दरअसल, महाकाल ज्योतिर्लिंग को पहुँच रहे नुकसान को रोकने के लिए कोर्ट ने एक विशेषज्ञ कमिटी का गठन किया था. कमिटी ने गर्भगृह में श्रद्धालुओं की संख्या सीमित करने, जल और दूध से बने पंचामृत की मात्रा कम करने जैसी कई सिफारिशें की थी.
आज विशेषज्ञ कमिटी की सिफारिशों पर मंदिर प्रबंधन को जवाब देना था. मंदिर प्रशासन ने बताया कि उसने कई कदम उठाने का प्रस्ताव पारित किया है.
मंदिर प्रबंधन के प्रस्ताव के मुताबिक-
- मंदिर में हर श्रद्धालु को सिर्फ आधा लीटर जल चढ़ाने दिया जाएगा.
- शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए RO पानी का इस्तेमाल होगा.
- हर श्रद्धालु को सवा लीटर तक पंचामृत चढ़ाने दिया जाएगा.
- भस्म आरती के समय शिवलिंग को सूखे सूती कपड़े से ढंका जाएगा.
- हर शाम 5 बजे जलाभिषेक खत्म होने के बाद गर्भगृह और शिवलिंग को सुखाया जाएगा.
- शिवलिंग पर चीनी का पाउडर लगाने पर रोक लगेगी. इसके बदले खंडसारी का इस्तेमाल होगा.
- गर्भगृह को सूखा रखने और शिवलिंग तक हवा आने देने के बंदोबस्त किए जाएंगे.
- मंदिर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जाएगा.
जस्टिस अरुण मिश्रा और एल नागेश्वर राव की बेंच ने मंदिर मैनेजमेंट के प्रस्ताव पर संतोष जताया. बेंच ने कहा-"हम मैनेजमेंट के सुझावों की सराहना करते हैं. ये ख़ुशी की बात है कि सालों बाद ही सही कुछ अच्छे कदम उठाए जा रहे हैं."
हालांकि, याचिकाकर्ता सारिका गुरु के वकील ने इन प्रस्तावों को नाकाफी बताते हुए एतराज़ जताया. कोर्ट ने उन्हें और दूसरे पक्षों को आपत्ति और सुझाव देने के लिए 15 दिन का समय दिया. मामले पर अगली सुनवाई 30 नवंबर को होगी.
सुनवाई के दौरान सिंहस्थ कुंभ के दौरान पंडे-पुजारियों की तरफ से होने वाले नियमों के उल्लंघन का मसला उठा. याचिकाकर्ता ने कहा कि इससे उज्जैन के पर्यावरण को काफी नुकसान होता है. मंदिर प्रशासन इन बातों की तरफ से आंख मूंद लेती है. महाकाल दर्शन के लिए अलग से वीआईपी चार्ज लेकर पंडों को हिस्सा दिया जाता है.
हालांकि, मंदिर कमिटी के वकील ने इसका खंडन करते हुए कहा कि पुजारियों की मेहनत के मुकाबले उन्हें दिया जाने वाला हिस्सा कुछ नहीं. पिछले सिंहस्थ के दौरान लगभग 1 करोड़ 10 लाख रुपए 37 पुजारी परिवारों में बंटे. प्रति व्यक्ति ये रकम सिर्फ 5-6 हज़ार रुपये थी.
जस्टिस अरुण मिश्रा ने माना कि ये रकम नाकाफी है. हालांकि, उन्होंने सिंहस्थ के दौरान पंडों की कमाई के दूसरे तरीकों पर टिप्पणी की. कहा- "वहां बड़े बड़े शहरनुमा पंडाल बनाए जाते हैं. इनमें करोड़ों की लागत आती है. ऐसे-ऐसे वीआईपी सूट बनाए जाते हैं जिनमें रहने की कीमत प्रिंस चार्ल्स ही दे सकते हैं."
हालांकि, कोर्ट ने सिंहस्थ के दौरान प्रबंधन पर अभी कोई आदेश देने से मना किया. कोर्ट ने कहा कि फ़िलहाल हम मंदिर की देखभाल पर सीमित रहना चाहेंगे.