नई दिल्ली: कोरोना और लॉकडाउन के चलते आर्थिक संकट झेल रहे प्रवासी मज़दूरों को राहत के मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट ने विस्तार से सुनवाई की. कोर्ट ने इस बात ओर संतोष जताया कि केंद्र ने 80 करोड़ लोगों को नवंबर तक राशन उपलब्ध करवाने की घोषणा की है. कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि राशन कार्ड या पहचान पत्र न होने के चलते किसी भी राज्य में मजदूर को राशन से वंचित न किया जाए.
इससे पहले हुई सुनवाई में कोर्ट ने राज्यों से यह कहा था कि वह प्रवासी मज़दूरों को राशन और भोजन दें. लोगों को भोजन देने के लिए सामुदायिक रसोई शुरू की जाए. आज की सुनवाई में सबसे पहले केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 80 करोड़ लोगों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत नवंबर तक राशन मिलेगा. इस पर जस्टिस अशोक भूषण और एम आर शाह की बेंच ने 2 बातों पर स्पष्टीकरण मांगा. उन्होंने पूछा-
* क्या सभी राज्य 'एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड' का पालन करते हुए प्रवासी मज़दूरों को किसी भी राज्य के राशन कार्ड पर अनाज दे रहे हैं?
* जिनके पास राशन कार्ड या पहचान पत्र नहीं, उन्हें राशन देने की क्या व्यवस्था है?
सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि केंद्र राज्यों को राशन उपलब्ध करवाने के लिए तैयार है. लेकिन ऐसे ज़रूरतमंदों की पहचान राज्य को ही करनी होगी, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है. कोर्ट ने कहा, "कई राज्यों में बिना कार्ड के राशन देने की योजना ही नहीं है. मामला पूरी तरह राज्यों पर नहीं छोड़ा जा सकता."
मेहता ने कहा कि जनवितरण विभाग के सचिव राज्य के अधिकारियों से बात कर समाधान निकालने की कोशिश करेंगे. पंजाब, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों ने कोर्ट को जानकारी दी कि वह 'वन नेशन, वन राशन कार्ड' का पालन कर रहे हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार के वकील ने कहा कि आधार से राशन कार्ड की लिंकिंग में दिक्कत के चलते उनके यहां अब तक इसे लागू नहीं किया गया है. कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि वजह कुछ भी हो. आप इस योजना को अविलंब लागू करें. इसमें देरी नहीं होनी चाहिए.
24 मई को हुई पिछली सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र से असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों का राष्ट्रीय डेटा बेस तैयार करने पर जवाब मांगा था. कोर्ट ने कहा था कि इससे मज़दूरों तक योजनाओं का लाभ पहुंचाना आसान हो जाएगा. आज सरकार ने बताया कि इस व्यवस्था को बनाने में 3-4 महीने का समय लग सकता है. कोर्ट ने इस पर असंतोष जताते हुए कहा कि 2018 में ही केंद्र ने कहा था कि इस तरह का राष्ट्रीय डेटा बेस बनाया जा रहा है. 3 साल बाद भी स्थिति नहीं बदली है. सॉलिसिटर जनरल ने सहमति जताते हुए कहा कि कोर्ट इसे एक तय समय सीमा में पूरा करने का आदेश दे. सुनवाई के अंत में कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया. सभी पक्षों से 3 दिन में लिखित जवाब जमा करने को कहा है.