पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक और उनके करीबियों के 30 से ज्यादा ठिकानों पर गरुवार (22 फरवरी, 2024) को सीबीआई ने रेड मारी. किरू हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई तलाशी अभियान चला रही है. तलाशी अभियान उत्तर प्रदेश बिहार, राजस्थान, मुंबई, हरियाणा में चल रहा है.
सत्यपाल अगस्त 2018 से नवबंर, 2019 तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे. इसके बाद गोवा और फिर मेघालय के गवर्नर के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई. वह कहते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की वजह से वह राजनीति में आए. चौधरी चरण सिंह ने ही उनसे उनकी पार्टी भारतीय क्रांति दल ज्वॉइन करने के लिए कहा और फिर उन्हें विधायिकी का चुनाव लड़वाया. इसके बाद कांग्रेस, फिर जनता दल और बाद में भारतीय जनता पार्टी में चले गए. मोदी सरकार में उन्हें भूमि अधिग्रहण बिल के लिए बनाई गई पार्लियामेंट्री टीम का प्रमुख भी बनाया गया. 50 साल के सत्यपाल मलिक के राजनीतिक करियर पर आइए एक नजर डाल लेते हैं.
सत्यपाल मलिक की कैसे हुई पॉलिटिक्स में एंट्री
साल 1974 में सत्यापल मलिक ने राजनीति में कदम रखा. वैसे तो वह स्टूडेंट पॉलिटिक्स में भीकाफी एक्टिव थे और यहीं से मेन पॉलिटिक्स में आने का रास्ता खुला. न्यूज तक के साथ इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि वह स्टूडेंट पॉलिटिक्स के दौरान डिबेट में हिस्सा लेते थे और दो बार कॉलेज प्रेसिडेंट चुने गए. जब दूसरी बार प्रेसिडेंट चुने गए तो उत्तर प्रदेश में एक स्टूडेंट मूवमेंट हुआ था, जिसमें 40 लड़के शहीद हो गए. इस मूवमेट से उन्हें काफी पहचान मिली. तब चौधरी चरण सिंह ने उन्हें अपनी पार्टी भारतीय क्रांति दल ज्वॉइन करवा दी और पार्टी की सारी जिम्मेदारियां उन्हें दे दीं.
चौधरी चरण सिंह के कहने पर लड़ा पहला चुनाव
सत्यपाल मलिक बताते हैं कि चौधरी चरण सिंह को उन पर इतना विश्वास था कि जबरदस्ती उन्हें 1974 का यूपी विधानसभा चुनाव लड़वाया. उन्होंने बताया कि चौधरी चरण सिंह ने सर्किट हाउस के एक कमरे में उनको बुलाकर कहा कि उनके 30 विधायक छोड़कर चले गए हैं और पार्टी संभालने को कहा. अगले दिन से पार्टी की सारी जिम्मेदारी सत्यपाल मलिक को दे दी.
सत्यपाल मलिक ने बताया कि पहली बार बागपत सीट पर वह विधायक का चुनाव लड़े, यहां पर तीन बार से चौधरी चरण सिंह का कैंडिडेट हार रहा था, लेकिन सत्यपाल मलिक जीत गए. इससे पार्टी में उनका कद बढ़ गया और फिर उन्होंने मुड़कर नहीं देखा. 1974 से वह 1977 तक विधायक रहे. 1980 में भारतीय क्रांति दल ने उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया. 1984 में सत्यपाल मलिक ने चौधरी चरण सिंह की पार्टी छोड़ दी और वह कांग्रेस में शामिल हो गए.
चौधरी चरण सिंह की पार्टी छोड़ने के पीछे का कारण बताते हुए सत्यपाल मलिक बताते हैं कि जब चौधरी साहब के बेटे अजित सिंह विदेश से आ गए तो परिवार ने उनसे कहा कि सत्यपाल मलिक और अजित एक साथ नहीं चल सकते क्योंकि दोनों एक जिले और एक ही समुदाय के हैं. फिर चौधरी चरण सिंह ने बुलाकर कहा कि मेरी मजबूरी है और तुम पार्टी छोड़ दो. इसके बाद अपने दोस्तों के कहने पर वह कांग्रेस में चले गए.
सत्यपाल मलिक ने अलगीढ़ से जीता लोकसभा चुनाव
सत्यपाल मलिक 10 साल चौधरी चरण सिंह के साथ रहने के बाद साल 1984 में कांग्रेस में चले गए. कांग्रेस ने 1986 में उन्हें राज्यसभा भेज दिया, लेकिन बोफोर्स स्कैम के चलते साल 1987 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. कांग्रेस के बाद वह वीपी सिंह के साथ आ गए. 1980 में सत्यपाल मलिक ने जनता दल के टिकट पर अलीगढ़ से लोकसभा का चुनाव जीत लिया और 1990 में छोटे समय के लिए केंद्रीय संसदीय एवं पर्यटन राज्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली.
बीजेपी में सत्यपाल मलिक को मिली बड़ी जिम्मेदारी
साल 2004 में सत्यपाल मलिक भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल हो गए और बागपत से लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गए. उन्हें अजित सिंह ने शिकस्त दी थी. 2014 में जब बीजेपी ने प्रचंड जीत के साथ सरकार बनाई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में उन्हें भूमि अधिग्रहण बिल के लिए बनाई गई संसदीय टीम का प्रमुख बनाया गया. मोदी सरकार में उन्हें कई सीनियर पदों पर नियुक्ति दी गई. अक्टूबर, 2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया और 10 महीने बाद ही अगस्त, 2018 में जम्मू-कश्मीर के गवर्नर की जिम्मेदारी सौंप दी गई. उन्हीं के कार्यकाल में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाया गया था. इसके बाद उन्हें 2019 में गोवा और 2020 में मेघालय का राज्यपाल बनाया गया.
यह भी पढ़ें:-
Satyapal Malik CBI Raids: सीबीआई के छापे पर सत्यपाल मलिक ने दी पहली प्रतिक्रिया, किया बड़ा खुलासा