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'सरकार चाहे तो वहां गांव बसा दे, लेकिन दूसरे नागरिकों को कष्ट न दे' : किसान आंदोलन से बाधित सड़क पर SC की टिप्पणी

किसान आंदोलन के चलते दिल्ली से आने-जाने में लोगों को हो रही दिक्कत के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार की खिंचाई कर दी है. कोर्ट ने कहा, 'हो सकता है, आप वहां गांव बनाना चाहते हों. आप ऐसा कर सकते हैं. लेकिन दूसरे नागरिकों का जीवन बाधित होना गलत है.'

किसान आंदोलन के चलते सड़क के रास्ते दिल्ली आने-जाने में लोगों को हो रही दिक्कत के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र और राज्य सरकारों की खिंचाई की. लंबे अरसे से सड़क पर बैठे लोगों को हटाने में विफलता की तरफ इशारा करते हुए कोर्ट ने कहा, "हो सकता है, आप वहां गांव बनाना चाहते हों. आप ऐसा कर सकते हैं. लेकिन दूसरे नागरिकों का जीवन बाधित होना गलत है."

हालांकि, कोर्ट ने सॉलिसीटर जनरल के अनुरोध पर आज बिना कोई आदेश दिए सुनवाई को 7 मई के लिए टाल दिया. नोएडा की रहने वाली मोनिका अग्रवाल नाम की महिला ने 4 महीने से भी अधिक समय से किसान आंदोलन केे चलते बाधित दिल्ली और नोएडा के बीच यातायात का मसला उठाया है. उन्होंने कोर्ट को बताया है कि वह एक कंपनी में मार्केटिंग से जुड़ा काम करती हैं. इस सिलसिले में उन्हें कई बार दिल्ली आना पड़ता है.

20 मिनट का सफर 2 घंटे में हो रहा पूरा- मोनिका अग्रवाल

पिछले लंबे अरसे से 20 मिनट का सफर तय करने में 2 घंटे लग रहे हैं. वह एक अकेली मां है और उन्हें स्वास्थ्य से जुड़ी कुछ दिक्कतें भी हैं. इस वजह से उनकी तकलीफ और ज्यादा बढ़ जा रही है. याचिकाकर्ता ने दिल्ली से नोएडा आने-जाने में हो रही दिक्कत का हवाला दिया है. लेकिन कोर्ट ने हरियाणा से लगी दिल्ली की कुछ और सीमाओं को भी किसान आंदोलनकारियों के रोके जाने की जानकारी मिलने पर हरियाणा और यूपी को भी पक्ष बनाया लिया था.

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने शाहीन बाग मामले पर फैसला दिया था. उस फैसले में कहा गया था कि आंदोलन के नाम पर किसी सड़क को लंबे समय के लिए रोका नहीं जा सकता है. धरना-प्रदर्शन जैसे कार्यक्रम प्रशासन की तरफ से तय की गई जगह पर ही होने चाहिए. याचिकाकर्ता ने इसी फैसले को याचिका में आधार बनाया है.

दिल्ली में आने-जाने वाली सड़क पर यातायात खोलने के मामले में बेंच सुनवाई करेगी 

उन्होंने कहा है कि कोर्ट राज्य सरकारों को इसे लागू करने का आदेश दे. इस याचिका को भी जस्टिस कौल की ही बेंच सुन रही है. बेंच यह साफ कर चुकी है कि उसकी सुनवाई सिर्फ इस सीमित मसले पर है कि दिल्ली में आने और दिल्ली से जाने वाली सड़क पर यातायात खोल दिया जाए. मामले के विस्तृत पहलू यानी कृषि कानून की वैधता पर उनकी बेंच सुनवाई नहीं करेगी. गौरतलब है कि कृषि कानूनों का मसला पहले से चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच के पास लंबित है.

सुनवाई की अगली तारीख 7 मई तय कर दी गई

आज केंद्र और हरियाणा सरकार के लिए पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि सरकार प्रयास कर रही है कि सड़क यातायात को सुगम बनाया जा सके. कोर्ट फिलहाल सुनवाई 2 हफ्ते टाल दें. जजों ने उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए सुनवाई की अगली तारीख 7 मई तय कर दी. इसी दौरान जस्टिस कौल ने व्यंग्य भरे लहजे में कहा कि भले ही सरकार वहां पर आंदोलनकारियों का गांव बसा देना चाहती हो, लेकिन बाकी नागरिकों के लिए सड़क खोलना ज़रूरी है.

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