नई दिल्ली: पेगासस जासूसी मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस सूर्य कांत की बेंच ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनी और अगली तारीख 10 अगस्त तय कर दी. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि अगर खबरें सही हैं तो आरोप बेहद गंभीर हैं. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के वकील से ये भी पूछा कि क्या आपके पास जासूसी का कोई सबूत है? इसपर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मना कर दिया.
मामले की सुनवाई शुरू होते ही चीफ जस्टिस से याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि आपकी याचिका में अखबार की कतरन के अलावा क्या है? हम क्यों इसे सुनें? इस पर याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कहा, 'यह टेक्नोलॉजी के जरिए निजता पर हमला है. सिर्फ एक फोन की जरूरत है और हमारी एक-एक गतिविधि पर नजर रखी जा सकती है. यह राष्ट्रीय इंटरनेट सुरक्षा का भी सवाल है.'
चीफ जस्टिस ने कहा, 'हम मानते हैं कि यह एक गंभीर विषय है. लेकिन एडिटर्स गिल्ड को छोड़कर सारी याचिकाएं अखबार पर आधारित हैं. जांच का आदेश देने के लिए कोई ठोस आधार नहीं दिख रहा. यह मसला 2019 में भी चर्चा में आया था. अचानक फिर से गर्म हो गया है. आप सभी याचिकाकर्ता पढ़े लिखे लोग हैं. आप जानते हैं कि कोर्ट किस तरह के मामलों में दखल देता है.' इस पर सिब्बल ने कहा, 'यह सही है कि हमारे पास कोई सीधा सबूत नहीं है. लेकिन एडिटर्स गिल्ड की याचिका में जासूसी के 37 मामलों का जिक्र है.' सिब्बल ने व्हाट्सऐप और एनएसओ के बीच कैलिफोर्निया की कोर्ट में चले एक मुकदमे का हवाला दिया. कहा कि पेगासस जासूसी करता है, यह साफ है. भारत में किया या नहीं, इसका सवाल है.
सरकार को नोटिस जारी करने की अपील
चीफ जस्टिस ने कहा, 'हमने पढ़ा है कि NSO सिर्फ किसी देश की सरकार को ही स्पाईवेयर देता है. कैलिफोर्निया केस का अभी क्या स्टेटस है? हमें नहीं लगता कि वहां भी यह बात निकलकर आई है कि भारत में किसी की जासूसी हुई.' सिब्बल ने जवाब दिया, 'संसद में असदुद्दीन ओवैसी के सवाल पर मंत्री मान चुके हैं कि भारत मे 121 लोगों को निशाने पर लिया गया था. आगे की सच्चाई तभी पता चलेगी जब कोर्ट सरकार से जानकारी ले. कृपया नोटिस जारी करें.'
सीजेआई ने पूछा कि हमारे इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि दो साल बाद यह मामला क्यों उठाया जा रहा है? सिब्बल ने जवाब दिया, 'सिटीजन लैब ने नए खुलासे किए हैं. अभी पता चला कि कोर्ट के रजिस्ट्रार और एक पूर्व जज का नंबर भी निशाने पर था. यह स्पाईवेयर मोबाइल का कैमरा और माइक ऑनकर के सभी निजी गतिविधियों को लीक करता है.'
वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने भी जांच की मांग करते हुए कहा, 'फ्रेंच संस्था और कनाडा के लैब के प्रयास से नया खुलासा हुआ है. लोगों को जानने का हक है कि भारत में इसका किसने और किस पर इस्तेमाल किया? मामले की जांच होनी चाहिए.' फिर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, अगर आपको पक्का पता है कि आपके फोन की जासूसी हुई तो आपने कानूनन FIR दर्ज क्यों नहीं करवाई?
वकीलों ने दी अपनी-अपनी दलीलें
वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने अपनी दलील देते हुए कहा, 'भारत में कम से कम 40 पत्रकारों की जासूसी हुई है. किसी एक व्यक्ति के फोन टैपिंग का मसला नहीं है. एक बाहर की कंपनी शामिल है इसमें. अगर सरकार ने उससे स्पाईवेयर नहीं लिया तो किसने लिया. बहुत गंभीर बात है. कश्मीर के किसी आतंकवादी की जासूसी नहीं हुई कि इसे सही कह दें.'
इसके बाद वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने अपनी दलील में कहा, 'IT एक्ट की धारा-43 के तहत हम फोन हैकिंग के लिए मुआवजा मांग सकते हैं. लेकिन बिना जांच के कैसे पता चलेगा कि जिम्मेदार कौन है.' इसके बाद वरिष्ठ वकील एमएल शर्मा ने कहा, 'पेगासस कैमरा, माइक सब पर नियंत्रण करता है. NSO ने कैलिफोर्निया कोर्ट में बोला कि वह इसे खुद किसी के फोन में नहीं डालता. सरकारों को बेचता है.'
सभी दलीलें सुनने के बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि सभी याचिकाकर्ता अपनी याचिका की एक कॉप सरकार को भेज दें. पहले सरकार की तरफ से किसी को पेश होने दीजिए. फिर नोटिस जारी करने पर विचार करेंगे. मामले की अगली सुनवाई मंगलवार, 10 अगस्त को होगी.
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