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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- सभी मजदूर भारतीय, प्रवासी नहीं कहा जा सकता, जानें SC-NHRC ने क्या कहा है

लॉकडाउन में लाखों लोगों ने पलायन किया और इस पलायन के बीच होती सियासत में प्रवासी शब्द केंद्र में रहा.अब रोजी रोटी के लिए दूसरे शहर जाने वाले लोगों को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ी बात कही है.

नई दिल्ली: महामारी और लॉकडाउन के दौर में पलायन पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ी बात कही है. अपने आदेश में हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि जब देश में रहने वाले मजदूरों को एक से दूसरे राज्य में जाने पर प्रवासी बताया जा रहा है. मजदूरों को देश के किसी भी राज्य में जाकर रहने और रोजगार हासिल करने का संवैधानिक अधिकार है. इसलिए ऐसे लोगों को प्रवासी नहीं कहा जा सकता, ये देश सबका है, कोई कहीं भी जा सकता है. अदालत ने यूपी सरकार से बाहर से आने वाले मजदूरों के इलाज, रोजगार और पुनर्वास को लेकर बनाई गई नीतियों का ब्यौरा पेश करने को कहा है.

एक आंकड़े के मुताबिक इस महामारी के दौर में

* 24 मई तक 75 लाख मजदूर बस और ट्रेन के जरिए अपने घर लौट गए * जिसमें से श्रमिक स्पेशल ट्रेन से करीब 48 लाख मजदूर वापस अपने घर लौटे * कोरोना और लॉकडाउन की वजह से करीब 67 फीसदी कामगारों के रोजगार पर असर पड़ा है * शहरी इलाकों में करीब 80 फीसदी कामगारों के रोजगार खत्म हुए * जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 57 फीसदी लोगों के रोजगार छिन गए

इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी पलायन पर सियासी रोटी सेंक रहे राजनीतिक दलों के लिए संदेश है. कोर्ट ने कहा कि मुश्किल दौर में राज्यों की जिम्मेदारी है कि वो मजदूरों के खाने और रहने का इंतजाम करें, जिससे मजदूर अपने घर लौटने के लिए मजबूर ना हों.

मौत पर NHRC का नोटिस

कोरोना काल में पैदल घर लौटने वाले हजारों लोग ऐसे थे जो मौत से दो-दो मोर्चे पर लड़ते रहे. एक तरफ कोरोना का खतरा तो दूसरी तरफ सुरक्षित घर पहुंचने की चुनौती. सरकार ने पलायन कर रहे लोगों के लिए स्पेशल ट्रेन चलाई लेकिन सुविधाओं की कमी की वजह से ट्रेन का ये सफर भी कईयों के लिए मौत का अंतहीन सफर बन गया. अब ऐसी खबरों पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्यों से जवाब मांगे हैं.

ट्रेन में नागरिकों की मौत पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने गुजरात और बिहार के मुख्य सचिव, केंद्रीय गृह सचिव के अलावा रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को नोटिस भेजा है. बिहार और गुजरात से चार हफ्ते में बताने को कहा गया है कि ट्रेन में जरूरी सुविधाएं और इलाज के लिए क्या इंतजाम किए गए थे.

NHRC ने अपने नोटिस में लिखा है कि

* मीडिया रिपोर्ट से जानकारी मिली है स्पेशल ट्रेन में देरी और भोजन-पानी की किल्लत से पैसेंजर परेशान हुए. * इसकी वजह से घर लौट रहे कई लोगों की जान चली गई. * बिहार के मुजफ्फरपुर में दो, दानापुर, सासाराम, गया, बेगुसराय और जहानाबाद में एक-एक व्यक्ति कथित तौर पर मौत हुई. * दावा है कि इन पैसेंजर की मौत मौत भूख से हुई है. * एक ट्रेन 16 मई को सूरत से सिवान के लिए रवाना हुई जो 9 दिनों बाद 25 मई को बिहार पहुंची. * अगर ये खबरें सही हैं तो ये मानवाधिकार का घोर उल्लंघन हैं. * राज्य ट्रेन में गरीबों की जिंदगी की रक्षा करने में नाकाम रहा है.

हालांकि रेलवे का दावा है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के जरिए अभी तक 50 लाख से अधिक लोगों को उनके गृहराज्य पहुंचाया है. अब तक 84 लाख से अधिक निशुल्क भोजन और सवा करोड़ (1.25 करोड़) पानी की बोतल भी बांटी गई.

पलायन पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार

घर लौट रहे लोगों की बदहाली पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई है. लोगों की सुविधाजनक यात्रा के लिए कोर्ट ने आदेश देते हुए तुरंत कदम उठाने को कहा है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब भी मांगे हैं. 26 मई को कोर्ट ने इस मामले में नोटिस जारी किया था.

सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्या है?

* मजदूरों से ट्रेन या बस का किराया नहीं लिया जाए * जो जहां फंसा है, वहां की सरकार उसे भोजन दे * रेल के सफर में पैसेंजर को रेलवे खाना और पानी दे * बस सफर के दौरान राज्य भोजन और पानी मुहैया कराए * रजिस्ट्रेशन के बाद घर लौटने वालों को जल्द यात्रा के साधन उपलब्ध कराए जाएं.

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