नई दिल्लीः केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान दो महीने से भी ज्यादा समय से दिल्ली के बॉर्डर पर डटे हुए हैं. इस बीच मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि उन्होंने केंद्र सरकार को किसानों का अपमान नहीं करने और उन्हें वापस जाने के लिए मजबूर नहीं करने की सलाह दी है. उन्होंने कहा कि सरकार को इस संकट को हल करने के लिए किसानों से बात करनी चाहिए.


पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट नेता रहे मलिक ने कहा कि इस सप्ताह की शुरुआत में यूपी पुलिस की ओर से आंदोलनकारी किसानों को गाजियाबाद से बाहर निकालने के प्रयास से स्थिति और खराब हो गई. मलिक ने कहा कि “मैं संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति हूं. मुझे इस तरह की कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. लेकिन यह किसानों का मुद्दा है और मैं चुप नहीं रह सकता. मैंने पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मुद्दे को बातचीत के जरिए तुरंत हल करने का अनुरोध किया है ”


किसानों को अपमानित करके वापस नहीं भेजा जाए
मलिक ने कहा कि किसानों को अपमानित करके वापस नहीं भेजा जा सकता. उन्होंने कहा कि आप उन्हें अपमानित नहीं कर सकते और उन्हें विरोध प्रदर्शनों से वापस भेज सकते हैं. आपको उनसे बातचीत करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि “प्रधानमंत्री मोदी को किसानों का बहुत समर्थन है. उसके पास पॉवर है. उन्होंने कहा कि उन्हें उदारता दिखानी चाहिए और मुद्दे को हल करने के लिए उनसे चर्चा करनी चाहिए. ”


मुद्दे को बातचीत से किया जा सकता है हल
गवर्नर ने कहा कि अगर सरकार इरादे दिखाती है तो इस मुद्दे को हल किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि “पश्चिमी यूपी के किसान नेताओं ने कहा कि वे इस मुद्दे को सुलझाने के लिए तैयार हैं. किसान तैयार हैं . यदि सरकार की मंशा है, तो इसे सुलझाया जा सकता है. ” शुक्रवार से उत्तर प्रदेश और हरियाणा के गांवों के किसान ट्रैक्टर ट्रॉलियों में राशन और पानी की बोतलों के साथ गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे धरने पर पहुंच रहे हैं.


गृह मंत्री और प्रधानमंत्री स्थिति से हैं अवगत
मलिक ने कहा “मुझे सार्वजनिक रूप से अपने विचार व्यक्त करने में दिक्कतें हैं लेकिन मैं अपने विचार गृह मंत्री और प्रधानमंत्री तक पहुंचा चुका हूं.“वे स्थिति से अवगत हैं, लेकिन मुझे अपना देना था. वे किसानों की चिंताओं के प्रति भी सहानुभूति रखते हैं. ”


मलिक ने विवादास्पद भूमि अधिग्रहण बिल पर फीडबैक लेने वाले भाजपा पैनल का भी नेतृत्व किया किया था. पैनल ने सरकार को 2015 में बिल को रद्द करने की सलाह दी थी. उन्हें 2018 में बिहार के राज्यपाल से जम्मू- कश्मीर के राज्यपाल के रूप में ट्रांसफर किया गया और बाद में गोवा. एक साल से भी कम समय उन्हें गोवा से मेघालय का राज्यपाल बना दिया गया.


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