नई दिल्ली: हाई कोर्ट ने विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा लगाए गए यौन शोषण और प्रताड़ना के आरोपों के आधार पर प्राथमिकी दर्ज कराने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर तत्काल सुनवाई से सोमवार को इंकार कर दिया. महिलाओं द्वारा लगाए गए यौन शोषण के इन आरोपों को भारत का ‘मी टू’ अभियान कहा जा रहा है.


प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एस. के. कौल की पीठ ने याचिका दायर करने वाले वकील एम. एल. शर्मा को बताया कि इस पर सुनवाई सामान्य तरीके से होगी. प्राथमिकियों के अलावा, याचिका में आरोप लगाने वाली महिलाओं को सहायता और सुरक्षा मुहैया कराने का निर्देश राष्ट्रीय महिला आयोग को देने का अनुरोध भी किया गया है.


क्या है MeToo
MeToo Movement: आजकल सोशल मीडिया पर #MeToo नाम से एक कैंपेन चलाया जा रहा है. इसके जरिए महिलाएं अपने साथ हुए सेक्सुअल असॉल्ट की घटना के बारे में खुलकर बात कर रही हैं. सोशल मीडिया पर महिलाएं अपने बुरे अनुभवों को शेयर करते हुए बता रही हैं कि किस तरह से वर्क प्लेस पर पुरुषों ने उनका फायदा उठाया.


शुरुआत में तो इस हैशटैग के जरिए मशहूर महिला कलाकारों ने अपने साथ हुए सेक्सुअल असॉल्ट की घटनाओं को शेयर किया, लेकिन अब इस मुहिम में आम महिलाएं भी अपने बुरे अनुभव शेयर कर रही हैं. फिल्म डायरेक्टर विकास बहल पर एक महिला की ओर से सेक्सुअल असॉल्ट का आरोप लगाए जाने के बाद से भारत में इस मुहिम को काफी ज्यादा समर्थन मिल रहा है. हाल में, तनुश्री दत्ता और नाना पाटेकर के बीच के विवाद ने इस मुहिम को हवा दी थी.


इस मुहिम के शुरुआत के बाद अब धीरे-धीरे महिलाएं अपनी चुप्पी तोड़ रही हैं. पहले वो किसी दबाव की वजह से कुछ भी कहने से बचती थीं, लेकिन अब वहीं महिलाएं खुलकर अपनी बातें #MeToo कैंपेन के तहत कह रही हैं. इस मुहिम की वजह से अब वो लोग डरने लगे हैं जिन्होंने कभी-भी किसी महिला के साथ गलत व्यवहार किया है.


हालांकि, इस मुहिम से जस्टिस जैसी कोई बात तो नहीं हो रही है लेकिन कम-से-कम इससे समाज में ये संदेश तो मिल रहा है कि अब महिलाएं अब और यौन शोषण नहीं सहेंगी. अब कोई पुरुष वर्क प्लेस पर या कहीं भी अपनी पॉवर का इस्तेमाल करके किसी महिला का फायदा उठाने से पहले दस बार सोचेगा. लेकिन #MeToo कोई ऐसा मामला नहीं है, जो पहली बार आया है, बल्कि इसकी शुरुआत हॉलीवुड से होती है.