नई दिल्ली: 1975 में इंदिरा गांधी सरकार की तरफ से देश में लगाए गए आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. याचिकाकर्ता ने इमरजेंसी के दौरान अपने पति और परिवार पर हुए अत्याचार का हवाला देते हुए यह मांग की है. कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा. कोर्ट नेकहा, "हमें देखना होगा कि इतने सालों के बाद इमरजेंसी को असंवैधानिक घोषित करना व्यवहारिक होगा या नहीं."


94 साल की वीरा सरीन की तरफ से दाखिल याचिका में यह कहा गया है कि उनके पति की दिल्ली में ज्वेलरी और कीमती रत्नों की दो दुकानें थीं. इमरजेंसी के दौरान अचानक उन दुकानों पर छापा मारा गया और पति को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें स्मगलिंग से जुड़ी धाराओं में फंसाने की धमकी दी गई. देश छोड़कर जाने के लिए मजबूर किया गया. दुकान से जो कीमती चीजें छापे के दौरान उठाई गईं थीं उन्हें कभी भी वापस नहीं किया गया. सरकारी लोगों ने उन्हें हड़प लिया.


25 करोड़ के मुआवजे की मांग कोर्ट के सामने महिला ने रखी


याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि सरकारी कार्रवाई के चलते उनके पति जीवन भर सदमे में रहे. आखिरकार साल 2000 में उनकी मौत हो गई. पूरे परिवार ने मामले का परिणाम 4 दशक तक झेला. दिल्ली हाई कोर्ट भी सरकार की पूरी कार्रवाई को गलत करार दे चुका है. महिला ने अपने परिवार को 25 करोड़ रुपए का मुआवजा देने और आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने की मांग कोर्ट में रखी.

मुआवजा समेत दूसरी मांगों पर विचार करना सही नहीं लगता- कोर्ट


लेकिन याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने जोरदार दलीलें रखीं. उन्होंने कहा, "बात मुआवजे की नहीं है. 19 महीने तक देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ. यह जरूरी है कि कोर्ट इस पर विचार करें और आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करें. कोर्ट ऐसा कुछ करे जिससे भविष्य में कोई भी सरकार शक्तियों का दुरुपयोग करके नागरिकों का दमन न कर सके." साल्वे की जिरह के बाद तीनों जजों ने काफी देर तक आपस में विचार विमर्श किया. आखिरकार, बेंच के अध्यक्ष जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा, "मुआवजा समेत दूसरी मांगों पर विचार करना सही नहीं लगता है. लेकिन हम याचिका की प्रार्थना संख्या 1 पर नोटिस जारी कर रहे हैं. हालांकि, हमें यह भी देखना होगा कि इतने सालों के बाद आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने पर विचार करना व्यवहारिक और जरूरी है या नहीं."


कोर्ट ने याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए साल्वे से कहा कि वह याचिका में संशोधन करें. संशोधित याचिका में सिर्फ उसी प्रार्थना को रखें जिस पर नोटिस जारी किया जा रहा है. इसके लिए कोर्ट ने उन्हें 18 दिसंबर तक का समय दिया है.


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