नई दिल्ली: आय से अधिक संपत्ति में मामले सुप्रीम कोर्ट से सजा मिलने के बाद शशिकला नटराजन सरेंडर कर चुकीं हैं. सरेंडर करने के बाद कोर्ट ने शशिकला को बेंगलूरु जेल भेजा है. शशिकला की 'नई पहचान' अब कैदी नंबर 9934 होगी. शशिकला के साथ ही इल्वारासी और सुधाकरन ने भी सरेंडर कर दिया है. इल्वारिस का कैदी नंबर 9935 और सुधाकरन का कैदी नंबर 9936 है. सूत्रों के मुताबिक शशिकला जेल जाने से पहले पति नटराजन से गले लगकर फूटफूट कर रोईं.


मोमबत्ती बनाएंगी और जेल का खाना खाएंगी
शशिकला को सश्रम कारावास के तौर पर मोमबत्ती बनाने का सौंपा गया है. शशिकला जेल में 50 रुपये रोज के मेहनताने पर मोमबत्ती बनाने का काम करेंगी. इसके साथ ही शशिकला को जेल में दो महिलाओं के साथ बैरक शेयर करनी होगी. इसके साथ ही उन्हें जेल का ही खाना मिलेगा.


सरेंडर के लिए वक्त मांगा था लेकिन नहीं मिला
आज शशिकला की अपील की थी कि उन्हें सरेंडर करने के लिए कुछ और वक्त दिया जाए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने और वक्त देने से इनकार कर दिया. सरेंडर करने से पहले शशिकला जयललिता की समाधि पर भी गईं.


चार साल की सजा सुनाई है सुप्रीम कोर्ट ने
आपको बाता दें कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें चार साल की सज़ा के साथ ही उनपर दस करोड़ का जुर्माना भी लगाया है. फैसले के बाद शशिकला अब दस साल तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगी.


शशिकला के खिलाफ केस क्या है?
ये मामला करीब 21 साल पुराना साल 1996 का है, जब जयललिता के खिलाफ आय से 66 करोड़ रुपये की ज्यादा की संपत्ति का केस दर्ज हुआ था. इस केस में जयललिता के साथ शशिकला और उनके दो रिश्तेदारों को भी आरोपी बनाया गया था. शशिकला के खिलाफ ये केस निचली अदालतों से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है.


सुप्रीम कोर्ट से पहले इस केस में क्या क्या फैसले आए थे
27 सितंबर 2014 को बेंगलूरु की विशेष अदालत ने जयललिता को 4 साल की जेल और 100 करोड़ रुपये का जुर्माना की सजा दी थी. इस केस में ही शशिकला और उनके दो रिश्तेदारों को भी चार साल की सजा सुनाई गई थी और 10-10 करोड़ का जुर्माना भी लगाया गया था. फैसले के बाद चारों को जेल भी भेजा गया था. जिसके बाद विशेष अदालत के बाद मामला कर्नाटक हाईकोर्ट पहुंचा था.


11 मई 2015 को हाईकोर्ट ने कर दिया था बरी
11 मई 2015 को हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में चारों को बरी कर दिया था. हाईकोर्ट से जयललिता और शशिकला को बड़ी राहत तो मिली थी, लेकिन इसके बाद कर्नाटक की सरकार जयललिता की विरोधी पार्टी डीएमके और बीजेपी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने चुनौती दे दी. कर्नाटक सरकार इस मामले में इसलिए पड़ी, क्योंकि 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने केस को कर्नाटक हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था.