदूरों के सामने रोजी रोटी का संकट शुरू हो जाता है. दूसरी तरफ सरकार जब भी बालू खनन पर सख्ती बरतती है तब बालू के खनन से लेकर कंस्ट्रक्शन उद्योग तक पर इसका असर पड़ता है.




वहीं घाटों के किनारे रहने वाले लोगों को लगता है कि सरकार ने बालू घाटों को अपने नियंत्रण में लेकर उनका पारंपरिक पेशा छीन लिया है. ठेकेदारी शुरू होने से बालू बेचने वाले भी मजदूर बनकर रह गए हैं.


बता दें कि बिहार राज्य पथ निर्माण विभाग ने 10 मार्च, 2021 को एक आदेश जारी कर राज्य भर में नदियों और निर्माणाधीन पुलों के आसपास रेत खनन पर प्रतिबंध लगा दिया. 




बता दें कि बिहार में मौजूदा वक्त में  524 बड़े बालू घाट हैं. जहां से आधिकारिक तौर पर बालू का खनन किया जा सकता है. सबसे ज्यादा शिकायतें दक्षिण बिहार से आती हैं जिसमें फल्गु, पंचाने, सकरी, सोन, पुनपुन, बडुआ, चानन और गोइथवा सहित बहने वाली नदियों के नाम शामिल हैं . बिहार में पिछले करीब एक दशक से बालू घाटों के लिए सरकार की तरफ से नीलामी की जाती है.







इंडिया वाटर पोर्टल के मुताबिक भारत में बालू बहुत फायदे का बिजनेस है. इसकी सबसे बड़ी वजह बालू की बड़ी मांग है. बड़ी मांग को देखते हुए बालू का अवैध खनन भी होता है.







भारत सरकार के खनन मंत्रालय के आंकड़े ये कहते हैं कि जिन शहरों के आसपास बालू मौजूद नहीं है, वहां मांग की वजह से बालू की कीमतें आसमान को छू रही हैं. मंत्रालय ने साल 2018 के अपने फ्रेमवर्क में बताया है कि बेंगलुरू और मुंबई जैसे शहरों में एक ट्रक बालू की कीमत 70 हजार से एक लाख रुपये तक होती है. मंत्रालय के मुताबिक कई इलाकों में खनन से जुड़े लोग और इसकी ढुलाई करने वालों का एक 'समूह' बन गया है.


बालू की मांग में उछाल कब और कैसे आया




यूएनईपी ने रिपोर्ट में ये बताया कि धरती के चारों तरफ 27 मीटर मोटी और 27 मीटर ऊंची यानि करीब आठ मंजिला दीवार बनाने में जितने बालू और कंकड़ की जरूरत होगी, उतनी मात्रा में बालू और कंकड़ हर साल धरती पर कंस्ट्रक्शन के काम में खर्च हो जाता है.


भारत खनन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत में कंस्ट्रक्शन उद्योग की विकास दर साल 2011-15 के दौरान तीन फीसदी से कम थी, साल 2016-20 के बीच कंस्ट्रक्शन उद्योग की विकास दर छह फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था. इंडिया वाटर पोर्टल के मुताबिक भारत में साल 2020 में कंस्ट्रक्शन के काम में करीब डेढ़ बिलियन टन बालू के इस्तेमाल का अनुमान था. 




बीबीसी की एक रिपोर्ट ये बताती है कि साल 1970 तक भारत में बालू आमतौर पर मुफ्त में मिल जाया करती थी. लोगों को इसके लिए नदी घाट से कंस्ट्रक्शन की जगह तक लाने के लिए ढुलाई का खर्च देना होता था. जैसे जैसे विकास होता गया कंस्ट्रक्शन का काम बढ़ता गया और बढ़ती हुई मांग के साथ बालू की कमी भी होती गई है.