महाराष्ट्र: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से पालघर मामले में अब तक कि गई कार्रवाई का ब्यौरा मांगा है. कोर्ट ने पूछा है कि जिन पुलिसवालों ने 2 साधुओं और उनके ड्राइवर को भीड़ के हवाले कर दिया था, उन पर क्या कार्रवाई की गई है? कोर्ट ने राज्य सरकार से घटना पर निचली अदालत में जमा करवाई गई चार्जशीट भी पेश करने के लिए कहा है. इस मामले पर जूना अखाड़ा के साधुओं, मृतकों के रिश्तेदारों और 2 वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. याचिका में महाराष्ट्र पुलिस की तरफ से की जा रही जांच पर संदेह जताते हुए इसे सीबीआई को सौंपने की मांग की गई है.


एक याचिका में यह भी कहा गया है कि पालघर में पिछले कुछ समय में देश विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों की सक्रियता बढ़ी है. ऐसे में मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए से करवाई जानी चाहिए, ताकि अगर कोई साजिश है तो उसकी जड़ तक पहुंचा जा सके.


क्या है मामला


16 अप्रैल को 72 साल के संत महाराज कल्पवृक्ष गिरी और 35 साल के सुशील गिरी महाराज अपने गुरु के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने के लिए मुंबई से सूरत जा रहे थे. उनकी गाड़ी ड्राइवर निलेश तेलगडे चला रहा था. मुंबई से 140 किलोमीटर दूर पालघर में उग्र भीड़ ने उनकी गाड़ी को घेर लिया था. कहा जाता है कि यह भीड़ इलाके में बच्चा चोर गिरोह के सक्रिय होने की अफवाह के चलते जमा हुई थी. भीड़ ने तीनों को गिरोह का सदस्य समझा और पीट कर मार डाला.


घटना का वीडियो सामने आने के बाद देशभर में गुस्से की लहर फैल गई. वीडियो में यह देखा गया कि पुलिस के लोग संत की रक्षा करने की बजाय उन्हें भीड़ के हवाले कर रहे हैं. असहाय बुजुर्ग साधु की इस तरह से हत्या पर लोगों ने तीखा विरोध जताया. महाराष्ट्र सरकार ने घटना की जांच सीआईडी को सौंप दी. लेकिन लोग इससे संतुष्ट नहीं हैं.


आज क्या हुआ


जांच किसी निष्पक्ष एजेंसी से करवाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने पिछली सुनवाई में महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा था. आज राज्य सरकार की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि पुलिस की तरफ से की जा रही जांच सही चल रही है. निचली अदालत में दो आरोप पत्र जमा करवाए जा चुके हैं, लेकिन कोर्ट इससे संतुष्ट नहीं नहीं हुआ.


जजों ने यह जानना चाहा कि जिन पुलिसवालों ने साधुओं की रक्षा नहीं की, उन्हें भीड़ के हवाले कर दिया. उनके ऊपर क्या कार्रवाई की गई? सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने जजों को सलाह दी कि उन्हें पुलिस की तरफ से जमा करवाई गई चार्जशीट को देखना चाहिए. इससे यह पता चलेगा कि जांच संतोषजनक तरीके से की गई है या नहीं.


अगर ऐसा लगता है कि पुलिस ने जांच में लापरवाही बरती है और आरोपी पुलिसवालों को बचाने की कोशिश की जा रही है, तो जांच सीबीआई को सौंपी जा सकती है. जजों ने इससे सहमति जताते हुए राज्य सरकार को चार्जशीट पेश करने के लिए कहा. मामले में अगली सुनवाई 3 हफ्ते बाद होगी.


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