नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव आठ चरण में करवाए जाने को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. याचिका में कहा गया था कि पश्चिम बंगाल के साथ चार और राज्यों में चुनाव होने हैं, लेकिन उनमें मतदान का कार्यक्रम इतना विस्तृत नहीं रखा गया है. चुनाव आयोग ने बिना कोई उचित कारण बताए पश्चिम बंगाल में चुनाव की अवधि बाकी राज्यों से अधिक रखी है.


वकील मनोहर लाल शर्मा की इस याचिका में राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान जय श्रीराम के नारे लगाए जाने पर भी आपत्ति जताई गई थी. याचिका के मुताबिक इस तरह के नारे लगाना धार्मिक आधार पर वोट मांगना है. सुप्रीम कोर्ट खुद इसके खिलाफ फैसला दे चुका है. याचिकाकर्ता ने इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की थी.


हाई कोर्ट में याचिका क्यों नहीं दाखिल की?- सुप्रीम कोर्ट


आज यह मामला चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े, जस्टिस ए एस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम की बेंच में लगा. बेंच ने सबसे पहले याचिका के पहले बिंदु पर सवाल किया. चीफ जस्टिस ने पूछा कि चुनाव प्रक्रिया से अगर कोई समस्या है तो इसके लिए हाई कोर्ट में याचिका क्यों नहीं दाखिल की? याचिकाकर्ता ने जवाब दिया कि सुप्रीम कोर्ट पहले कह चुका है कि चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल नहीं हो सकती. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, "आपकी याचिका चुनाव याचिका नहीं है. हमें नहीं लगता कि हमने कोई ऐसा फैसला दिया है जो चुनाव नोटिफिकेशन जारी होने के बाद हाई कोर्ट में जनहित याचिका करने से रोकता हो."


जजों ने याचिकाकर्ता को वक्त देने से किया इनकार


याचिकाकर्ता ने मोहिंदर सिंह गिल मामले में दिए फैसले का हवाला दिया. इस पर जजों ने उनसे फैसले का वह हिस्सा दिखाने को कहा कि जो उन्हें हाई कोर्ट जाने से रोकता हो. वकील यह दिखा नहीं पाए. उन्होंने कोर्ट से समय देने की मांग की. जजों ने इससे मना करते हुए कहा कि फैसले में ऐसी की बात है ही नहीं. याचिका खारिज होने की आशंका को भांपते हुए वकील एम एल शर्मा ने कहा, "मेरी याचिका में 2 और अहम बिंदु उठाए गए हैं." इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, "हमने आपकी याचिका को पूरा पढ़ लिया है. हम इसे खारिज कर रहे हैं."


गौरतलब है कि संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव प्रक्रिया पर फैसला लेना चुनाव आयोग के तहत आता है. आयोग को चुनाव प्रक्रिया पर फैसला लेने, उसकी निगरानी करने उस पर नियंत्रण रखने का अधिकार दिया गया है. इसी के तहत आयोग किसी क्षेत्र में सुरक्षा और दूसरी परिस्थितियों का आकलन करते हुए चुनाव की अवधि समेत दूसरे निर्णय लेता है. लेकिन याचिकाकर्ता का कहना था कि आयोग को यह शक्ति हासिल नहीं है कि वह अलग-अलग राज्यों में चुनाव प्रक्रिया की अवधि अलग-अलग रखे.


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