जमीन मुआवजे का आंदोलन कर रही संस्था की मांग- कोर्ट सरकार को हमसे बात करने को कहे, SC ने खारिज की याचिका
संस्था का कहना था कि सरकार ने उच्चस्तरीय कमिटी बनाकर कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे लोगों से बात की. लेकिन उनके आंदोलन की उपेक्षा की जा रही है.
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज भारत भूमि बचाओ संघर्ष समिति नाम की संस्था की याचिका खारिज कर दी. संस्था की मांग थी कोर्ट सरकार को उससे बात करने के लिए कहे. दिल्ली-जम्मू नेशनल हाईवे के लिए अधिगृहित जमीन का बेहतर मुआवजा मांग रही संस्था का कहना था कि सरकार ने उच्चस्तरीय कमिटी बना कर कृषि कानूनों के मुद्दे पर आंदोलन कर रहे लोगों से बात की. लेकिन उसके आंदोलन की उपेक्षा की जा रही है.
याचिकाकर्ता संस्था के वकील एम सी ढींगरा ने कहा कि 650 किलोमीटर की सड़क के लिए हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के सैकड़ों किसानों की जमीन अधिगृहित की गई है. किसान सरकार से बेहतर मुआवजे के लिए बात करना चाहते हैं. पर उनसे कोई बात नहीं कर रहा.
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने इस याचिका को एटॉर्नी जनरल को सौंपने का निर्देश दिया था. एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने आज याचिका का विरोध किया. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के पास कोई निश्चित मांग नहीं है. बिना कोई उचित आधार के यह कहा जा रहा है कि सरकार ने जैसे संयुक्त किसान मोर्चा के साथ बातचीत की, वैसा ही इनके साथ भी करे. इस तरह की याचिका को अनुमति दी गई, तो ऐसे मामलों की बाढ़ आ जाएगी. हर कोई कोर्ट से यह आदेश मांगेगा कि सरकार को एक कमिटी बनाकर उससे बातचीत करने का निर्देश दिया जाए.
चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने वेणुगोपाल की दलीलों को स्वीकार करते हुए याचिका पर आगे सुनवाई से मना कर दिया. वकील एम सी ढींगरा ने अंतिम कोशिश करते हुए कहा, "हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण है. हमारी बात सुनी जानी चाहिए." इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, "हम आप के आंदोलन पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं. यह अच्छी बात है कि आपका आंदोलन शांतिपूर्ण है. इसे ऐसा ही बनाए रखिए." इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.
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