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सावन वह महीना जब प्रकृति मुस्कुराती है और कामदेव का प्रेमबाण प्रेमी जोड़ों पर चलता है

17 जुलाई से सावन पर्व की शुरूआत हो गई है. यह हिंदुओं के लिए बहुत ही खास होता है. भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए सुबह से ही मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगने लगता है.सावन का महीना दो चीजों के लिए जाना जाता है. एक कामदेव और दूसरा प्रकृति का उत्सव.

Sawan 2019: 17 जुलाई से शिवजी का प्रिय माह सावन शुरू गया है. इस माह में शिवजी की विशेष पूजा की जाती है. सभी शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगी रहती है.सावन का महीना दो चीजों के लिए जाना जाता है. एक कामदेव और दूसरा प्रकृति का उत्सव. पहले पकृति के उत्सव की बात कर लेते हैं.

सावन की हरियाली में सराबोर वातावरण में मिट्टी की मदहोशक सोंधी खुशबू में पवन की झोकों पर नाचती-इठलाती टहनियां, उफनती नदियां, मेघ-मल्हार की अठखेलियां प्राकृतिक तान छेड़कर पशु-पक्षी-मानव सब को झूमने पर मजबूर कर देती है. सावन में नहाई हुई प्रकृति पर जब सुरज की किरणें पड़ती है तो लगता है जैसे उसकी सुंदरता में चार-चांद लग गया हो. आसमान से हो रहे मेघगर्जन को सुनकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे खंभों पर जलती चिमनियां बार-बार चौंक रही हैं. इस मौसम में घर-आंगन, सभी कुछ सुहावना लगने लगता है. वातावरण ऐसा खुशनुमा हो जाता है जैसे घर में किसी नए मेहमान के आने की खुशी हो. भला ऐसी रम्य और काम्य ऋतु में कौन होगा जो उतस्व नहीं मनाना चाहेगा.

इस उत्सव का आनंद उस ग्वाले से पूछिए जो सावन में तेज थपेड़े मारती हवा में बंशी बजाता हुआ जंगलों में पशु चराता है. इस मौसम में गीली, भीगी गाय-भैंसों के साथ लौटने का उत्सव और अनुभव उस ग्वाले से एकबार जरूर पूछना चाहिए. इस सावन का आनंद उन गांव की नवयुवतियों से पूछी जानी चाहिए जो वर्षा होते ही निकल पड़ती है गांव के बाहर आम या पीपल की शाखा की तरफ और उसी पर रस्सी का झूला डालकर झूलने लगती है. उस वक्त उसके बाल हवा के साथ छितरे पड़े रहते हैं. पल्लू का पता नहीं होता, वह तो बस आसमान से गिर रही बूंदों में भिगती है और उस वक्त उनका चेहरा देखकर लगता है जैसे पूरी प्रकृति इनके अंदर खिल खिलाकर मुसकुरा रही हो. इस मौसम में नारी-देह उत्सव मनाती है.

इस मौसम में संगीत का भी अपना महत्व होता है. सावन की बौछारों के साथ लोग जब कुमार सानु, अल्का याग्निक और उदित नारायन की आवाज में गुलज़ार साहब और जावेद अख्तर द्वारा लिखे गए गीत ‘बरसात के मौसम में... तन्हाई के आलम में.' सुनते हैं तो लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत उन्हें बारिश में बाहर निकलकर नाचने पर मजबूर कर देता हैं. इसके अलावा 'सावन का महीना, पवन करे सोर, जियारा रे झूमें ऐसे, जैसे बनमां नाचे मोर' तो लगता है जैसे सावन का टाइटल सॉन्ग हो. कुल मिलाकर सावन और संगीत एक-दुसरे के पूरक हैं.

सावन में संगीत के साथ खाने का भी अपना महत्व है. चाय के साथ अरबी के पत्तों के पकौड़े, दाल भरी पूड़ी, खीर, अनरसा, घेवर जैसे स्वादिष्ट पकवानों का स्वाद इस मौसम का मजा दोगुना कर कर देता है. कजरी लोकगीत का दौर शुरू हो जाता है. परंपराएं और रीति-रिवाज सजीव हो उठते हैं. छम-छम बरसती बूंदों के बीच सखियों का हास-परिहास, सास-ननद के ताने-उलाहने, पिया से रूठना-मनाना, सब कुछ एक पल में कजरी लोकगीत में शामिल हो जाते हैं.

भौजाई चुनौती देती हुई गाती हैं- “कइसे खेले जाइबि सावन में कजरिया बदरिया घेरि आइल ननदी तू त चललू अकेली, केहू संगे ना सहेली; गुंडा घेरि लीहें तोहरी डगरिया ।। बदरिया घेरि आइल ननदी ननद दबंगई से जवाब देती है- “केतने जना खइहें गोली, केतने जइहें फंसिया डोरी; केतने जना पीसिहें जेहल में चकरिया ।। बदरिया घेरि आइल ननदी “

सावन का महीना मोहब्बत का महीना भी होता है क्योंकि इसी मौसम में कामदेव का प्रेमबाण प्रेमी जोड़ो पर चलता है. महुआ, केवड़ा और टेसू के फूलों की गंध से अभिभूत होकर मन हिलोरे मारने लगता है. सोये हुए अरमान जागने लगते हैं. कोयल की कुहू कुहू और पपिये की पिहू पिहू से मन बहकने लगता है. सावन का महीना आते ही रोमांस और रूमानीयत का खुमार चारो ओर छाने लगता है. जो प्रेमी जोड़े साथ होते हैं वह प्रेम करते हैं लेकिन जो अपने प्रियतम या प्रेयसी से अलग होते हैं उनको विरह वेदना सताने लगती है. वह अपनी नाराजगी को मनोज कुमार के "हाय हाय ये मज़बूरी ,ये मौसम और ये दूरी ,मुझे पल पल है तरसाये ,तेरी दो टकिया दी नोकरी मेरा लाखो का सावन जाय " जैसी गीतों को गाकर जाहिर करते हैं.

वर्षा एक ऐसी ऋतु है जब संयोग और वियोग प्रियतमा का दोनों रूप निखर कर सामने आता है. प्रिय को दूर जाता देख सजनी बोल पड़ती है- बिन सजना नहीं भावे महीना सावन का..

हालांकि जलवायु परिवर्तन के चलते ऋतुएं भी अपना चक्र बदल रही हैं. पंचांग के अनुसार सावन तो आ जाता है लेकिन पहले जैसी वर्षा नहीं लाता, परिणामस्वरूप प्रकृति हरियाली की गझिन चूनर नहीं ओढ़ पाती. सब कुछ आधा-अधूरा लगता है. इसके बावजूद मानव-हृदय अदम्य है. उसके भीतर का ऋतुचक्र आदिम और सनातन है. खेत, नदी, ताल-तलैया, पोखर-बावड़ी वर्षाजल से न छलक रहे हों, बिजली न कौंध रही हो, पेड़-पौधे न झूम रहे हों, झींगुर-दादुर न टर्रा रहे हों, प्रियतम दूर हों, छत-छप्पर-छानी टपक रही हों- तब भी वह देशकाल और वातावरण के अनुसार अपना सावन मना ही लेता है. आप भी प्रफुल्लित हो जाइए और सावन का आनंद लीजिए.

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