Santhara Ritual: क्या होता है संथारा, जानिए जैन धर्म में क्यों देह त्याग की इस प्रथा को माना जाता है पवित्र
Santhara Ritual: साल 2006 में कुछ लोगों ने संथारा को आत्महत्या बताते हुए राजस्थान हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी. इन लोगों का मानना था कि अन्न-जल का त्याग कर मौत का इंतजार करना अमानवीय है.
Rajasthan Santhara: पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर जिले के जसोल गांव में इन दिनों किसी बड़े यज्ञ के आयोजन जैसा माहौल है. दरअसल, इस गांव के एक जैन दंपति ने संथारा ग्रहण किया है. संथारा ग्रहण करने वाले पुखराज संकलेचा ने स्वेच्छा से मृत्यु का वरण कर लिया है. वहीं, उनकी पत्नी गुलाब देवी का संथारा अभी जारी है.
जैन धर्म में संथारा प्रथा को बहुत पवित्र माना जाता है. जैन धर्म के अनुसार संथारा के जरिये आत्मशुद्धि होती है और मोक्ष मिलता है.
क्या होती है संथारा प्रथा?
जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब किसी व्यक्ति (श्रावक) या जैन मुनि को लगता है कि उनकी मृत्यु करीब हैं, तो वो खुद को एक कमरे में बंद कर लेते हैं. इसके साथ ही अन्न-जल का त्याग कर देते हैं. जैन धर्म ग्रंथों में संथारा प्रथा को संलेखना, संन्यासमरण, समाधिमरण के तौर पर भी दर्शाया गया है. कोई यूं ही संथारा ग्रहण नहीं कर सकता है. इसके लिए जैन धर्म के धर्मगुरु की आज्ञा चाहिए होती है. बूढ़े हो चुके, लाइलाज बीमारियों से ग्रस्त होने की स्थिति में संथारा ग्रहण किया जाता है.
संथारा या संलेखना में श्रावक अन्न-जल त्याग कर देह त्याग करते हैं. इस दौरान वे भी भौतिक मोह-माया का त्याग कर भगवान को याद करते हैं. ये फैसला पूरी तरह से स्वेच्छा पर निर्भर करता है. इसके लिए किसी पर कोई दबाव नहीं बनाया जा सकता है. बच्चों और युवाओं को संथारा करने की अनुमति नहीं होती है. संथारा जैसी परंपराएं भारत के अन्य धर्मों में भी दिखाई पड़ती हैं.
आत्महत्या या स्वैच्छिक प्रथा का विवाद
साल 2006 में कुछ लोगों ने संथारा को आत्महत्या बताते हुए राजस्थान हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी. इन लोगों का मानना था कि अन्न-जल का त्याग कर मौत का इंतजार करना अमानवीय है और संविधान प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन है. इस मामले पर सुनवाई करते हुए अगस्त 2015 में राजस्थान हाईकोर्ट ने संथारा प्रथा को आत्महत्या बताया था और इस पर रोक लगा दी थी. हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ जैन समुदाय सुप्रीम कोर्ट गया. जहां सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए इस पर लगी रोक हटा दी.
कई धर्मग्रंथों में मिलता है उल्लेख
दूसरी शताब्दी से लेकर पांचवी शताब्दी तक के कई जैन धर्म ग्रंथों में इस प्रथा का उल्लेख है. दूसरी शताब्दी के जैन ग्रंथ 'रत्नकरंड श्रावकाचार' में बताया गया है कि कौन लोग संथारा ग्रहण कर सकते हैं? दूसरी या तीसरी सदी में लिखे गए जैन धर्म के ग्रंथ आचारांग सूत्र में संलेखना की तीन विधियों भक्तप्रत्यख्यान, इंगितमरण और पदापोपगमन के बारे में बताया गया है. वहीं, सातवीं सदी के जैन ग्रंथ तत्त्वार्थसूत्र में जैन मुनियों को संथारा ग्रहण कर देह त्याग करने के बारे में लिखा गया है.
सम्मेद शिखरजी के लिए भी हुआ था संथारा
झारखंड में स्थित जैन धर्म के सर्वोच्च तीर्थस्थल सम्मेद शिखरजी को पर्यटन केंद्र घोषित करने के खिलाफ देशभर में विरोध-प्रदर्शन हुए. इस फैसले के खिलाफ जैन मुनि समर्थ सागर और जैन मुनि सुज्ञेय सागर जी महाराज ने अन्न-जल त्याग कर संथारा ग्रहण किया था. सम्मेद शिखरजी के लिए चल रहे आंदोलन के बीच ही इन दोनों संतों ने अपने प्राण त्याग दिए थे. भारत में भूदान आंदोलन के प्रणेता आचार्य विनोबा भावे ने भी संथाला ग्रहण किया था.
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