नई दिल्ली: टेलीकॉम कंपनियों को 1.5 लाख करोड़ रुपए के AGR भुगतान के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल का समय दिया है. कंपनियों को हर साल 31 मार्च से पहले किश्त जमा करवानी होगी. एक ही बार में भुगतान से पड़ने वाले भारी बोझ की दलील दी रही कंपनियों का सरकार ने भी समर्थन किया था.


क्या है मामला


पिछले साल 24 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू यानी AGR की सरकार की परिभाषा को सही करार दिया था. कंपनियां AGR के तहत सिर्फ लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम चार्ज को गईं रही थीं. लेकिन सरकार इसमें रेंट, डिविडेंड, संपत्ति की बिक्री से लाभ जैसी चीजों को भी शामिल बता रही थी.


कोर्ट की तरफ से सरकार की बात को सही करार देने से टेलीकॉम कंपनियों पर 1.5 लाख करोड़ रुपए की देनदारी आ गई थी. एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया, आरकॉम समेत सभी कंपनियों ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की. इसे भी कोर्ट ने खारिज कर दिया.


सरकार ने मोहलत का अनुरोध किया


भुगतान में हो रही से नाराज़ सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना का नोटिस जारी किया. सुनवाई के दौरान सरकार ने कंपनियों का पक्ष लेते हुए कहा था कि अगर इतनी बड़ी धनराशि का भुगतान एक साथ करना पड़ा तो टेलीकॉम सेक्टर की स्थिति बहुत बुरी हो जाएगी. कई कंपनियों के बंद होने की नौबत आसक्ति है. आखिरकार इसका नकारात्मक असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. इसलिए टेलीकॉम कंपनियों को किश्तों में भुगतान करने की अनुमति मिलनी चाहिए.


फैसले की मुख्य बातें


आज जस्टिस अरुण मिश्रा के नेतृत्व वाली 3 जजों की बेंच ने मोबाइल सेवा कंपनियों को AGR भुगतान के लिए 10 साल की मोहलत दे दी. कोर्ट ने कहा है कि हर साल 31 मार्च तक कंपनियों को किश्त जमा करवानी होगी. 10 फीसदी रकम की पहली किश्त 31 मार्च 2021 तक जमा होगी. हर कंपनी के MD भुगतान प्रक्रिया के पालन के लिए व्यक्तिगत शपथ पत्र देना होगा. भुगतान में देरी पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई शुरू होगी.


दिवालिया कंपनी के स्पेक्ट्रम पर NCLT फैसला ले


सुनवाई के दौरान  इस बात पर भी चर्चा हुई कि जो कंपनियां अब बंद हो चुकी है या जिनके  ऊपर दिवालिया घोषित होने की कार्रवाई चल रही है, उनके AGR भुगतान का क्या होगा? क्या जो नई कंपनी इस वक्त उनका स्पेक्ट्रम इस्तेमाल कर रही है, उससे AGR वसूला जाएगा? या दिवालिया प्रक्रिया पूरी होने के बाद जो भी बंद कंपनी को खरीदेगा, उससे AGR वसूला जाएगा? इस पूरे मामले में यह तय होना था कि  कंपनी को सरकार की तरफ से मिले स्पेक्ट्रम को भी दिवालिया प्रक्रिया का हिस्सा  माना  जाएगा या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल को फिलहाल नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल यानी NCLT पर ही छोड़ दिया है.  इस पहलू में कोर्ट के दखल न देने से  जिओ, एयरटेल जैसी उन कंपनियों को फायदा हुआ है जो अभी आरकॉम, वीडियोकॉन, एयरसेल जैसी बंद पड़ी कंपनियों का स्पेक्ट्रम इस्तेमाल कर रही हैं.